1960 से क्यों मनाई जाती है काली लाग पूजा: क्या है इसका महत्व

चन्दौली- खबर चन्दौली जनपद के डीडीयू नगर से जहा नगर जीटी रोड प्राचीन माता काली मंदिर से देर रात्रि माँ काली का लाग निकाला गया। इस दौरान सिर पर मुकुट, कवच, कुंडल, हाथ में खप्पर व खंजर लिए प्रतीक रूप में काली मंदिर से निकल कर शामिल मां काली हजारों की संख्या में भक्तों द्वारा माता के जयकारे के साथ नाचते, गाते,चलते हुए गल्ला मंडी स्थित माता दुर्गा मंदिर सिद्धपीठ पहुँची। जहां माता काली ने मां दुर्गा से नगर के भक्तों को सुखी, समृद्धि तथा आपदा से बचाने का आशीर्वाद लेकर वापस पुनः काली मंदिर आकर विराजमान हो गयीं। इस दौरान सैकड़ों लोगों ने हाथ में तलवार ले रखी थी। श्रद्धालुओं द्वारा माता के जयकारे के साथ ही तलवार बाजी का भी प्रदर्शन किया गया। वहीं श्रद्धालुओं ने ढोल-बाजे के बीच जमकर नृत्य भी किया। स्थानीय लोगों की माने तो यह 200 वर्ष से अधिक पुरानी मंदिर है जिसके तहत प्राचीन काली मंदिर में विराजमान माता काली प्रत्येक वर्ष नवरात्रि की देर रात्रि यहां से निकल कर गल्ला मंडी स्थित प्राचीन माता दुर्गा शक्तिपीठ पहुंचकर वहां से नगर व आसपास के क्षेत्र के अपने भक्तों को सुखी व समृद्ध जीवन के साथ ही ही प्राकृतिक आपदा से बचाने का आशीर्वाद लेकर पुनः वापस आकर अपने स्थान पर विराजमान हो जाती मान्यता है कि माता काली के आशीर्वाद से नगर के लोग सुखी समृद्ध जीवन के साथ-साथ सुरक्षित रहते हैं इस अवसर पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु माता के लाग में उपस्थित रहे।

रंधा सिंह चन्दौली

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