कहानी|संजय मनावत
एहसास मेरी मां जब मैं किसी दिन कार्य की व्यस्तता के चलते खाना नहीं खा पाता हूं तो एक माँ ही है जो बिना किसी सिग्नल, बिना किसी कनेक्शन, बिना किसी वाईफाई के बता देती हैं आज कि आज तूने खाना नहीं खाया, मैं कितना भी घुमा फिरा कर कह दूं… कि मैंने कुछ खा लिया था परंतु कहते हैं ना दिल का रिश्ता बढ़ा करीब का होता है चाहे कितना छुपा लो सत्य पता लग जाता है…चाहे आप ना बता बताएं
इस दुनिया में चाहे कितने भी ऋण और कर्ज हो चुकाए जा सकते है लेकिन माँ के प्यार और ममता के मोल को कभी भी नही चुकाया जा सकता है यहाँ तक एक माँ अपने पुत्र को इस संसार में पाने के लिए सारे दुखो को भूल जाती है एक सन्तान जो की माँ के कलेजे का टुकड़ा ही होता है जिसे चाहकर भी माँ अपने अपने संतान को कभी भी अपने से अलग होते हुए नही देखना चाहती है माँ चाहे कितने भी दुःख में न हो लेकिन एक माँ ही अपने संतान के हित की बात हर घडी सोचती रहती है इसलिए हमे भूलकर माँ के ममता और प्यार का मोल नही लगाना चाहिए अगर कुछ देना ही है तो हमे अपनी माँ के प्रति हमेसा प्रेम बनाये रखना चाहिए क्यू की इस दुनिया में हमारी माँ जैसी कोई दूसरी चीज भी नही है
वो कहते है न माँ शब्द अपने आप में परिपूर्ण है दुनिया में हम चाहे कितने भी रिश्ते से क्यू न बधे हुए है लेकिन माँ के बिना हमारा जीवन अधुरा होता है हर रिश्ते को आप से कुछ पाने की आस रहता है लेकिन माँ का पुत्र के बीच एक ऐसा रिश्ता है जो एक माँ अपने अपने संतान को जीवनपर्यन्त सिर्फ देना जानती है माँ भूखी सो सकती है लेकिन कभी भी अपने संतान को भूखे पेट सोना सपने में भी नही देखना चाहती है माँ तो हर वक्त अपने संतान के कल्याण की बात सोचती है की किस प्रकार उसकी संतान आगे बढे और जग में नाम करे।