आखिर क्यों लगायी जाती है चुनाव आचार संहिता?

चुनाव आयोग का चुनाव आचार संहिता लागू करने का मकसद राजनीतिक दलों,उम्मीदवारों और सरकारों को एक अनुशासन में बांधना है,ताकि किसी भी रूप में चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित न किया जा सके और चुनाव स्वतंत्र व निष्पक्ष रूप से संपन्न हो।

आचार संहिता का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि कोई भी राजनीतिक दल और उम्मीदवार ऐसा कोई काम न करे जो कानून-व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करता हो, धार्मिक सौहार्द को बिगाड़ता हो
आम चुनाव की घोषणा होने के साथ ही देशभर में चुनाव आचार संहिता लागू हो गई है और इसका असर दिखने भी लगा है। शहरों में लगे चुनाव प्रचार के पोस्टर, बैनर और होर्डिंगों को हटाने का काम शुरू हो गया है। चुनाव आयोग ने कैबिनेट सचिव, राज्यों के मुख्य सचिवों और सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को निर्देश जारी कर आचार संहिता कड़ाई से लागू करवाने को कहा है। आयोग ने साफ हिदायत दी है कि केंद्र और राज्य सरकारों की सभी आधिकारिक वेबसाइटों से मंत्रियों, राजनेताओं या राजनीतिक दलों के संदर्भों वाली सामग्री को तत्काल हटा दिया जाए। आयोग ने प्रिंट,इलेक्ट्रॉनिक या सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर खासतौर से चेतावनी दी है कि इन पर ऐसी कोई सामग्री नहीं प्रकाशित और प्रसारित नहीं हो, जिसमें सरकारी उपलब्धियों का बखान हो। चुनावी माहौल बनाने और प्रचार के लिए शहरों को पोस्टर, बैनर और होर्डिंगों जैसी प्रचार सामग्रियों से पाट देना पुराना चलन है और ये शहरों को बदरंग भी करते हैं। राजनीतिक दलों की रैलियों में वाहनों के काफिले चलते हैं। जगह-जगह होने वाले रोड-शो और सभाओं की वजह से कहीं न कहीं आम लोगों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
चुनाव आचार संहिता का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के लिए आयोग सख्त कदम उठाता है, ताकि मतदाताओं को प्रभावित करने और लुभाने वाले अनुचित प्रयासों को रोका जा सके। चुनाव आचार संहिता लागू करने का मकसद राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और सरकारों को एक अनुशासन में बांधना है, ताकि किसी भी रूप में चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित न किया जा सके और चुनाव स्वतंत्र व निष्पक्ष रूप से संपन्न हो सकें। आचार संहिता पर अमल कराना सरकारों और स्थानीय प्रशासन और पुलिस का काम होता है। लेकिन अक्सर व्यवहार में देखने में आता है कि कई बार प्रशासन इसमें खरा नहीं उतर पाता और उस पर पक्षपात के आरोप लगते हैं।
खासतौर पर रैलियों और चुनावी सभाओं के लिए जगह की इजाजत देने को लेकर विवाद सामने आते हैं। चूंकि आचार संहिता का दायरा काफी व्यापक होता है, इसलिए इस पर अमल कराना भी चुनौतीभरा काम है। लेकिन स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए यह जरूरी भी है, वरना राजनीतिक दल बेलगाम होकर चुनावी प्रक्रिया को धक्का पहुंचाने में कसर नहीं छोड़ते। मसलन, चुनाव प्रचार के लिए निर्वाचन आयोग ने उम्मीदवारों के खर्च की सीमा तय कर रखी है। इसके बाद भी यह देखने में आता है कि राजनीतिक पार्टियां, उनके उम्मीदवार और कार्यकर्ता सीमा से ज्यादा खर्च करते हैं और इसके लिए गैरकानूनी तरीकों का सहारा लेते हैं। इनमें ज्यादातर मामले पकड़ में नहीं आ पाते।
आचार संहिता का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि कोई भी राजनीतिक दल और उम्मीदवार ऐसा कोई काम न करे जो कानून-व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करता हो, धार्मिक सौहार्द को बिगाड़ता हो। इसलिए राजनीतिक दलों को यह सख्त हिदायत दी जाती है कि वे चुनावी सभाओं में ऐसी कोई उकसावे वाली बात न करें जिससे सांप्रदायिक माहौल बिगड़े और चुनाव पर असर पड़े। कानून-व्यवस्था बनाए रखना पुलिस का काम है, ऐसे में उसकी जिम्मेदारी सामान्य दिनों के मुकाबले कहीं ज्यादा बढ़ जाती है। देश में चुनावी माहौल जोर पकड़ चुका है और चुनाव जीतने के लिए कोई भी दल कोई कसर नहीं छोडेÞगा। चुनावी सभाओं में आरोप-प्रत्यारोप, एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने और बदजुबानी करने की घटनाएं जिस तेजी से बढ़ी हैं वह चिंता का विषय है। यह राजनीतिक दलों को ही सोचना है कि वे ऐसा कोई काम न करें जिससे आचार संहिता का उल्लंघन होता हो और स्वतंत्र या निष्पक्ष चुनाव की प्रक्रिया बाधित होती हो।

– सुनील चौधरी सहारनपुर

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