वो बचपन की यादें

वो बचपन की अमीरी न जाने कहां खो गई जब पानी में हमारे भी जहाज चलते थे।
कितनी मासूम है वो यादें जिनमें बचपन बीता था सच कहते है लोग, लोग मर जाते है पर यादें कभी नही मरती। चाह कर भी हम उस दिन को वापस ला नहीं पाते, खेलते खेलते चाहें छत पर सोयें या ज़मीन पर आँख बिस्तर पर ही खुलती थी ।
जब देखते है किसी बच्चे की शैतानी करते हुए तो हमारा दिल भी हंस पड़ता है,ना कुछ पाने की आशा ना कुछ खोने का डर क्यूंकि मम्मी पापा करते थे फ़िकर।
मनुष्य के जीवन का सबसे सुनहरा पल है बचपन, जिसे पुनः जी लेने की लालसा हर किसी के मन में हमेशा बनी रहती है।परंतु जीवन का कोई बीता पहर लौटकर पुनः वापस नहीं आता, रह जाती है तो बस यादें जिसे याद करके सुकून महसूस किया जा सकता है।
क्या बचपन था ना किसी से बैर, न किसी से द्वेष, ना समय की फिक्र ना किसी चीज की चिंता, केवल हंसना, खेलना, खाना-पीना, स्कूल और कुछ गिने चुने दोस्तों में सिमटी हुई सी बेहद ही खूबसूरत सी जिंदगी।
एक वो आखिरी दिसंबर हुआ करता था। जब कार्ड के गत्ते पर ,मोम की पेंटिंग्स से हैप्पी न्यू ईयर लिखा करते थे, उस समय कमबख्त हर दोस्त शायर हुआ करता था।
बस वो बचपन था जिस दोस्त से लड़ाई हुई अगले दो मिनट में दोस्ती हो जाती थी,आज तो अगर दोस्त गुस्सा हो जाये, तो कोई नहीं आता एक-दूसरे से दोस्ती करने।
बचपन के घरौंदो की वो मिट्टी याद आती है याद होती जाती है जवां बारिश के मौसम में तो, बचपन की वो कागज की नाव याद आती है।

-सौरभ पाठक पत्रकार

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