अभी हाल ही में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा इंडियन पेनल कोड 1860 की धारा-124ए के बारे में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि यह कानून अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था, जिसका उद्देश्य था कि आजादी का आंदोलन कैसे दबाया जाये आज भी यह कानून की धारा प्रभावी है। निर्णय देते हुए कहा कि आईपीसी की धारा-124ए की कठोरता मौजूदा सामाजिक परिवेश के अनुरुप नहीं है। इसके प्रावधान पर पुर्विचार की अनुमति है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने आगे कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि केन्द्र व राज्य सरकारें नए मामलों में दर्ज करने, जांच जारी रखने या कार्यवाही करने से खुद को दूर रखेगी। निसंदेह उच्चतम न्यायालय की उक्त निर्णय स्वागतयोग्य है। लेकिन इस निर्णय और टिप्पणी के बाद एक नहीं बल्कि अनेक प्रश्न उठ खड़े उठे हैं। पहला यह है कि अभी तक पढ़ाया जा रहा था कि भारत का संविधान 1947 में गठित संविधान समिति ने बनाया, जो 26 जनवरी 1950 को प्रभावी और लागू हुआ, तो प्रश्न यह उठता है कि जब संविधान समिति द्वारा लिखा हुआ संविधान 26 तनवरी 1950 में प्रभावी और लागू हुआ जो संविधान समिति तो इस संविधान में 1860 का इंडियन पेनल कोड 1860 कैसे प्रभावी हो गया? इसी प्रकार हम भारत के संविधान में बहुत से अधिनियम ऐसे हैं तो संविधान लिखने से पूर्व हैं और दौरान के और बाद के आज भी प्रभावी और लागू हैं। जैसे सेन्ट्रल एक्साइज एक्ट 1944, इंडियन चार्टड एकाउंटेंट अधिनियम, 1949, भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932, सूची लम्बी ही होगी। इस निर्णय ने हमारे विचारों को बल दिया है क्योंकि 2010 में मेरे द्वारा एक लेख लिखा गया था जिसमें यह प्रश्न उठाया था कि जब संविधान समिति ने 1947 से 1950 तक संविधान लिखा गया था तो इंडियन पुलिस एक्ट, 1860 (जिसमें पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति होती है, क्योंकि उनके कन्धों में आई पी एस का बैच लगा रहता है) इसी प्रकार हम आगे अध्ययन करेंगे तो पढ़ेगे कि आज भी भारत के संविधान के अन्तर्गत जो अधिनियम लागू एवं प्रभावी ह ैवह 1947 से पूर्व के ही हैं, जिनको ब्रिटिश शासन काल में भारतीयों पर शासन करने के लिए बनाया गया, और जो कि ब्रिटिश का हाउस का काॅमन द्वारा पारित किया गया, अब आप विचार कर सकते हैं और समझा सकते हैं कि इन कानूनों को लागू एवं प्रभावी करने के लिए उनकी क्या भावना रही होगी! इसके साथ ही यह भी प्रश्न सामने आता है कि 152 साल (1860 में लागू) के समय देश की समय, काल परिस्थिति क्या थी? और 78 साल बाद समय, काल और परिस्थिति आज क्या है? गुलामी शासन के कानून आजदी के दौरान लागू रहना विचारणीय प्रश्न है। विचार यह भी करना होगा कि पिछले 10 से 20 सालों में कानून बनाये गये हैं, उनमें क्या नया है और क्या पुराना है। मैं आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूं कि सेन्ट्रल एक्साइज एक्ट, 1944 (78 साल पुराना) प्रभावी किया गया था, कस्टम एक्ट 1962, आयकर अधिनियम, 1961 (62 साल पुराना) एवं सेवाकर अधिनियम 1994 ;वित्त अधिनियम 1994, 28 साल पुरानाद्ध कितने प्रभावी है और सार्थक रह गये हैं। फिर बात करें माल एवं सेवाकर अधिनियम, 2017 की तो जब आप इस एक्ट का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि जीएसटी एक्ट धरातल पूरी तरह से सेन्ट्रल एक्साइज एक्ट, 1944, कस्टम एक्ट 1962 एवं इंडियन पेनल कोड 1860 से प्रभावित और गर्वनड हो रहा है। अर्थात जीएसटी एक्ट को कितना आधुनिक और वर्तमान परिवेश के अनुसार बनाया और लागू किया गया, कहा जा सकता है? उदाहरण के लिए देखें जीएसटी एक्ट की धारा 67 उपधारा 10 को सपठित धारा-69 उपधारा 2 एवं 3 गिरफ्तारी की व्यवस्था, जिसमें तलाशी और अभिग्रहण के संबन्ध में दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के उपबंध का उल्लेख आया है। अर्थात 49 साल पुराना, 2017 में भी लागू एवं प्रभावी किया गया। तो जीएसटी एक्ट में नया क्या है, जब सजा के प्रावधान गुलामी के समय कानून के लागू एवं प्रभावी है। कहने और लिखने का तात्पर्य है कि हमारे देश में जो कानून बनकर लागू हुए हैं कि वह 40 से 75 साल पूराने हैं तब देश की आबादी मात्र 33 करोड़ की थी, प्रतिव्यक्ति आय 330 रुपये की थी, लेकिन आज देश की आबादी 136 करोड है और प्रति व्यक्ति आय 1.70 लाख रुपये, जीडीपी 8 प्रतिशत के आसपास, लेकिन प्रश्न फिर उठता है जब उच्चतम न्यायालय द्वारा 152 साल पुराने कानून पर टिप्पणी की है, जनमानस और जागरुक व्यक्तिओं को एक बहुत ही मजबूत मुद्दा मिल गया है, आईपीसी की धारा-124ए के साथ बहुत से पुराने कानूनों को बदलते हुए नये कानूनों बनाने के साथ उनको लागू एवं प्रभावी की मांग की जाने लगेगी। हम भी इसके समर्थक हैं। आपको याद होगा कि पिछले माह ही मेरे द्वारा भी वीडियो में लेख में सरकार से मांग की गई कि हमारा मानना है कि चाहे केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकार हो, बनने वाले कानूनों की समीक्षा एक समय के बाद होती रहनी चाहिए। क्योंकि कानून बनने के बाद विभाग एवं मंत्रालय द्वारा कानून में सुधार हेतु नये नये आदेश परिपत्रों, अधिसूचनाओं द्वारा विधायी द्वारा संशोधनों में माध्यम से कानून की मूल भावना समाप्त तो ही हो जाती है, साथ हर पांच अथवा दस साल समाज में परिवर्तन के चलते सामाजिक परिवेश में अंतर आ जाता है। हमको मालूम है कि हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश हित में कड़े से कड़ा निर्णय लेने में हिचकते नहीं हैं, और उच्चतम न्यायालय की इस टिप्पणी और निर्णय का कोई प्रभावी परिणाम देश को देंगे। लेकिन हम पुनः कहेंगे कि 2017 में लागू हुए माल एवं सेवाकर अधिनियम 2017 को लागू एवं प्रभावी हुए 5 साल बीतने जा रहे हैं अतः इस प्रणाली और कानून से 5 साल में क्या खोया और क्या पाया, क्या सफल प्रणाली कही जा सकती है? इसके साथ ही आयकर अधिनियम 1961 जिसको लागू एवं प्रभावी हुए 62 साल व्यतीत हो चुके हैं, इसी प्रकार सेन्ट्रल एक्साज एक्ट 1944 (78 साल) एवं कस्टम एक्ट 1962 ;61 साल) पुराने क्या देश हित और राजस्वहित में कहे जा सकते हैं, क्या इन कानूनों में बदलाव की परम आवश्यकता नहीं है? और आप भी मेरे विचारों से सहमति रखते हैं तो अवश्य ही इस विषय पर सरकार को पत्र लिखें और कर जानकारी में प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं।
-पराग सिंहल, आगरा