थार मरूस्थल में पानी बहुत गहरा होने के साथ ही नहरी पानी भी बहुत मीठा होता है इसको व्यर्थ न गवाएं : हिन्दू सिंह तामलोर

राजस्थान- हमेशा बड़े बुजुर्गो द्वारा कहा जाता है कि प्रशंसा करके आप किसी भी व्यक्ति का भी दिल जीत सकते हैं लेकिन केवल दिल जीतने का लक्ष्य रखकर प्रशंसा करना ठीक वैसा ही है जैसे आजकल मोबाइल कम्पनियों के फ्री और अनलिमिटेड डेटा का इस्तेमाल केवल अपनी ईमेल चेक करने के लिए करना। प्रशंसा एक महान और पवित्र कर्म है, केवल दिल जीतने जैसे गौण और तुच्छ कार्य के लिए इसका दुरुपयोग करना प्रशंसक की अकुशलता और कुशलता से प्रशंसा ना कर पाने कि कहानी बयान करता है। वैसे ही हमारे थार मरूस्थल के ग्रामीण क्षेत्रों में आजकल नहरी मीठा पानी राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध करवाया गया है और सभी लोगों को मीठा पानी मिले इसमें कोई ओछी राजनीति नहीं होनी चाहिये अगर हमारे पड़ोसी भूखा और प्यासे मरेगा तो सबसे ज्यादा दुःखी हम होगें इसमें कोई दौराय नहीं लेकिन तकनीकी कारणों से अगर जलापूर्ति करने को पानी नहीं पहुंचे तो भी समाधान करने में सदैव हाज़िर रहते हैं क्योंकि वो हमारे अपने ही लोग हैं।

प्रशंसा एक साधना है जिसे अच्छे से साधना होता है। इस क्षेत्र में अपार संभावनाए हैं लेकिन दुर्भाग्य से अब तक किसी भी सरकार ने इस तरफ ढांचागत पहल करके इसे संस्थागत स्वरुप प्रदान नहीं किया है। वर्तमान हमारे सरकार को चाहिए कि वो मन,दिल, दिमाग की बात सुनना बंद करे और प्रशंसा की सुनकर इसे हमारे लाखों वोटरों, बेरोजगार युवाओं को स्किल इंडिया के तहत प्रोत्साहन देकर देश में पेशेवर प्रशसंकों की एक नयी खेप तैयार करे। देश में आज प्रशासकों से ज्यादा उनके प्रशंसकों की पूछ हों रही है।

बड़े बुजुर्ग हमेशा कहते हैं कि “सर्दी-खांसी में हल्दी और प्रशंसा में जल्दी अक्सर फायदेमंद होती है।” दरअसल तारीफ की तशरीफ़ बहुत हल्की होती है। सब उसे अपनी गोद में बिठाने को तैयार रहते हैं। किसी की तारीफ करके इंसान भविष्य में उससे अपनी तरफदारी का बीमा जरूर करवा लेता है। प्रशंसा का प्रस्फुटन दिल से होना चाहिए लेकिन आजकल प्रशंसा के बीज, कायदा फायदे का व्यापार करने के लिए दिमाग में बोए जाते हैं। तारीफ वह असरदार दवाई है जो इंसान बिना किसी अटक ओर ना-नुकुर के गटक लेता है। कुछ समाजवादी और अवसरवादी लोग चापलूसी को ही प्रशंसा समझने लगते हैं लेकिन हकीकत में चापलूसी, प्रशंसा का आज-कल नया फार्मूला है, चापलूसी और प्रशंसा में उतना ही अंतर है जितना कि घर की गाय का देसी घी और पीले डिब्बे पर हरे खजूर के फोटो वाले डालडा घी में होता है। इसलिए ध्यान देने वाली बात है कि चापलूसी करके जो बिना अंगुली टेढ़ी करे ही घी निकाल लेते है उन्हें पता नहीं होता की उन्होंने डालडा घी निकाला है।

पीने के पानी के लिए इंसान शुद्ध, स्वच्छता, निर्मल, शीतलता की आड़ में और फि‍ल्टर लगाकर आजकल उसकी शुद्धता तय करता है लेकिन प्रशंसा के मामले में इंसान उसकी पवित्रता और शुद्धता के बारे में निश्चिंत होता है, उसका मन अपनी प्रशंसाओं में किसी भी तरह की मिलावट मानने की कतई गवाही नहीं देने को तैयार नहीं होता है। कोई कहे या ना कहे लेकिन सबके मन की बात यही होती है कि प्रशंसा पाना हर इंसान का जन्मसिद्ध अधिकार है।

प्रशंसा चाहे किसी भी दिशा से टपके या झड़े, इंसान हर दशा में बिना झिझके उसे लपक लेता है। अपनी आलोचनाओं में इंसान काफी सतर्क हो जाता है उसमें तर्क ढूंढता है लेकिन प्रशंसा में वो तर्क-वितर्क छोड़कर सारे गिले शिकवे भूलकर उससे गले मिल लेता है। कुछ स्वावलंबी लोग प्रशंसा के मामले में आत्मनिर्भर होते है, उन्हें अपनी प्रशंसा के लिए दूसरो का मुंह ताकना पसंद नहीं होता है, वह खुद अपनी तारीफ कर ना केवल दूसरों पर दबाव कम करते हैं बल्कि हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा भी देते हैं।

कुछ मामलो में तारीफ पसंद ना होकर कमोबेश मज़बूरी होती है जैसे बॉस और नवी नवेली दुल्हन, बीवी,गर्लफ्रेंड की तारीफ। इस मार्ग की सारी लाइन्स चाहे कितनी भी व्यस्त और वन साइडेड क्यों ना हों आपको हमेशा समय पर पहुंचना होता है। बॉस की प्रशंसा भविष्य में आपकी अनुशंसा का टिकट कटवा सकती है और बीवी या फिर नवी नवेली दुल्हन की प्रशंसा में कोताही आपका पत्ता भी कटवा सकती है। प्रशंसा एक सतत कर्म है, केवल अच्छाई की प्रशंसा करना एक अच्छे प्रशंसक की निशानी नहीं है। प्रशंसा धर्म खतरे में ना पड़े इसलिए आवश्यक है की बुराई की भी उतनी ही शिद्दत से प्रशंसा की जाए। अच्छाई और बुराई केवल देखने वाले के नज़रिए पर निर्भर करती है जबकि प्रशंसा अपने आप मे निरपेक्ष और निष्पक्ष होती है वो किसी एक का पक्ष नहीं ले सकती है दोनों ही स्थितियों में उसे अपने कर्तव्य को निभाना होता है। राह कितनी भी पथरीली क्यों ना हो प्रशंसा को अच्छाई और बुराई रूपी दोनों पहियो पर सवार हो कर अपने लक्ष्य तक पहुंचना होता है।

– राजस्थान से राजूचारण

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