दुष्कर्म के आरोपियों को क्यों न मिले शरीयत के हिसाब से सजा

आज देश में बढ रही लगातार दुष्कर्म और छेड़छाड़ की घटनाओ पर किसी भी प्रकार का अंकुश लगता नहीं दिखाई दे रहा।महिला के सम्मान की बात सब करते है किन्तु क्या आज केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार इस पर अंकुश लगाने में सफल हो पा रही है शायद नहीं कारण लचीलापन।
कानून व्यवस्था ऐसी कि घटना होने पर कभी जांच के नाम पर कभी हीला हवाली में इतना समय लग जाता है कि आरोपी ही कानून का सहारा लेकर बच जाते है और कभी कभार सजा हो भी जाये तो फिर होती है कानून में ही अपील पहले हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट नतीजा इंसाफ होते होते इतना समय लग जाता है कि पीड़ित भी अपना सब्र खो देता है।
सरकारों द्वारा सख्त कानून की पैरवी तो की जाती है किन्तु होता कुछ नहीं कारण अगर सत्ता पक्ष कुछ करना चाहता है तब विपक्ष अपनी टांग अड़ा देता है।क्योंकि विपक्ष का काम ही है टांग अड़ाना। नजीता जीरो।ऊपर से मानवाधिकार आयोग,अल्प संख्यक आयोग जानें कितने आयोग और संस्थाये सामने आते है और फिर शुरू हो जाती है राजनीति। नतीजा जीरो।
क्या बेटी,लडकी,बहु,बहन,माँ यह सबकी है धर्म कोई भी हो मजहब कोई भी हो।लेकिन हमें जन्म इन्ही से मिला है।जो दरिंदे दरिंदगी करते है उन्हें भी जन्म इन्ही ने दिया है लेकिन मानसिकता का क्या।
क्यों न इन पर लागू किया जाये शरीयत का कानून। शरीयत का कानून सजा ऐसी कि रूह कांप जाये।जब सुनकर कांप रही है तो देखकर क्या होगा। इतना निश्चित है कि मानसिकता बदल जायेगी। क्योंकि जहाँ शरीयत का कानून लागू है वहां इस तरह की घटनाएं होती ही नहीं। इस बात की सच्चाई आकड़ों से देखी जा सकती है।
(यह लेखक के अपने विचार है)
– रविश आब्दी,सहारनपुर

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