अपने ही पैरों मे कुल्हाड़ी मार रहे किसान

कुशीनगर- “जय जवान जय किसान” का नारा देने वाले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कभी इस बात की कल्पना भी न की होगी कि अन्नदाता कहे जाने वाले किसान भी एक दिन भौतिकता की अंधी दौड़ मे इस कदर अंधे हो जाएंगे कि स्वयं की आजीविका देने वाली धरती माँ से भी खिलवाड़ करने लगेंगे।
हम बात कर रहे हैं गाँवों के वर्तमान परिदृश्य की जहाँ किसान गेहूँ कटने के बाद बचे अवशेष को जलाकर एक ओर पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ा रहे हैं वहीं दूसरी ओर मिट्टी की गुणवत्ता को नष्ट करने के साथ साथ उसे बंजर भी बना रहे हैं।इसी का परिणाम है कि आज खेतों मे बिना रासायनिक खाद का प्रयोग किए कोई भी फसल पैदा नही हो रही है तथा अत्यधिक कीटनाशकों के प्रयोग से फसलों मे उनका संकेन्द्रण हो रहा है जो फसल से होते हुए मनुष्य तक पहुंच कर बिमारी का कारण बन रहा है।सरकार के तमाम प्रयास एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों के जागरूकता कार्यक्रमों के बाद भी किसान फसल अवशेषों को जलाने से बाज नही आ रहे हैं।यदि यही क्रम चलता रहा तो वो दिन दूर नही है जब किसानों के पास भूमि तो होगी लेकिन खेती लायक नही।
– कुशीनगर से जटाशंकर प्रजापति की रिपोर्ट

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *