एक तरफ गाय को माता कहा जाता है पुरानी कहावत है गौमाता के पेट में अढैया भर सोना होता है गौ माता के शरीर में देवताओं का वास होता है पूर्व राष्ट्रपति ने गौ हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर एक महान कार्य किया है । लेकिन लाभार्थी गाय का दूध तो पी लेते हैं उसके बाद उसे छोड़ देते हैं भूख प्यास से पीड़ित गौ माता जाएं तो जाएं कहां अपनी भूख शांत करने के लिए किसानों के खेतों में फसल खाकर अपनी भूख शांत करती है इस सब के जिम्मेदार कौन है स्वयं हम सब हैं एक तरफ हम धरना प्रदर्शन कर गौ हत्या पर रोक लगाने के लिए प्रयास किए लेकिन आज हम अपने को स्वयं भूल कर अपने आप अपने पशुधन को स्वयं अपने आप नष्ट कर रहे हैं एक तो इस गर्मी से पीड़ित गौ माता दूसरे खेत में जाती है तो कटीले तार में फस कर जान गवाना पड़ता है या भूख प्यास से तड़प तड़प कर मर रही है अगर इसी तरीके से पशुधन पर अत्याचार होता रहा तो 1 दिन गौमाता कही जाने वाले पशुधन का पूर्ण तरीके से विलुप्त हो जाएगी सरकार के प्रयास के बावजूद भी अधिकारी अपने कार्यालयों में बैठे कागजों पर केवल गौशाला चला रहे हैं कुछ गौशाला ऐसे देखे गए हैं जिस में नियुक्त कर्मचारी अपनी गाय पाल रखी हैं और दूसरे जब गाय लेकर जाते हैं तो जोर दबस्ती दबाव में उसे गौशाला में रख तो लेते हैं लेकिन शाम होते ही गेट खोल देते हैं क्या इन पर अधिकारी कोई दबाव बना पाएंगे जो कर्मचारी गौशाला में नियुक्त हुए हैं वह अपने को ऊंची पकड़ के बता रहे हैं।
– अनुराग पटेल ब्यूरो चीफ अन्तिम विकल्प न्यूज लखीमपुर खीरी