आज यानी 26 जुलाई को पूरा देश कारगिल विजय दिवस मनाया जाएगा, शहीद जांबाजों को श्रद्धांजलि दी जाएगी,उनकी याद में गाने तराने गाए जाएंगे। इसी बीच कारगिल का हीरो जूस की दुकान पर रोज की तरह जूठे बर्तन धो रहा होगा। जी हां ये सच है और कारगिल युद्ध के इस वीर योद्धा और सरकारी सिस्टम से उपेक्षित इस लड़ाके सैनिक का नाम है लांस नायक सतवीर सिंह। सरकार ने कारगिल युद्ध के बाद सतवीर सिंह को पहले तो पेट्रोल पंप देने का वायदा किया और उसके बाद वादे से मुकरते हुए 5 बीघा जमीन देने के वायदे पर आ गए। लेकिन इन सरकारी वादों के पशोपेश में फंसे इस योद्धा की जिंदगी के हालत बद से बद्तर होते चले गए और गरीबी के दंश ने उसे जिंदगी के ऐसे चौराहे पर ला कर खड़ा कर दिया जहां उसे जूस की दुकान में जूठे बर्तन धोने पड़ रहे हैं।
कारगिल का युद्ध हुए 19 साल बीत चुके हैं लेकिन आज भी इनके पैरों में 19 साल पहले लगी हुई गोली अभी तक धंसी हुई है। कारगिल के युद्ध के समय जब पाकिस्तान हमारे देश की तरफ अपने नापाक कदम बढ़ा रहा था। तब उनके बढ़ते हुए कदमों को रोकने के लिए आगे आए सतवीर के पांव में दुश्मनों की तरफ से चलाई गई एक गोली लग गई थी, जिसके कारण ये आज भी ठीक से नहीं चल पाते हैं। देश को झुकने ना देने के लिए देश का सहारा बने सतवीर आज खुद महज एक बैसाखी के सहारे हो चले हैं। देश के इस जवान ने दुश्मन देश को हारने के लिए अपना सब कुछ तो गंवा दिया लेकिन आखिरकार वह अपने ही देश के सिस्टम से हराकर दिल्ली की सड़कों पर लाचार घूमता है।
दिल्ली के पास एक गांव है जिसका नाम है मुखमेलपुर जहां पर सतवीर सिंह का घर है। सतवीर बताते हैं कि वह कारगिल के युद्ध में लड़ने वाले दिल्ली के इकलौते लाल हैं। उन्होंने बताया कि 13 जून 1999 की सुबह का समय था और वे कारगिल की तोलोलिंग पहाड़ी पर मौजूद थे। उसी दौरान घात लागाकर बैठे पाकिस्तानी सैनिकों से उनका सामना हुआ। पाकिस्तान के सैनिक सतवीर से करीब 15 मीटर की दूरी पर खड़े फायरिंग कर रहे थे और सतवीर अपने मोर्चे पर खड़े अकेले ही 9 सैनिकों को संभाल रहे थे। इसी दौरान भारत के इस जांबाज सिपाही पर उन पाकिस्तानी सैनिकों पर ग्रेनेड फेंका, जिसके 6 सेकेंड बाद हुए धमाके में 7 पाक सैनिक मारे गए। हालांकि इस धमाके में हमारे देश के भी 7 जवान शहीद हो गए थे।
जिसके बाद पाक सैनिकों की तरफ से की गई गोलिबारी में सतवीर को कई गोलियों ने छलनी किया लेकिन उनकी सांसे
चलती रहीं। इस गोलिबारी के दौरान ही उनके पैर की एड़ी में एक गोली लगी हुई है जो आज तक फंसी हुई है। गोली लगने के बाद सतवीर 14 घंटे तक पहाड़ी पर पड़े रहे, उनके शरीर से खून बहता रहा लेकिन उन्होंने अपनी सांस को थमने नहीं दिया।सतवीर ने बताया कि पांव में गोली फंसी होने के कारण उनका करीब एक साल तक इलाज चलता रहा। इस घटना के बाद कारगिल का युद्ध समाप्त हुआ, नायकों की सूची जारी की गई, जिसकी एक पंक्ति में सतवीर का भी नाम जरूर था। मगर ये योद्धा कब लोगों की नजरों से गायब होकर गुमनामी के अंधेरे में खो गया उसे भी अभी तक इस बात का अंदाजा नहीं है। सतवीर आज भी उसी तरह से दिल्ली की सड़कों पर घूम रहा है जिस तरह से उसकी फाइलें पीएम, राष्ट्रपति, मंत्रालयों में घूम रही हैं।
साभार-himachalabhiabhi.com
(रुड़की से इरफान अहमद)