उत्तराखंड/पौड़ी गढ़वाल- उत्तराखंड जनपद पाैडी गढ़वाल मध्य हिमालय अर्थात उत्तराखण्ड भू-भाग भौगोलिक विषमता और आर्थिक दुर्बलता की उपस्थिति में भी सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना के साथ-साथ राजनीतिक जागरुकता के मामले में सम्पन्न रहा है। अपने भीतर अनेक संस्कृतियों और समाजों को समेटे गढ़वाल और कुमाऊँ का यह भू-भाग ऐसा है जहाँ वर्ष भर कौथिग-मेले और त्योहार आयोजित होते रहते हैं- कुछ धार्मिक तो कुछ सांस्कृतिक और जल अनेक मेलों-त्योहारों के साथ किसी-न-किसी रूप में जुड़ा है। शिव से जुड़े त्योहारों से जल का जुड़ाव विशेष रूप से माना जाता है। आज भी विवाह के बाद गाँव आने वाली नई बहू के लिये धारे-पंदेरे या नौले पर अगली सुबह जाकर पूजा करना और वहाँ से पानी लाना संस्कृति का महत्त्वपूर्ण अंग है।
जहाँ धारे, पंदेरे, मगरे और नौले हुआ करते थे, वहाँ विश्व बैंक की इस योजना ने अपने नल लगा दिये और प्रकृति के कर्म को अपना कर्म दिखा दिया। आज ऐसे स्थानों पर जल निगम या जल संस्थान के नल उग आये हैं। ये न तो देखने में सुन्दर लगते हैं और न ही स्थानीय परिवेश के अनुकूल दिखाई देते हैं। पर विवशता यह कि इनके बिना कोई चारा भी नहीं। जलस्रोत सूखते जा रहे हैं और पानी का संकट बढ़ता जा रहा है।
नाैले धाराें का लुप्त होने का कारण पहाड के गांवाें की भूमि का बंजर पडना आने वाले समय में एेसी स्थिति आ सकती है कि जाे रहे सहे पानी के स्रोत भी है वै भी बंद हो सकते हैं पहले जब जमीन आबाद रहती थी ताे पानी की कमी नही हाेती थी समय पर वर्षा भी हाे जाती थी व नदियाें में अच्छा पानी चलता था आज नदियां भी सूखने की कगार पर है।
-पौड़ी से इंद्रजीत सिंह असवाल की रिपोर्ट