“सबका साथ सबका विकास” ये जुमला हमेशा चुनाव के वक़्त जोर शोर से सुनाई देता है। देश की राजनीतिक पार्टी ने इस देश को बांटने में कोई कोर कशर नही छोड़ी है। नफरत की बीज इस तरह से बो दिए है, कि हर लोग एक दूसरे जाती को किसी कारण के लिए जिम्मेदार समझने लगी है। दलित , राजपूत और ब्राह्मण के ऊपर अत्याचार का आरोप लगता है तो ये उच्च जाती के लोग उन्हें दलित कहकर उन्हें आरोपित समझ लेते है। सबको सिर्फ अपने ही विकास से मतलब है। और सच मने तो विकास किसी का नही हो रहा , सिर्फ उची शिक्षा ले लेना या फिर ऐसी कार में घूमने से या ब्रांडेड कपड़े पहन लेने से या फिर अच्छी भोजन कर लेने से , या अंग्रेजी गाने सुनने से हम विकास की दर को नही आंक सकते ,जब तक कि हमारी सोच और समझ मे विकास नही हो जाता। और मैं विश्वास के साथ कह सकता हु की हमारी मानसिकता में विकास आ भी नही सकता । क्यों कि ये राजनेता और राजनीतिक दल हमारे मानसिक विकास होने भी नही देंगे। क्यों कि ये जानते है , हमे चुनाव जीतना हैं और सत्ते का लाभ उठाना है। हम विकास कर रहे या फिर इन विकास की जुमले बाजी में फसें है। लोगो को अपनी रोजी रोटी कमाने से फुरसत ही नही है तो वो क्या समझेंगे की हमसे कहाँ चूक हो रही हैं। हम किस पार्टी को वोट दे रहे हैं।और कौन हमारा प्रतिनिधि बन कर संसद जा रहा है। बस एक वोट ही तो डालना है। जब समय आएगा तो निर्णय कर लेंगे की किसको वोट दे। 50 दिन भी गुजर गए ,GST भी लागू हो गया , नए नोट भी छप गए , जनधन योजना भी आ गए, उज्ज्वला योजना भी लागू हो गए, स्किल इंडिया भी चल रहा है।और भी बहुत सारे योजना जो हमारे देश के प्रधानमंत्री मोदी जी लेके आये पर अभी तक इनका क्या असर हुआ लोगो के जीवन मे। क्या बदल गया, कौन सी चीज ऐसी हो गई की जिससे हम ये समझ ले कि हमारा विकास हो गया। क्या तेल के दाम घट गए, दवाई सस्ती हो गई ,इलाज करवाना सस्ती हो गई। खाने पीने और पहनने के चीज सस्ती हो गई, ट्रैन में भर घट गई, कंफर्म टिकट मिलने लगा , सड़के अच्छी हो गई। बस का सफर अच्छा हो गया, किसान की हालत में सुधार आ गया, भ्रस्टाचार खत्म हो गई। आंतकबाद में कमी आ गई, सब्जी मसाले के दाम कम हो गए। बच्चों के शिक्षा में सुधार आ गया। सरकारी स्कूल डिजिटल हो गए। पीने के पानी की समुचित व्यवस्था हो गई। आखिर कौन सी ऐसी चीज हो गई भाजपा सरकार में जो हम मान ले कि सचमुच में विकास हो गया। कही की तस्वीर कही लगा कर विकास की ये झूटी खबर और समाज को हिन्दू मुस्लिम में बांट कौन से विकास की बात कर रहे है। वर्तमान में ट्रेन की स्थिति को बिना सुधार कर बुलेट ट्रेन के सफर का सपना दिखा कर आप किसको बेवकूफ बना रहे है। देश का हर तिसरा और चउथा वक्ति भूख और गरीबी से मर रहा , ये सब छोड़ कर हम बुलेट ट्रेन के पीछे पागल है। जिसकी सवारी करना भी दूर नजदीक से देखने का भी मौका नही मिलेगा। दो सौ की दिहाड़ी करने वाले मजदूर को क्या लेना देना की बुलेट ट्रेन कैसा । उसे तो बस अपने और परिवार के दो वक्त की रोटी ही जुगाड़ हो जाय तो काफि है। हिन्दू मुस्लिम के नाम पर दलित और उची जाती के नाम पर देश को बांट कर राजनीति करना ठीक नही है । मुसलमानों की अगर बात की जाय तो
उनके बारे में कहा जाता है कि वे कट्टर होते हैं. कुछ होते होंगे. मगर यह कैसे हो रहा है, गाय बचाने के नाम पर वे मार दिए जा रहे हैं? टोपी पहनने की वजह से वे जान गँवा रहे हैं? खाने के नाम पर उनके साथ नफ़रत की जा रही है?
उनके बारे में यह बताया जाता है कि वे ‘हम पाँच और हमारे 25’ पर यक़ीन करते हैं. मगर क्यों हम सब तीन-चार बीवियों वाले किसी मर्दाना मुसलमान पड़ोसी के बारे में आज तक जान नहीं पाए? किसी ने आज तक अपार्टमेंट में रहने वाले किसी मुसलमान पड़ोसी के 25 बच्चे गिने?
कहते हैं, उनका सालों से ‘तुष्टीकरण’ हुआ. तुष्टीकरण- नहीं समझे? यानी उन्हें सरकारों की तरफ़ से सबसे ज्यादा सुख-सुविधा-सहूलियत मिलती है. उनको दामाद की तरह इस मुल्क में रखा जाता है… है न… ऐसा ही है क्या?
पर सवाल है इसके बावजूद वे ‘सबका साथ, सबका विकास’ में निचले पायदान पर क्यों हैं? दरअसल, वे तो सच्चर समिति, रंगनाथ मिश्र आयोग, कुंडू समिति के दस्तावेजों में दर्ज ‘विकास’ की हकीक़त हैं.
धर्म के नाम पर लंबी भाषण देने वाले , TV चैनल पर बहस करने वाले क्या वो सही मायने में महाभारत, रामायण या फिर कुरान को पढ़ा है, नही ना , अगर वो धर्म को अच्छी तरह से पढें या समझे है। तो उनको कभी भी इस प्रकार के डिबेट में आने की जरूरत नही पड़ती। हम समझ नही पा रहे हैं , चुनाव में हमारा सिर्फ राजनीति पार्टी द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है। सरकार बने चार साल बीत गए। ना राम मंदिर बना और ना ही मस्जिद। वक़्त आ चुका है कि देश की जनता समझदार हो जाये । नही तो ना हम विकास करेंगे और ना ही देश विकास होने वाला है।
– पूर्णिया से शिव शंकर सिंह