एक आवाज बने दहेज के खिलाफ

आज दहेज प्रथा एक अभिशाप बन चुकी है। जो कि अब गरीब से अमीर घरानों में हैसियत के हिसाब से देहज मांगना जैसे अब आम परंपरा बन चुकी है। हालिया समय में आम से खास शादियों में दहेज की मांग को देखा जा सकता है।

इसी दहेज के लेन देन के कारण ही विवाह के पश्चात महिलाओं के साथ हिंसात्मक गतिविधियां होती हैं जिसका रिश्तो पर इसका बहुत गलत प्रभाव पड़ता है।

हमारे देश में धीरे-धीरे दहेज प्रथा बढ़ती ही चली जा रही है आज के इस आधुनिक युग में भी दहेज प्रथा देश में एक अभिशाप के रूप में अपने पैर पूरी तरह फैला चुकी है। आज भी इस सदी में बेटी के जन्म लेते ही गरीब परिवारों में आमतर माता-पिता के सिर पर चिंता सवार हो जाती है।

चिंता इस बात की नहीं होती की लड़की की पढ़ाई कैसे कराएंगे !! चिंता तो इस बात की होती है कि विवाह कैसे कराएंगे, विवाह के लिए देहज इकट्ठा करेंगे, अगर दे दे भी देंगे तो क्या फिर भी हम से आगे दहेज की मांग नहीं होगी या फिर भी हमारी लड़की सुख से रह पाएगी या नही यही दुख माता पिता को हमेशा अंदर ही अंदर खाता रहता है।

हालांकि पहले के मुकाबले भारत मे भूर्ण हत्या के आंकड़ों में काफी कमी आई है परंतु अभी भी ज्यादातर घरों में बेटी पैदा होती है तो गरीब समाज मैं उनके लिए चिंता का समय होता है क्योंकि आज भी देश में गरीबी का हाल किसी से छुपा नहीं है।
महिला उत्पीड़न का सबसे बड़ा कारण है दहेज प्रथा है जोकि आज भी हमारे समाज के माथे पर एक कलंक के जैसे चिपका हुआ है। जोकि समाज को ही उतार फेंकना होगा।

वैसे तो भारत देश विकसित देशों में गिना जाता है परंतु दहेज प्रथा जैसे खोखले रिवाज आज भी हमारे देश भारत को विकसित होने से रोक रहे हैं और हमारी सोच पर अंकुश लगाने का काम कर रहे हैं।

हमारे देश में दहेज ने व्यापार का रूप ले लिया है जो शुरुआती समय में तो जेवर, कपड़े, फर्नीचर, गाड़ी, टेलीविजन तक की बातें ही दहेज में सुनने को आती थी परंतु अब तो आमतौर पर मोटी रकम की डील लड़की वालों से लेने देने की खबरें भी समाज मे आम हो गई हैं। वर्तमान में भारत के अंदर दहेज एक विकराल और कुर रूप ले चुका है जिसके समाज पर काफी दुष्प्रभाव भी पढ़ रहे हैं।

आमतौर पर आपने देखा होगा ऐसा भी होता है अगर विवाह के समय दहेज में कमी हुई तो लालची लोग शादी किए बिना ही बारात वापस ले जाते हैं अगर गलती से शादी हो भी जाती है तो देहज के लालच में लड़की को यातनाएं देते है लड़की के जीवन को नर्क बना देते हैं।
अधिकतर देखने को यह भी मिलता है लड़की से शादी के बाद आगे देहज की मांग पूरी ना होने पर लड़की को परेशान करना सुरु कर देते है और तलाक डिवोर्स तक दे देते हैं। जिसके बाद दहेज के लालच में दूसरी शादी तक कर लेते हैं ऐसे में अधिकतर लड़कियां या तो कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने को मजबूर होती है या सास-ससुर वालों के ताने सुनकर आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाती हैं।

अगर आम तौर पर इस्लाम धर्म में दहेज की बात करें तो इस्लाम में देहज लेन-देन करना, मांगना पूरी तरह नाजायज करार दिया गया है।

देहज को लेकर नबी एं पाक सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है कि: “तुम में से कोई व्यक्ति मोमिन नहीं हो सकता जब तक कि उसकी स्वयं की इच्छा इस शरीयत के अधीन न हो जाए जिसे लेकर मैं आया हूँ।” (हदीस)

प्रत्येक अहले ईमान को अपने सभी उमुर व मामलात को उसी शरीयत के अधीन कर देना लाजिमी है , अगर वह मुसलमान रहना और मुसलमान ही मरना चाहता है। उसे उन जाहिलाना और गईरासलामी रस्म व रिवाज और तौर तरीकों को छोड़ देना होगा जो शरीयत इस्लामी के खिलाफ हो

शादियों में जिन जाहिलाना और गैर इस्लामी संस्कार का रिवाज हो चुका है, उनमें एक "दहेज" है। जो मुहर की जिद में शरीयते इस्लामी के खिलाफ परवान चढ़ चुकी है।

शरीयत में लड़की पर कोई जिम्मेदारी नहीं डाली गई है। पुरुषों को अपनी हैसियत के मुताबिक आवश्यक मामलों में धन खर्च करना चाहिए। अल्लाह का इरशाद है:

“पुरुष महिलाओं पर कीवाम हैं इस आधार पर कि वे अपने माल को खर्च करते हैं।” (सूरत निसा)

हाल ही में देहज उत्पीड़न को लेकर एक वीडियो वायरल हुआ था। जिसमे आयशा खान के साथ जो हुआ वह अपने पति आरिफ खान और ससुराल द्वारा दिए गए मानसिक तनाव के कारण ही आत्महत्या को मजबूर हुई थी। अंत में मेरे अपने देशवासियों शिक्षकों, सामाजिक संगठनों, धर्मगुरुओं से यही अपील है कि वह इस दहेज प्रथा के खिलाफ आगे आए अपना सहयोग दें ताकि अब और किसी गरीब बाप की बेटी आयशा ने बन सके।

लेखक – सोनी खान, सहारनपुर।

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