नई दिल्ली। जब से यह खबर आई कि प्रधानमंत्री बीजेपी दफ्तर आ रहे हैं, जहां वे बीजेपी कार्यकर्त्ताओं को संबोधित करेंगे, तो लगा कि सब कुछ सामान्य है। वे आएंगे 40 मिनट तक बोलेंगे, कांग्रेस को भला-बुरा कहेंगे। कुछ अपनी बात कहेंगे, अपने कार्यकर्त्ताओं का धन्यवाद करेंगे और बात खत्म हो जाएगी।
मगर जब यह खबर आई कि वे प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे तो फिर न्यूज रूम में आपाधापी मच गई। एक अजीब तरह की उत्तेजना और जोश दिखाई देने लगा. सभी तैयारी करने लगे और कहने लगे कि चलो, जिस दिन का पिछले पांच साल से इंतजार कर रहे थे, वो आखिर आ ही गया।
सभी पत्रकार अपने-अपने सवालों के साथ तैयारी कर रहे थे कि यह पूछूंगा और यदि किसी ने मेरे वाला सवाल पूछ लिया तो मैं ये दूसरा वाला सवाल पूछ लूंगा। प्रधानमंत्री आए और बैठे। बीजेपी अध्यक्ष ने सबसे पहले बोलना शुरू किया और 22 मिनट तक लगातार बोलते रहे जैसे किसी रैली में बोल रहे हों। फिर प्रधानमंत्री को माइक दिया गया और वे 12 मिनट तक अपनी बात कहते रहे।
इसके बाद शुरू हुआ सवाल-जबाब का दौर। सभी बीजेपी बीट के पत्रकार तैयार थे अपने सवालों को लेकर। उन्होंने अपने नाम पुकारे जाने पर पूछना भी शुरू किया मगर ये क्या, जो भी सवाल प्रधानमंत्री से पूछा जाता था, वे अमित शाह की तरफ इशारा कर देते थे और पीएम की बजाए जवाब अमित शाह ही दे रहे थे। प्रधानमंत्री तो महज मूकदर्शक व तमाशबीन बने हुए थे।
करीब 17 मिनट तक अमित शाह उन सवालों का जवाब देते रहे जो प्रधानमंत्री से पूछे जा रहे थे। प्रधानमंत्री ने बोला भी किस पर, उनके विषय रहे आईपीएल,सट्टा बाजार, चुनाव के दौरान इनका सफल आयोजन, चुनाव के दौरान परीक्षाओं का ठीक से हो जाना, रामनवमी, रमजान और ईस्टर का शांतिपूर्ण ढंग से गुजर जाना यानी यदि आप उसमें से एक हेडलाइन ढूंढना चाहें तो आपको पसीने छूट जाएंगे।
सबसे निराश वे पत्रकार थे, जो वहां मौजूद थे। उन्हें लगा कि ये क्या हुआ, इससे अच्छा प्रधानमंत्री को प्रेस कॉन्फ्रेंस करना ही नहीं चाहिए थी। सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री की इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का खूब मजाक बना। किसी ने लिखा कि प्रधानमंत्री शादी में आए उस फूफा की तरह दिख रहे थे, जो किसी भी बात पर नाराज हो जाते हैं और मुंह फुला कर बैठ जाते हैं।
राहुल गांधी ने इस पर चुटकी लेते हुआ कहा कि प्रधानमंत्री का मीडिया के सामने आना भी आधी जंग जीतने जैसा है..अगली बार मिस्टर शाह आपको एकाध सवाल का जबाब भी देने की इजाजत दे देंगे।
अब सवाल ये उठता है कि यदि प्रधानमंत्री को यही करना था तो बात बनी नहीं। विपक्ष का यह आरोप अभी कायम रहेगा कि प्रधानमंत्री सवालों से बचते हैं। आखिर प्रधानमंत्री किन सवालों से बचना चाहते हैं, जो एक लाइव प्रेस कॉन्फ्रेंस में जवाब देने से बचना चाहते थे। यह भी सवाल उठेगा कि प्रधानमंत्री ने जिन न्यूज चैनलों को इंटरव्यू दिया। क्या वे सब प्रायोजित थे या उनके सवाल पहले से तय थे? यदि यह नहीं तो बीजेपी दफ्तर में सवालों से परहेज क्यों?
अभी भी उन सवालों के जबाब आने हैं, जो इन तमाम टीवी चैनलों के पत्रकारों से उनने नहीं पूछे हैं, जैसे नोटबंदी का नायाब आइडिया उनके पास आया कहां से.. राफेल डील से जुड़े तमाम ऐसे सवाल हैं, जिनका उत्तर देश को नहीं मिला है।
लोग यह भी जानना चाहेंगे कि वे अपने पिछले पांच साल के कार्यकाल की उपलब्धियों के बजाय राष्ट्रवाद या सेना के नाम पर वोट क्यों मांग रहे थे और अंत में प्रधानमंत्री गोडसे को क्या मानते हैं? ऐसे और भी सवाल हैं, जो उनसे पूछे जाने हैं मगर जवाब तब मिलेगा जब साहब कुछ बोलेंगे।