बरेली- लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव ।चुनाव आते ही सवर्णों को सोचना पड़ता है कि आखिर वोट किसे दे । क्योंकि यदि राजनैतिक दलो की बात करें तो कोई भी पार्टी सवर्णों के लिए कोई योजना लेकर नहीं आती सभी का मानना है कि यह संपन्न है और इन्हें किसी भी चीज की जरूरत नहीं ।अब अगर बीजेपी को छोड़ दे तो हर राजनैतिक दल या तो मुसलमानों की बात करता दिखाई देता है या दलितों की या फिर पिछड़े वर्ग की इनके चाहें भाषण ही क्यों न हो लेकिन सवर्णों का जिक्र तक नहीं आता यही वजह है कि सवर्ण इन पार्टियों ओर रूख नहीं करता ।ऐसा नहीं है कि इन्हें सवर्णों का वोट नहीं मिलता। मिलता है और जहाँ मिलता है वह वहां के प्रत्याशी की अपनी व्यक्तिगत पहचान के चलते।
अब बात करें भारतीय जनता पार्टी की तो यह भी कभी सवर्णों को लेकर कुछ नहीं करते ।और न ही भाषणों में भी जिक्र करते है क्योंकि यह पार्टी सवर्णों के वोट बैंक पर अपना अधिकार समझती है यही कारण है कि यह हिन्दू वादी छवि दिखाकर सवर्णों के वोट का इस्तेमाल करते है और इस वोट बैंक पर अपना पारम्परिक अधिकार समझते है।
अब ऐसे में सवाल यह खड़ा होता है कि क्या विकल्प के आभाव में सवर्णो की मजबूरी है बीजेपी? लेकिन सवर्णों के लिए बीजेपी करती कुछ नहीं ।करना तो दूर कहीं जिक्र तक नहीं करती।ऐसे में सवर्ण समाज क्या करें ।क्यों न नोटा को बनाये अपना हथियार?
नोटा भी हो सकता है आपका विकल्प ?