*पौड़ी गढ़वाल का इतिहास*
समुन्द्रतल से 1750 मीटर की ऊँचाई में स्थित ” पौड़ी ” हिल स्टेशन के रूप में भी जाना जाता है |
पुरे सालभर में पौड़ी का वातावरण बहुत ही सुहाना रहता है | पौड़ी गढ़वाल की मुख्य नदियों में से अलकनंदा और नायर मुख्य है | इस स्थान की मुख्य भाषा “गढ़वाली” है | अन्य भाषा में स्थानीय लोग हिंदी , अंग्रेजी भाषा को बेहतरीन रूप में बोलते है |यहाँ के लोकगीत , संगीत व नृत्य यहाँ की संस्कृति की संपूर्ण जगह में अपनी पहचान छोड़ते है
मंडल मुख्यालय के साथ ही “पौड़ी” ब्रिटिश काल में गढ़वाल की सांस्कृतिक और प्रशासनिक गतिविधियों का केंद्र है | विभिन्न तीर्थस्थल स्थल भक्त को इस विदेशी जमीन के लिए आकर्षित करता है ( कलेश्वर महादेव मंदिर ) उन्हें एक है | पौड़ी गढ़वाल जिला 9 तहसील और 15 विकास ब्लॉक में विभाजित है |
पौड़ी की अतुल्य सुन्दरता के कारण अंग्रेजो ने इसे हिलस्टेशन के रूप में विकसित किया.
*पौराणिक शासन “पौड़ी गढ़वाल” का*
दस्तावेज के अनुसार पौराणिक काल में पुरे भारतवर्ष में रजवाड़े निवास करते थे | और उनके राजा राज्य में राज करते थे |
इसी प्रकार सबसे पहले उत्तराखंड के पहाड़ो में सबसे पहले राजवंश “कत्युरी” था |
जिन्होंने अखंड उत्तराखंड पर शासन किया और शिलालेख और मंदिरों के रूप में कुछ महत्वपूर्ण निशान छोड़ गए । कत्युरी के पतन के बाद के समय में, यह माना जाता है कि गढ़वाल क्षेत्र एक सरदार द्वारा संचालित साठ से अधिक चार राजवंशों में विखंडित था |एक प्रमुख सेनापति चंद्रपुरगढ़ क्षेत्र के थे
*15 वीं शताब्दी के मध्य में* :- चंद्रपुरगढ़ के राजा जगतपाल (1455 से 14 9 3) के शासन के अंतर्गत एक शक्तिशाली शासन के रूप में उभरा , जो कनकपाल के वंशज थे । 15 वीं शताब्दी के अंत में राजा अजयपाल ने चंद्रपुरगढ़ का शासन किया और इस क्षेत्र पर शासन किया। इसके बाद, उसके राज्य को गढ़वाल के रूप में जाना जाने लगा और उन्होंने 1506 ई से पहले चंद्रगढ़ से देवलागढ़ तक अपनी राजधानी और 1506 से 1519 के बीच श्रीनगर को स्थानांतरित कर दिया।
राजा अजयपाल और उनके उत्तराधिकारियों ने लगभग तीन सौ साल तक गढ़वाल के क्षेत्र पर शासन किया था | इस अवधि के दौरान उन्होंने मुगल, सिख और रोहिल्ला से कई हमलों का सामना किया था।
गढ़वाल के इतिहास में दर्दनाक घटना :-
गढ़वाल के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और बेहद दर्दनाक घटना तब हुई जब गोरखों ने इस पर आक्रमण किया | गोरखे बेहद क्रूर थे और ‘गोरख्याणी’ शब्द कत्लेआम और सेना के लूटमार का प्रयाय बन गया | डोटी और कुमाऊं पर कब्जा करने के बाद गोरखों ने गढ़वाल पर आक्रमण कर दिया, गढ़वाली सेना के जबरदस्त विरोध और चुनौती पेश करने के बावजूद वे लंगूरगढ़ तक पहुंच गए | इसी समय चीन के आक्रमण की खबर से गोरखों ने अपने आक्रमण की धार को कुछ धीमा कर दिया | 1803 में उन्होंने एक बार फिर आक्रमण तेज कर दिया |
कुमाऊं क्षेत्र को पूरी तरह अपने कब्जे में लेने के बाद गोरखों ने पूरी ताकत के साथ गढ़वाल पर हमला बोल दिया | गोरखों की विशाल सेना के सामने गढ़वाल के 5 हजार सैनिक टिक नहीं पाए | इस बीच राजा प्रद्युमन शाह देहरादून भाग गए ताकि गोरखों के खिलाफ रक्षा की नीति बना सकें, लेकिन गोरखों की ताकत के आगे सब बेकार साबित हुआ | इस जंग में गढ़वाली सेना को बहुत ज्यादा नुकसान हुआ और स्वयं राजा प्रद्युमन शाह ‘खुदबुद’ की लड़ाई में मारे गए | सन 1804 में गोरखों ने पूरे गढ़वाल पर कब्जा कर लिया |
*सन 1815 में अंग्रेजो का आक्रमण*
अगले करीब 12 साल तक पूरे उत्तराखंड में गोरखों का क्रूर शासन रहा | इसके बाद 1815 में अंग्रेजों ने गोरखों के जबरदस्त विरोध और चुनौती पेश करने के बावजूद उन्हें यहां से खदेड़ कर काली नदी के पार भेज दिया | 21 अप्रैल 1815 को अंग्रेजों ने पूरे क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया | हालांकि यह भी गुलामी ही थी लेकिन अंग्रेजों ने गोरखों की तरह क्रूरता नहीं दिखाई |अंग्रेजों ने पश्चिमी गढ़वाल क्षेत्र अलकनंदा और मंदाकिनी नदी के पश्चिम में अपना राज स्थापित कर लिया और इसे ब्रिटिश गढ़वाल कहा जाने लगा | इसमें देहरादून भी शामिल था । पश्चिम में गढ़वाल का शेष हिस्सा “राजा सुदर्शन शाह” को दे दिया था | उन्होंने टिहरी को अपनी राजधानी बनायीं | कुमाउं और गढ़वाल के प्रशासन को संभालने के लिए अंग्रेजो ने एक कमिश्नर रखा |जिसका मुख्यालय नैनीताल में था |
उसके बाद 1840 में पौड़ी गढ़वाल को अलग जिला बता कर असिस्टेंट कमिश्नर के अंतर्गत दे दिया | जिसका मुख्यालय “पौड़ी” में बनाया गया | गढ़वाल , अल्मोड़ा और नैनीताल जिलो का प्रशासन कुमाउं क्षेत्र का कमिश्नर संभालता था | सन 1960 में गढ़वाल जिले से काटकर “चमोली” नाम का एक जिला बनाया गया | 1969 में गढ़वाल डिवीज़न का केंद्र बना और इसका मुख्यालय “पौड़ी” को बनाया गया | 1998 में पौड़ी जिले से खिरसू ब्लाक से 72 गांवो को अलग करके एक नया जिले “रुद्रप्रयाग” का गठन किया |
-इन्द्रजीत सिंह असवाल,पौड़ी गढ़वाल