लखीमपुर में बग़या स्थित इमामबारगाह में हुई अलविदाई मजलिस व आग का मातम

लखीमपुर खीरी – अय्यामे अज़ा के आखिरी दिनों में शहर में मजलिस व मातम और शब्बेदारियों का सिलसिला तेज़ हो गया , मातमी अंजुमन ए अपनी शब्बेदारीयां कर रही हैं। वहीं अज़ादार मजलिसओं में शिरकत कर कर्बला के शहीदों का ग़म मना रहे हैं, अंजुमन सज्जादिया लखीमपुर खीरी की जानिब से एक दिवसीय बेदारी का आयोजन लखीमपुर खीरी के बगिया मोहल्ले में किया गया बगिया में स्थित इमामबारगाह में हुआ अंजुमन हुसैनिया मोहम्मदी खीरी ने इमाम बारगाह में अपने सोस – सलामों के साथ मातम कर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को नजर आने अकीदत पेश की। इमाम बारगाह में मजलिस को ख़िताब करने पहुंचे जाकिर अहलेबैत आली जनाब मौलाना असगर अब्बास जाफरी साहब किब्ला सिरसी – संभल , ( उत्तर प्रदेश ) मौलाना सैय्यद असगर अब्बास जाफ़री साहब ने मजलिस को ख़िताब करते हुए कहा कि हर नबी ने जुल्म के खिलाफ जंग लड़ी , लेकिन मोहम्मद स०अ०व० के नवासे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कर्बला में ज़ुल्म के ख़िलाफ़ जैसी जंग लड़ी वैसी जंग तारीख़ ए इस्लाम मे नही मिल सकती ,
उन्होंने कहा कि पैग़ंबरे इस्लाम मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने कहा कि “”हुसैन मुझसे है और मैं उसे हमसे हूं”” मैदान ए कर्बला में इमाम हुसैन ने अपनी और अपने साथियों की अज़ीम कुर्बानी देकर इस्लाम और मक़सद ए रसूल को बचाया।
आपको बताते चलें कि आज से 1440 साल पहले इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को यजीद इब्ने मुआविया ने कर्बला के मैदान में 3 दिन का भूखा व प्यासा शहीद कर दिया था, जिसकी याद में आज भी शिया मोमिनीन व उनके साथ सुन्नी, हिंदू और सिख मसलक़ के लोग भी इमाम हुसैन की शहादत को याद कर उन्हें अपने अश्क़ों से अकीदत पेश करते हैं।
मजलिस के बाद मातमी अंजुमन ने होने अपने नौहों को पेश कर जोकि चन्द मिसरे आपकी ख़िदमत में , – “”कर्बला से लूट कर वतन आई है ज़ैनब”” ।
मजलिस के बाद बाहर से आए हुए, अंजुमन हुसैनिया मोहम्मदी और लखीमपुर की अंजुमन अंजुमने सज्जादिया ने सीनज़नी की । अंजुमन हुसैनिया के नौहाख्वान आलम रज़ा , ज़मीर रिज़वी “आरज़ू” , हसन नक़वी में अपने – अपने अलविदाई अशहार पेश करे।
जिसके बाद दोनो अंजुमनों के मिम्बरान ने आग के दहकते हुए शोलों पे चल कर मातम किया उसके बाद छुरी का मातम हुआ। ये प्रोग्राम अंजुमन सज्जादिया के जानिब से होता है । जिसमें तमामी सोगवारों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को पुरसा दिया। मजलिस में तमामी मोमिनीन बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं , और ग़मे हुसैन में काला लिबास पहनकर सोग करते हैं। इमाम हुसैन व उनके घर वालों और उनके साथियों की शहादत और उन पर हुए ज़ुल्म और उन पर हुईं मुसीबतों को याद कर अपने आंसू बहाते हैं और उन्हें याद करते हुए उस यज़ीद इब्ने मुआविया पर बेशुमार लानत भेजते हैं , जिसने इमाम हुसैन अ०स० को नमाज़ की हालत में क़त्ल कर दिया और उनके घर वालों को इतने ज़ुल्म दिए । आज एक बड़ी तादात में लोग इमाम हुसैन की शहादत को याद कर उन्हें नाज़राने अक़ीदत पेश करते हैं।
रिपोर्टिंग – हसन जाज़िब आब्दी

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