करोना जैसी वैश्विक महामारी रसूखदारों की उपज है जो विदेशों में घूमने व सैर-सपाटे करने जाते हैं और चोरी छिपे देश के अन्दर आ दुपके हैं अपना जांच कराने में शर्मिन्दगी महसूस करते हैं , धड़ल्ले से पार्टीयां अटेन्ड करते हैं और लोगों के बीच में मधुर मधुर वायरस फैलाते हैं और देश को स्टेप टू में पहुंचा देते हैं। जब स्टेप थर्ड की बारी आती है तो गरीबों पर मानों पहाड़ ही टूट जाती है।
मैं सरकार से पूछना चाहता हूं जब बैश्विक महामारी का लक्षण विश्व समुदाय में तीन महीने पहले से ही चल रहा था तो विदेशों में गये रसूखदारों को मेरी सरकार ने कोई एडवाइजरी क्यो नही जारी की? केवल एयर इंडिया के फ्लाइट को परमिशन ही क्यो नहीं दी? पूरी आयातित वायरस प्राइवेट एयर लाइंस की देन है। जो प्रारंभिक जांच में सहयोग नहीं दिया, धीरे धीरे समूह में फैलने की आशंका हो गयी तो देश को पूर्णतः लाकडाउन कर दिया गया। देश को लाकडाउन करने के दौरान उन मजदूरों का किसको खयाल जिसका महानगरों में कोई अपना आसियाना नहीं है जो अपने घरों में रहेंगे काम बन्द होते ही अपने मातृभूमि को याद करने लगते है,अपने मासूम बच्चे को कन्धो पर रख कर पैदल ही मातृभूमि पहुंचने की ठान लेते है।
बाद में बही रसूखदारों के बेटे अपने घरों में बैठ कर मजदूरों के पैदल यात्रा समाचार में देखने के बाद ठहाके लगाते हैं ,और कहते हैं ये सुधरे गे नहीं।
साहब हम बिगड़े ही कब थे, पेट की आग कुछ भी करा देती है , दिल्ली से पटना,सूरत से सतना पैदल घूमा देती है रास्ते में पुलिस की लाठियां भी खिला देती है।
-आशीष कुमार मिश्र एडवोकेट उच्च न्यायालय इलाहाबाद प्रयागराज।
लीगल एडवाइजर ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन वाराणसी।
सीधी बात :मरते तो साहब गरीब ही है,उनका अपराध ही गरीबी है
