पटना- बिहार की राजनीति में यह बड़ी खबर है। बुधवार को राजग के घटक दल (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा) ‘हम’ के सुप्रीमो जीतनराम मांझी से मिलने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बेटे व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव उनके आवास पर पहुंचे। मुलाकात के बाद जीतनराम मांझी ने यह घोषणा कर दी कि वे एनडीए से अलग हो रहे हैं। गुरूवार को विधिवत रूप से महागठबंधन में शामिल होंगे। उनके साथ लालू के बड़े बेटे व पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप यादव भी हैं। मुलाकात के बाद तेजस्वी यादव ने कहा कि मांझी जी मेरे अभिभावक हैं। मैं उनके बेटे के समान हूं। अब वे हमारे साथ आ गए हैं। अब वे महागठबंधन का हिस्सा होंगे।
इस बाबत राजद के एक विधायक ने कहा कि जीतनराम मांझी काफी समय से एनडीए में घुटन महसूस कर रहे थे। देश में दलितों की स्थिति काफी अच्छी नहीं है। उन्हें दबाया जा रहा है। जीतनराम मांझी ही नहीं, कई और भी नेता हमारे संपर्क में हैं।
वहीं, जदयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि राजद का जो नेतृत्व है वह हताश और निराशा से गुजर रहा है। पूरी पार्टी में बौखलाहट है। उसे किसी न किसी तरह से ऑक्सीजन की जरूरत है। वे राजद को फिर से जीवित करने के लिए संजीवनी ढ़ूढ़ रहे हैं। कॉमन मिनिमम एजेंडा मांझी जी देख चुके हैं। वे लालू यादव और नीतीश कुमार दोनों के साथ रहा चुके हैं। उन्हें मालूम है कि राजनीति की धार किस ओर है। यह साधारण मुलाकात है। हमें इससे कोई आपत्ति नहीं है।
श्याम रजक ने कहा कि मिलना-जुलना अलग बात है। एनडीए मजबूत है। हम सही से सरकार चला रहे हैं। हमसे कोई नाराज नहीं है। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। कौन क्या करते हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता। हम बिहार की जनता और उनके विकास के लिए बात करते हैं।
जन अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक पप्पू यादव ने कहा कि हम गंदी राजनीति का हिस्सा नहीं बनते हैं। मांझी जी का व्यक्गित रूप से सम्मान करते हैं। लेकिन वे जिस तरीके से पेंडुलम की तरह डोल रहे हैं, इससे उन्होंने अपनी विश्वसनीयता खुद समाप्त कर ली है। कभी राज्सभा के लिए नाराज होते हैं तो कभी विधानसभा सीट के लिए। वे आज क्या कहेंगे और कल क्या कहेंगे, कोई नहीं जानता है।
राजद प्रवक्ता मनोज झा ने कहा कि आवाम एक नये राजनीतिक गठबंधन की स्क्रीप्ट लिखवाना चाहती है। जिस तरह से जनादेश की डकैती हुई, उससे जनता में नाराजगी है। जीतनराम मांझी ही नहीं, कई और भी हमारे साथ आयेंगे। एक बात स्पष्ट है कि राजनीति मंथन की प्रक्रिया है। वे तमाम लोग जो पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों की बात करते हैं, वे इस सरकार से नाराज हैं।
बता दें कि जीतनराम मांझी ने एनडीए से राज्यसभा की एक सीट की मांग रखी थी। उन्होंने धमकी दी थी कि उनकी मांग नहीं मानी गई तो वह उपचुनाव में एनडीए प्रत्याशी के समर्थन में प्रचार नहीं करेंगे। उपचुनाव में समर्थन चाहिए तो एनडीए को पार्टी के एक नेता को राज्यसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी घोषित करना होगा। लेकिन मांझी के इस मांग को एनडीए गठबंधन ने तवज्जो नहीं दी और न हीं कोई वरिष्ठ नेता उनसे मिलने पहुंचे।
मांझी ने खोले लेनदेन के विकल्प
मांझी ने कहा था कि जो पार्टी हम के नेता का राज्यसभा में समर्थन करेगी, उसके साथ आगे की राजनीति का विकल्प खुला हुआ है। बच्चा जब तक रोता नहीं है, तब तक मां उसे दूध नहीं पिलाती है। कुछ ऐसी ही स्थिति एनडीए में हम की हो गई है। लगातार उपेक्षा की जा रही है, किसी भी मुद्दे पर हमारी राय नहीं ली जाती है।
एनडीए के कार्यक्रम में न्योता तक नहीं दिया जाता है। हमारी पार्टी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के कारण एनडीए को समर्थन दे रही है। हम लगातार बिना किसी मांग के एनडीए के साथ बने हुए हैं। मगर, हमारी भी सहनशक्ति की हद है।
– नसीम रब्बानी, पटना/ बिहार