उत्तराखंड!मुख्यमंत्री की नजर में उत्तराखंडियाें की भावनाओं की काेई कीमत नही

उत्तराखंड/पौड़ी गढ़वाल- मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने एक समाचार पत्र से बातचीत करते हुये कहा है कि गैरसैंण भावनात्मक मुद्दा है, इसलिये उसका कोई महत्व नहीं है । उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत की किसी भी राज्य की राजधानी केन्द्र में नहीं है। भारत की भी नहीं। उन्होंने कहा कि गैरसैंण का हम विकास कर रहे हैं। वहां एक झील बना रहे हैं।

लोकतंत्र में मुख्यमंत्री जैसे अहम पद पर बैठे किसी व्यक्ति से का यह बयान न केवल घोर आपत्तिजनक है, बल्कि अलोकतांत्रिक भी है। लोकतंत्र में सबकुछ जनता की भावनाओं के अनुरूप ही होना चाहिये। जनभावना ही लोकतंत्र की आत्मा है।

हमारा संविधान भी हमारी भावनाओं, आकांक्षाओं, उत्कंठाओं और बेहतरी के सपनों को साकार करने के लिये बना है। हमारी भावनाओं के अनुरूप ही कानून भी बनते हैं।

हमारी सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी सभी संवैधानिक संदर्भों में भी हमारी भावनायें ही परिलक्षित होती हैं। जनता द्वारा चुना गया कोई प्रतिनिधि अगर जनता की भावनाओं का सम्मान करना नहीं जानता तो वह अलोकतांत्रिक तो है ही मक्कार भी है।

जहां तक गैरसैंण का सवाल है हम सब लोग मानते हैं कि हां, गैरसैंण हमारी भावनाओं का मुद्दा है । गैरसैंण हमारी 42 शहादतों की भावनाओं से जुड़ा है । गैरसैंण बाबा मोहन उत्तराखंउी की शहादत की भावनाओं से जुड़ा है । उत्तराखंड आंदोलन में अपना बलिदान देने वाली हमारी बहनों बेलमती चौहान और हंसा धनाई की भावना से जुड़ा है। राज्य आंदोलन में शामिल उन तमाम लोगों की भावना से जुड़ा है जो एक बेहतर भविष्य का सपना लेकर राज्य आंदोलन में कूदे थे।

इसलिये मुख्यमंत्री जी ! गैरसैंण को इतने हल्के में मत लीजिये, इस लोकतंत्र जिसमें आप जैसे लोगों को भी जनता ने सत्ता सौपी है उस जनता को धौंस दिखाना बंद करो ।

जहां तक गैरसैंण के केन्द्र में होने का सवाल है वह एक तकनीकी बात है। हमारी यह जिद कभी नहीं रही कि गैरसैंण केन्द्र में है इसलिये इसे राजधानी होना चाहिये। हमारी मांग है कि पहाड़ की राजधानी पहाड़ में होनी चाहिये जिसके लिये गैरसैंण से बेहतर और कोई जगह नहीं हो सकती।

यह राज्य के केन्द्र में है यह बात हमारे लिये और अच्छी है। अगर आप देश के अन्य राज्यों की राजधानी केन्द्र में न होने को महत्व दे रहे हैं तो हमें आपकी समझ पर अफसोस है। यह भी कि देश के किसी भी पर्वतीय राज्य की राजधानी मैदान में नहीं है।
आप क्यों गैरसैंण पर कुतर्क गढ़ रहे हैं। जहां तक गैरसैंण के विकास का सवाल है,आपको गैरसैंण का विकास तब भी करना चाहिये था जब वह राजधानी के लिये प्रस्तावित नहीं भी होती ?

क्या आपके तथाकथित विकास के लिये हमें हर क्षेत्र में राजधानी की मांग करनी पड़ेगी। गैरसैंण उत्तराखंड के विकास के विकेन्द्रीकरण की एक समझ का नाम है।
गैरसैंण के आलोक में हम एक पर्वतीय राज्य होने के अहसास का अहसास कर सकते हैं।

साभार : Charu Tiwari
-इन्द्रजीत सिंह असवाल,पौड़ी गढ़वाल

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