शाहजहांपुर- यह अख़बार 12 जुलाई 2011 का है।इसमे साफ लिखा है की 4 सितम्बर 2001 से पूर्व नियुक्त को कोई वरियता नही दी जायेगी फिर क्यों वरियता दे कर ट्रेनिग और समायोजन किया गया। यह भी राजनीत है उत्तर प्रदेश में 178000 शिक्षामित्रो में 124000 स्नातक अहर्ताधारी थे। फिर सभी को इस प्रशिक्षण में क्यों मिलाया गया।इसमे यह कही नही लिखा कि यह स्नातक अहर्ताधारी शिक्षामित्र स्नातक कर चुके है। सितम्बर 2001 के पूर्व नियुक्त शिक्षामित्रो को ट्रेनिग के लिए मना नही किया गया केवल वरिष्ठ नही माने जायेगे। और कहा गया की अब अप्रशिक्षित नियुक्त नही किये जायेगे क्योंकि अध्यापक नियुक्त करने की योग्यता स्नातक बीटीसी है। फिर इंटर योग्यता बाले अप्रशिक्षित कैसे नियुक्त माने जा सकते है। पूर्व की सरकार ने हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट में यही कहा था की इंटर योग्यता पर शिक्षामित्रो को रखा गया और सभी स्नातक करने के बाद बीटीसी कर चुके है। स्नातक कर चुके है। और स्नातक अहर्ताधारी है में कोई अंतर ही नही हुआ क्या इसमे जिक्र 4 सितम्बर 2001 का है और हमारी पूर्व सरकार और संगठनो के नेताओ ने समायोजन का आदेश 26 मई 1999 और 1 जुलाई 2000 के अंतर्गत जारी कराया था फिर किसी को दोष देने से क्या फायदा कोर्ट के सामने जो प्रकरण पहुँचा उसमे 4 सितम्बर 2001 के आदेश का जिक्र भी नही था। अपने आप को वरिष्ठ बनबाने के चक्कर में सभी के भविष्य को खराब करने का दोषी कौन है। पूर्व सरकार ने भी यह नही सोचा कि नियमो के साथ खिलबाड़ करना इनकी मौत का कारण बन सकता है। इंटर की योग्यता बाले शिक्षामित्रो के लिए भी नियमानुसार रास्ता है। उनका भविष्य भी सुरक्षित किया जा सकता है पहले हम एक बड़ी सख्या को लाभ दिलाने का प्रयास कर रहे है बाद में उनके लिए भी संघर्ष करेगे। उनको भी अध्यापक पद मिलेगा। लेकिन ग्रेड उनका अलग होगा। सफलता संघर्ष से ही मिलेगी और संघर्ष कोर्ट में ही किया जा सकता है? सड़कों पर नही। आज सरकार कोर्ट का बहाना करती है और कहती है कि कोर्ट ऑर्डर के ऊपर हम नही जा सकते जब कोर्ट ऑर्डर आप के पक्ष में आ जाये तब सरकार को कोर्ट ऑर्डर मानना ही होगा। थोडा वक़्त जरूर लगेगा लेकिन सफलता जरूर मिलेगी।
-देवेन्द्र प्रताप सिंह कुशवाह,शाहजहाँपुर