फिर से दिल दहलाने वाली दो घटनाएं जिसको पढ़कर ऐसा लगता है, देश का चौथे स्तंभ को कमज़ोर करने की कोशिश बदस्तूर जारी है, पत्रकार को जला दिया जाता है,भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ को दबा दिया जाता है,फिर तोड़ दिया जाता है क़लम,बिखर जातीहै स्याही ,जला दिए जाते हैं पत्रकार के परिवार के अरमान,ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में राकेश सिंह पत्रकार के साथ हुआ,और दूसरी घटना उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर की है,पत्रकार प्रदीप सिंह की 18 वर्षीय बेटी को दबंगो ने उसके घर के सामने ज़िंदा जला दिया। घटना के तीन घंटे बाद मौक़े पर पुलिस पहुंची। आनन-फानन मेंअस्पताल में भर्ती कराया गया,इलाज के दौरान किशोरी की मौत हो गई। पीड़िता के पिता प्रदीप सिंह पूर्व पत्रकार हैं और उनका अपने ही गांव के कुंवर सिंह के साथ ज़मीन विवाद चल रहा था। उत्तर प्रदेश पुलिस ने इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया है।
उत्तर प्रदेश के बलरामपुर के पत्रकार राकेश सिंह को भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए सज़ा मिली।
ग्रामसभा कलावारी में महिला प्रधान सुशीला देवी और उसके बेटे के द्वारा भ्रष्टाचार किया जा रहा था एवं सरकारी पैसे का दुरुपयोग हो रहा था,यह आवाज़ राकेश सिंह ने उठाने की कोशिश की और उसको जिंदा जला दिया गया, फिर से एक पत्रकार की हत्या हो गई, फिर खामोश हो गया एक क़लम, फिर से बिखर गया पत्रकार का परिवार । पत्रकार की मौत पर हम पत्रकार खामोश है, हमारे क़लमो में ज़ंग लग गया है,शायद डरते हैं कहीं यह घटना हमारे साथ ना हो जाए, कब तक डर के जिओगे, हमको गर्व होना चाहिए के हम इस देश के चौथे स्तंभ हैं। क्योंकि भगत सिंह से लेकर गांधीजी तक जिन्होंने आज़ादी के लिए क़लम को भी हथियार बनाया था। शायद आपको विश्वास नहीं होगा भगत सिंह और चंद्रशेखर यह दोनों वीर पुत्र भी पत्रकार थे । भगत सिहं और चंद्रशेखर आज़ाद की पत्रकारिता शायद हम में से बहुत कम लोगो को इस बात का अंदाज़ा होगा कि भगत सिंह के क्रन्तिकारी जीवन की शुरुआत ‘प्रताप‘अख़बार से हुई थी । यह अख़बार भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के जानेमाने सिपाही सुधारवादी गणेशशंकर विद्यार्थी का था,भगत सिंह इस क्रन्तिकारी अख़बार में नौकरी करते थे उनकी छवि एक निर्भीक एवं निष्पक्ष पत्रकार की थी।
भगत सिंह की चन्द्रशेखर आज़ाद से मुलाकात भी इसी अख़बार में नौकरी करते हुए हुई थी ।
‘प्रताप‘ में प्रकाशित लेखों के कारण गणेशशंकर ‘विद्यार्थी’ को 5 बार जेल जाना पड़ा था । अंग्रेज़ों के शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाने के चलते ‘प्रताप‘ की लोकप्रियता मानो अपने चरम पर थी । जैसे इस दौर में पत्रकारों की आवाज़ को दबाने के लिए मारा जाता है, वैसे ही आज़ादी के समय गणेशशंकर विद्यार्थी की आवाज़ को हमेशा हमेशा के लिए बंद कर दिया गया था । आज़ादी के समय देश में फैली क्रांति को देख अंग्रेज़ों ने लोगों की एकता में सेंध लगाना शुरु किया था और इसके तहत उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानो में फूट डाल दी थी, देश की जनता का ध्यान आज़ादी के आंदलनों से भटक कर हिन्दू-मुस्लिम के दंगो पर जा पहुंचा था, तब समाचार पत्र प्रताप ही था जो सांप्रदायिक सद्भाव के हिमायती अख़बार के तौर पर उभरा था,हिन्दू-मुस्लिम के दंगो को सुलझाने वाले समाचार पत्र प्रताप के संपादक गणेशशंकर विद्यार्थी की हत्या 25 मार्च1931 को कर दी गई थी । हर दौर में चौथे स्तंभ को कमजोर किया जाता है, पर इस स्तंभ की नींव इतनी मजबूत है, लाख कोशिश कर ले भ्रष्टाचारी पर यह स्तंभ को हिला नहीं सकते । आइए मैं आपको और भी हमारे पत्रकार गुरु भाइयों की जानकारी देता हूँ जिन्होंने आज़ादी से लेकर भारत माता की सेवा में अपना जीवन न्योछावर कर दिया ।
1830 में राममोहन राय ने हिंदी साप्ताहिक ‘बंगदूत’ का प्रकाशन शुरू किया था। महात्मा गाँधी में सहज पत्रकार के गुण थे, पत्रकारिता उनके रग-रग में समाई हुई थी, जिसे उन्होंने मिशन के रूप में अपनाया था। स्वयं गाँधी के शब्दों में मैंने पत्रकारिता को केवल पत्रकारिता के प्रयोग के लिए नहीं बल्कि उसे जीवन में अपना जो मिशन बनाया है । गांधी जी ने साप्ताहिक अखबार इंडियन ओपिनियन,यंग इंडिया, दैनिक नव जीवन और हरिजन सेवक जैसे समाचार पत्रों के माध्यम से आज़ादी के संदेश भारत के जन-जन तक पहुंचाएं ।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मोहम्मद अली जौहर जिन्होंने पहली बार गांधी जी को महात्मा गांधी कहा था,उन्होंने 1911 में साप्ताहिक समाचार पत्र द कामरेड की शुरुआत की और आज़ादी में इस अखबार ने अहम भूमिका निभाई , मौलाना आज़ाद का उर्दू साप्ताहिक अखबार अल हिलाल हो, या दादा माखनलाल चतुर्वेदी का समाचार पत्र कर्मवीर हो,या बाल ठाकरे द्वारा शुरू किया गया साप्ताहिक अखबार मार्मिक हो, अटल बिहारी बाजपाई भी पत्रकार रह चुके हैं, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के निर्देशन में राजनीति का पाठ पढ़ा और पाञ्चजन्य,राष्ट्रधर्म,दैनिक स्वदेश और वीरअर्जुन जैसे समाचार पत्र और पत्रिकाओं के संपादन का कार्य किया ।
इसलिए मुझे भी गर्व है पत्रकार होने का भले मेरी जेब छोटी हो पर मेरे हौसले बुलंद है, मुझे हौसला मिलता है मेरे पूर्वज पत्रकार साथियों से,मुझे गर्व है ऐसी जमात का हिस्सा होने पर जिसमें महात्मा गांधी,भगत सिंह चंद्रशेखर आज़ाद, मौलाना आज़ाद,गणेश शंकर विद्यार्थी, राम मोहन रॉय, दादा माखनलाल चतुर्वेदी,अटल बिहारी वाजपेई, मौलाना मोहम्मद अली जौहर जैसे,इसलिए मैं कहता हूँ गर्व से कहो मैं पत्रकार हूँ ।
मौत तो आनी है एक दिन
जान तो जानी है एक दिन
तो इन भ्रष्टों से क्या डरना
इसलिए कहता हूँ
हमेशा सच लिखना
इन भ्रष्टों के आगे
नहीं झुकना
मोहम्मद जावेद खान
संपादक , भोपाल मेट्रो न्यूज़