उत्तराखंड : उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में आखिर क्या है हंत्या व पीर रूकमणी नाचने का सच

उत्तराखंड : आखिर क्या है उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में पित्रों की हंत्या का सच उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में यदि पिता माता भाई बहन के मरने के बाद उनकी आत्मा की छाया उनके परिवार के किसी सदस्य पर नाचती है आैर इतना ही नहीं पहाड़ के हर दूसरे बालक पर पीर बाबा की छाया निकल रही है जिसकी पूजा में पहाडी लाेग मुर्गी के बच्चे की हत्या करते हैं पहाड़ के हर दूसरी बालिका पर रूकमणी की छाया नाचती है पहाड़ के हर गाँव में इन देवी देवताओं की पूजा के लिए जगरी की सहायता ली जाती है जगरी द्वारा देवा देवताओं की पूजा के लिए मुर्गी व बकरी कई बली दी जाती है
इस संबंध में जब अंतिम विकल्प न्यूज ने कांडामला के श्री सुरेंद्र सिंह असवाल जी से जानकारी ली ताे उनका कहना था कि जब किसी पर देवता या हंत्या आती है ताे उसके शरीर में कंपन हाेने लगती है कंपन भी इसलिए आती हैं कि जब जगरी (पुजारी) द्वारा जब डाैंर (ढाैलक व थाली ) बजाया जाता है ताे उस संगीत से मंत्र मुग्ध होकर आदमी नाचने लगता है
जब अंतिम विकल्प न्यूज ने ये पूछा कि बलि क्याें दी जाती है ताे उनका कहना था कि पुराने समय में लाेग अपने खाने के लिए देवता पूजा के दिन बकरा या मुर्गी मारते थे धीरे धीरे यह एक प्रथा बन गई
पीर व रूकमणी पर उनका कहना है कि ये सब झूठ हैं इस तरह का भ्रम नवरया व जगरी लाेगाें ने फैलाया है
सुरेंद्र सिंह असवाल का कहना है कि अपनी खुशी के लिए दूसरे की बलि देना महापाप है इस तरह के कार्य करने से बचना चाहिए देवी देवता कभी किसी की बलि नही मांगते।

-पौड़ी से इन्द्रजीत सिंह असवाल की रिपोर्ट

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