उत्तराखंड -पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर विधानसभा के अंतर्गत पौराणिक पर्वत श्रृंखलाओं और अनेकों ऋषि मुनियों की ध्यान – तपोस्थली, आश्रमों और सिद्ध पीठों का उल्लेख कई पौराणिक ग्रंथों में जैसे विष्णु पुराण, महाभारत काल का भीष्म पर्व, कालिदास के अभिज्ञान शाकुंतलम् आदि पुराणों में वर्णित है, जिसमें मणिकूट पर्वत एवं हिमकूट पर्वत उल्लेखनीय हैं। मणिकूट पर्वत में श्री नीलकंठ महादेव, यमकेश्वर महादेव, अचलेश्वर महादेव, मां भुवनेश्वरी देवी, मां चण्डेष्वरी देवी, मां विंध्यवासिनी, गणडांडा आदि देव स्थल हैं। दूसरी ओर हिम कूट पर्वत श्रृंखलाओं से जुड़े महाबगढ़ शिवालय, कोटेश्वर महादेव मंदिर।
इन पर्वत श्रृंखलाओं में कई ऋषि-मुनियों जैसे मृकण्ड, मार्कण्डेय, कश्यप, कण्व ऋषि जैसे तपस्वियों की तपोस्थली रही है, जहां यदा-कदा दुर्वासा ऋषि भ्रमण करते थे । इसका वर्णन विष्णु पुराण में मिलता है ।
श्री बाबा महाबगढ़ शिवालय पर्वतराज कैलाश के ठीक सामने विराजमान हैं । ऋषिकाल में ये शिवालय मंदार एवं कल्प वृक्षों से आच्छादित रमणीक स्थल रहा है।
महाबगढ़ शिवालय अष्ट मूर्तियों में विराजमान हैं। राजशाही काल में गढ़वाल के 52 गढ़ों में से एक प्रसिद्ध गढ़ महाबगढ़ भी था जो राजा भानु देव असवाल के राज्य का हिस्सा था जो बाद में असवाल गढ़ के रूप में भी प्रचलित हुआ। वर्तमान में महाबगढ़ गढ़वाल संसदीय क्षेत्र व यमकेश्वर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। इस क्षेत्र के आसपास एक इतिहास और भी है की मथाना गांव भी ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रही है, माता कुटिया (माता का मंदिर) माता पानी (मथाना), सिद्धे बग्यानु (माता का बगीचा),सिद्धेधार (सिद्ध पर्वत), बगपुंछ (माता के शेर की पूंछ) कुठार (अन्न भंडार), चौकी घाट, महंत खेत, खेतु पीतड़ा (क्रीडा स्थल) उपरोक्त वर्णित स्थल मथाना गांव के उप क्षेत्र हैं जोकि ऋषि मुनियों की जीवन चर्या के अनुसार संबंधित नामों से प्रचलित हैं। वर्तमान में किमसेरा गांव का पौराणिक नाम कण्वाश्रम था, हिम कुट पर्वत से 3 किलोमीटर नीचे शकुंतला एवं दुष्यंत के पुत्र भरत की जन्मभूमि भरपूर नामक गांव है। भरपूर गांव का पौराणिक नाम भरतपुर था।
महाबगढ़ शिवालय पूर्व में विभिन्न सिद्ध नामों से विख्यात था जैसे कि पाबगढ़, माबदेवगढ़, मारीचीगढ़, किमपुरुष शिवालय। आज भी यह देवस्थान सच्चे भक्तों का पुत्रकामना सिद्ध पीठ माना जाता है। इसी शिवालय की महाभारत काल में पांडवों ने अष्टमूर्ति रूप भगवान शिव की पूजा अर्चना की। प्राचीन काल में मारीची गढ़ ऋषि कश्यप की तपोस्थली था। पौराणिक मान्यता है कि कैलाश पर्वत से सूर्य उदय होते समय महाबगढ़ मंदिर की परछाई हरिद्वार स्थित हर की पैड़ी में मां गंगा पर दिखाई देती है।
महाबगढ़ के पश्चिमी क्षेत्र में मवस, घामतपा, हरसू, मुड़गांव और प्रसिद्ध थलनदी (उत्तराखंडी कौथिग मेला का विश्वविख्यात स्थान) है। प्रसिद्ध थलनदी में मकर संक्रांति के दिन प्रसिद्ध गेंद मेला प्राचीन काल से आयोजित होता आ रहा है। यहीं पर यमकेश्वर तहसील का एकमात्र पॉलिटेक्निक कॉलेज है। वर्तमान में महाबगढ़ मंदिर में कुकरेती जाति के ब्राह्मण पुजारी है।
महाबगढ़ पहुँचने का रास्ता
कोटद्वार से 45 किमी पहाड़ी सड़क मार्ग से दुगड्डा, हनुमंती, कांडाखाल, पौखाल, नाली खाल, नाथू खाल, कमेडी खाल तक वाहन से पहुंचे। कमेडी खाल से 2 किमी चढ़ाई का पैदल रास्ता है। गढ़वाल राइफल्स का मुख्यालय लैंसडौन, महाबगढ़ से लगभग ३५ कि.मि. की दूरी पर है।
– पौड़ी से इन्द्रजीत सिंह असवाल की रिपोर्ट