२३ मई को घोषित लोकसभा के चुनाव परिणाम में कुल ५४२ सीटों में से अकेले भाजपा को ३०० सीटें मिल रही हैं। पूर्ण बहुमत के लिए २७२ सीटों की जरूरत है। ऐसे में भाजपा को अकेले दम पर बहुमत हांसिल हो गया है। भाजपा के सहयोगी दलों की सीटें जोड़ दी जाए तो यह आंकड़ा ३५० के पार है। वहीं कांग्रेस को मात्र पचास सीटें मिल रही है, सहयोगी दलों को चालीस सीटें ही मिली है। यूपी में सपा-बसपा के गठबंधन ने करीब १७ सीटें ली है, जबकि भाजपा को ६३ सीटें मिल रही है। बंगाल में भी भाजपा को १५ से ज्यादा सीटें मिलने की उम्मीद है। इतना ही नहीं सायं चार बजे तक की मतगणना में अमेठी से राहुल गांधी १९ हजार मतों से पीछे चले रहे थे। अब जब यह तय हो गया कि नरेन्द्र मोदी ही दोबारा से प्रधानमंत्री बनेंगे तब यह सवाल उठता है कि आखिर कांगे्रस और विपक्षी दलों की इतनी बुरी स्थिति क्यों हुई? कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तसीगढ़ के चुनावों में चौकीदार चोर का नारा उछाला था। इन तीनों राज्यों में मिली जीत से उत्साहित होकर लोकसभा मेंं राहुल ने प्रधानमंत्री को खुलेआम चोर कहने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन राहुल गांधी यह भूल गए कि लोकसभा चुनाव में लोगों के सामने नरेन्द्र मोदी का ही चेहरा है। राहुल गांधी नेशनल हेराल्ड के केस में जमानत पर है, जबकि महरोली आदि में फार्म हाउस और जमीने खरीदने के मामले में उनके विरुद्ध जांच हो रही है। जबकि नरेन्द्र मोदी पर एक इंच जमीन खरीदने का भी आरोप नहीं है। यही वजह रही कि जब राहुल गांधी ने चौकीदार चोरी है के नारे चुनावी सभाओं में लगवाए तो इसका प्रतिकूल असर हुआ। देश की जनता ने इस बात को स्वीकारा नहीं किया कि नरेन्द्र मोदी चोर है। २१ राज्यों में तो कांगेस का खाता भी नहीं खुला है। इससे कांग्रेस को अपानी स्थिति का अंदाजा लगा लेना चाहिए। पूरे चुनाव में राहुल ने जो आत्मविश्वास दिखाया, उसका प्रतिकूल असर भी कांग्रेस पर पड़ा। राहुल ने बार बार कहा कि नरेन्द्र मोदी चुनाव हार रहे हैं और उनका चेहरा उतर गया है। पांचवें चरण के मतदान के बाद तो बड़े उत्साह के साथ राहुल गांधी ने कहा था कि २३ मई को देश में नया प्रधानमंत्री बनेगा। समझ में नहीं आता कि राहुल गांधी का यह आत्मविश्वास कहां से आया। जबकि नरेन्द्र मोदी लगातार कह रहे थे कि इस बार भाजपा को ३०० के पास सीटें मिलेंगी। उन्होंने अंडर करंट की बात भी कही। चुनावी सभाओं में नरेन्द्र मोदी अबकी बार मोदी सरकार के नारे भी लगवाते रहे। कांग्रेस की शर्मनाक हार में नवजोत सिंह सिद्धू जैसे नेताओं का भी सहयोग रहा। सिद्धू ने जिस तरह से मोदी का मजाक उड़ाया, उसको भी देश की जनता ने पसंद नहीं किया। यूपी में माया-आखिलेश का गठबंधन भी धरा रह गया। इस गठबंधन के बाद भी भाजपा को ८० में से ६३ सीटें मिलना महत्वपूर्ण है। असल में इन चुनावों में जातीय समीकरण धरे रह गए। मायावती और अखिलेश यादव को अपनी अपनी जातियों के वोट पर भरोसा था। लेकिन कोई किसी भी जाति का हो, लेकिन उसने नरेन्द्र मोदी को वोट दिया। इसमें कोई दो राय नहीं कि चुनाव में राष्ट्रवाद का मुद्दा भी छाया रहा। अब देखना होगा कि कांग्रेस की रणनीति क्या रहती है। अलबत्ता संसद में राहुल गांधी प्रतिपक्ष के नेता बन सकते हैं। प्रतिपक्ष का नेता बनने के लिए जितनी सीटें चाहिए उतनी कांग्रेस को मिल गई है।
– एस.पी.मित्तल