मायावती ने ऐसा क्या कह दिया कि अखिलेश कंपनी टेंसन में आ गई

लखनऊ- प्रदेश के गोरखपुर और फूलपुर उप चुनाव में समाजवादी पार्टी (कंपनी)को बसपा सहित अन्य मित्र दलों ने समर्थन दिया था जिसकी वजह से समाजवादी कंपनी ने यहाँ अपना परचम बुलंद कर सीएम योगी और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की फजीहत कर डाली थी। यही से बसपा के गठबंधन की अटकलें तेज हो गयी थी।और कैराना-नूरपुर उपचुनाव में भी सपा रालोद की विजय भी बसपा, कांग्रेस आप के सहयोग से संभव हुयी। सपाइयों ने जमकर ख़ुशी होकर जश्न मनाया लेकिन ध्यान देनी वाली बात ये है कि इस जश्न में बसपा के कार्यकर्ताओं ने दूर दूर तक भागीदारी नहीं की,सूत्रों की समझ और अनुभव को ध्यान में रखे तो, सपा कंपनी और बसपा का गठबंधन अब फंस सकता है। सूत्र बताते हैं कि आगामी लोकसभा में सीटों के बटवारे को लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती ने अखिलेश के सामने ऐसी शर्त रख दी है जिसकी वजह से अखिलेश टेंसन में आ गए और समस्या से निजात पाने के लिए अपने सहयोगियों से सलाह मशविरा भी ले रहे है। जानकारी के मुताविक आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अखिलेश ने जो सीटों का बंटवारा अभी तय किया है ,उसके मुताविक बसपा को 34 ,सपा को 31 कांग्रेस को 8-10 सीटें और अन्य सहयोगी दलों को भी उसी अनुपात से सीटें देने का मन बनाया है। जिसकी भनक मायावती को लगी तो उन्होंने अखिलेश से उनके सीटों के बंटवारे पर आपत्ति जताते हुए 80 लोकसभा सीटों में से 45 सीटें सिर्फ बसपा को देने की बात की है जो की नामुमकिन सा लग रहा है।बसपा के एक पदाधिकारी ने बताया कि मायावती ने अभी जो राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक की थी उसमें आपसी सलाह मशविरा के बाद निर्लय लिया था कि बसपा सम्मान जनक सीटें मिलने पर ही किसी से गठबंधन करेगी वरना अकेले दम पर ही चुनाव लड़ेगी। बसपा के एक नेता के अनुसार मायावती को पदाधिकारियों ने बताया है कि अगर 45 सीटों से कम मिलती है तो ऐसे में कई जुझारू बसपा नेताओं को टिकट मिलने की गुंजाइस कम हो जाएगी जिससे इन रूठे नेताओं के पार्टी से भाग जाने की आशंका भी है,ये बात मायावती को भा गयी और उन्होंने अखिलेश के सामने 45 सीटों की बात रख दी,जिससे अखिलेश अब टेंसन में है,क्योंकि अखिलेश के मुताविक उन्हें गठबंधन दलों को संतुष्ट रखते हुए उनके हैसियत के मुताविक सीटें देने की कश्मकश भी है।माया की जिद्दी कार्यशैली से तो सभी वाकिफ है पर यह बात सच भी है कि इस गठबंधन में अगर मायावती नही है तो फिर गठबंधन के कोई मायने नही है क्योकि अगर किसी के पास अपना वोटबैंक है तो वह सिर्फ बसपा है बाकी किसी के पास नही है सपा के पास मुसलमान है यादव है यादव लोकसभा के चुनाव में सपा से भाग भाजपा में भाग गया था रही बात मुसलमान की तो वह सीधे बसपा में जा सकता है अगर गठबंधन न हो तो इस हिसाब से सपा के पास वोटबैंक है ही नही दूसरों का वोट वोटबैंक नही माना जाता बसपा का वोटबैंक अपना है जो उसके साथ मजबूती से खड़ा है काफी अर्से दराज़ से कुछ संघी मानसिकता के लोग यह भ्रम फैलाते है कि दलित भी भागा है जो किसी भी हैसियत से सही नही है 2014 के आम चुनाव में बसपा के प्रत्याशियों को मिले मतों से साफ पता चलता है कि उसके प्रत्याशियों को किसी भी सीट पर दो लाख या उससे ज्यादा वोट मिले हिन्दू ने भाजपा को दिया मुसलमानों ने सपा को तो फिर उसके प्रत्याशियों पर वोट कहां से आया।अब देखना है कि अखिलेश कंपनी इस पेंच का तोड़ कैसे निकलती है।फ़िलहाल भाजपा खेमें में ख़ुशी है और भाजपा चाहती है कि अगर इनका गठबंधन नहीं होता है तो भाजपा की निश्चित रूप से मुश्किलें थोड़ी कम होगीं।

-सुनील चौधरी, देहरादून

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