कोरोना वायरस से फैली अचानक महामारी से दुनिया के अधिकांश देश प्रभावित है और अचानक आई इस विपदा से वहां की सरकारें भी चिंतित हैं।इस समय सबसे बड़ी चुनौती है जीवन को बचाये या देश की अर्थव्यवस्था को ।ऐसे में सभी के सामने पहली प्राथमिकता जीवन ही है।लेकिन अर्थव्यवस्था को भी अनदेखा नही किया जा सकता।और इन दोनों में सामंजस्य बैठाने में जो समय लगेंगा उसमें सबसे ज्यादा प्रभावित होता दिख रहा है मजदूर वर्ग ।क्योंकि इसके सामने परिवार का भरण-पोषण पहले है बाद में कोरोना
कोरोना वायरस के चलते देश में फैली महामारी के चलते लाॅक डाउन लगा दिया गया लाॅक लगाने से जहां सरकार को इस महामारी पर काबू पाने के लिए भरपूर समय मिल गया वहीं अचानक लगे लाॅक डाउन से सारे उधोग धंधे ठंडे पड़ गये।इस अचानक लगे लाॅक डाउन से सबसे ज्यादा जो प्रभावित हुआ वह था मजदूर वर्ग ।
रोजाना की देहाड़ी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करने बाला यह वर्ग प्रभावित तो हुआ ही और इस वर्ग ने सब्र भी रखा।और जहां जहां इसका सब्र टूटा तो वही स्थिति भी अचानक बेकाबू हो गयी।केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने इस वर्ग को साधने की तमाम कोशिशें की लेकिन कहीं न कहीं वह कोशिशें इस वर्ग तक पूरी तरह नहीं पहुँच पाईं परिणाम स्वरूप इस वर्ग ने पैदल ही चलकर अपने अपनें घरों पर पहुंचने का निर्णय लिया।मीडिया की रिपोर्टों पर नजर डालें तो कई परिवार के लोग अपने घर नहीं पहुँचने से पहले ही अपनी जान गवा बैठे।
आज 50 दिन के लाकडाउन के बाद भी इस वर्ग को अभी भी अपने परिवार के भरण पोषण की चिंता है और यही चिंता इसे घर से बाहर निकलने पर विवश कर रही है।धीरे धीरे समाज सेवियों का जोश भी अब ठंडा होता दिखाई दे रहा है।इतने समय बाद भी बाहर से अपने प्रदेश जिले व गांव पहुंच रहे लोगों को 10 दिनों के लिए क्वरंटाइन किया जा रहा है इस वर्ग को 50 दिन की तकलीफ झेलने के बाद भी अभी यह दिखाई नहीं दे रहा कि सब कुछ नार्मल हो रहा है।
आर्थिक बोझ के चलते सरकार भी लगातार लाॅक डाउन में ढील देकर धीरे धीरे आगे बढ रही है लेकिन इस वर्ग की चिंता बरकरार है बाहर से घर पहुंच चुके इस वर्ग को क्या काम मिलेगा।यह मजबूर जहाँ से अपने अपनें घरों को पहुँच चुके है वहां के उधोग धंधों को गति मिलेगी यह सोचनीय प्रश्न है । प्रदेश सरकारों का जबाब है हम इस वर्ग को लेकर प्रयासरत है जल्द ही प्रदेश में नये उधोग लगाये जायेंगे क्या यह सब इतना आसान है।क्या यह सब इतनी जल्दी हो जायेगा कि इस वर्ग का सब्र नहीं टूटेगा।
यदि समय रहते कोई ठोस रणनीति नहीं बनी और इस वर्ग का सब्र टूट गया तो कोरोना से तो शायद इतनी मौतें न हो जितनी भूख से हो जायेंगी
– अनुराग सक्सेना