खतरे में है भाजपा का परंपरागत वोट बैंक:राजपूत समाज की वसुंधरा सरकार से नाराजगी बनी वजह

राजस्थान- राजस्‍थान विधानसभा चुनाव 2018 में मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे भारी एंटी इनकंबेंसी से जूझती दिख रही हैं। राजे और राज्‍य में प्रभावशाली राजपूतों के बीच खराब रिश्‍ते सत्‍ताधारी भाजपा के लिए चिंता का सबब बन गए हैं। जनसंघ के दिनों से ही राजपूत भाजपा का परंपरागत वोट-बैंक रहे हैं। 2016 से राजे सरकार और राजपूतों के बीच रिश्‍ते मधुर नहीं रह गए हैं। हाल ही में विधायक व पूर्व केंद्रीय मंत्री व राजपूत नेता जसवंत सिंह के बेटे, मानवेंद्र सिंह के कांग्रेस का दामन थामने के बाद भाजपा नेताओं की परेशानी और बढ़ गई है। पार्टी नेताओं ने ऐसे कई वाकयों का जिक्र किया जिसके चलते राजपूत समुदाय में पार्टी की स्‍वाकार्यता को धक्‍का लगा है। इनमें राजमहल भूमि विवाद, पद्मावत विवाद, गैंगस्‍टर आनंदपाल सिंह का एनकाउंटर तथा राज्‍य पार्टी प्रमुख के लिए भाजपा के केंद्रीय नेतृत्‍व की पसंद, गजेंद्र सिंह शेखावत का राजे द्वारा विरोध शामिल हैं।

राज्‍य की 200 विधानसभा सीटों पर 7 दिसंबर को मतदान होना है। राजस्‍थान की कुल जनसंख्या का करीब 12 प्रतिशत राजपूत समुदाय से आता है और कम से कम दो दर्जन सीटों पर राजपूतों का अच्‍छा-खासा प्रभाव है। राजस्‍थान भाजपा के एक नेता ने कहा, ”नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती, कम से कम चुनाव से पहले तो बिल्‍कुल नहीं।” उन्‍होंने कहा, ”वे (राजपूत) भाजपा के परंपरागत समर्थक रहे हैं। राजपूत नेता व पूर्व उपराष्‍ट्रपति भैरों सिंह शेखावत जो कि तीन बार मुख्‍यमंत्री रहे, का योगदान भाजपा की चुनावी सफलता के लिए महत्‍वपूर्ण था।”

वर्तमान सरकार में राजपूत समुदाय से तीन मंत्री और एक जूनियर मंत्री हैं। सरकार और राजपूतों के बीच दूरियां तब बढ़नी शुरू हुईं जब जयपुर राजघराने की पद्मिनी देवी ने अतिक्रमण-निरोधी अभियान के तहत राजमहल के प्रमुख द्वार पर तालाबंदी का सार्वजनिक विरोध किया। पद्मिनी देवी, भाजपा विधायक दिव्‍या कुमारी की मां हैं, जो पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी में शामिल हुई थीं। जिस तरह महल के द्वार पर सरकारी अधिकारियों ने ताला लगाया, वह राजपूत समुदाय के कई सदस्‍यों को नागवार गुजरा।

राजपूतों के भीतर सुलग रहा गुस्‍सा तब धधक उठा, जब रावण राजपूत समुदाय से आने वाले गैंगस्‍टर आनंदपाल सिंह को एक पुलिस मुठभेड़ में ढेर कर दिया गया। राजपूतों द्वारा रावण राजपूतों को एक निचली जाति माने जाने के बावजूद, आनंदपाल की हत्‍या का चहुंओर विरोध हुआ। कई राजपूत संगठनों ने एनकाउंटर की सीबीआई जांच की मांग की थी, जब सरकार सीबीआई जांच को तैयार हो गई तो उसने केंद्रीय एजंसी को आनंदपाल के खिलाफ दर्ज 115 मुकदमे भेजे। सरकार और राजपूतों के बीच संबंध और खराब हो गए।

इसके बाद फिल्‍म ‘पद्मावत’ को लेकर विरोध शुरू हुआ। राजपूत शुरू से ही फिल्‍म का विरोध कर रहे थे और इस बात से नाराज थे कि सरकार ने शूटिंग की इजाजत कैसे दे दी। रिलीज के समय राजस्‍थान में फिल्‍म पर प्रतिबंध लगाने भर से राजपूत संतुष्‍ट नहीं हुए। राजपूतों का गुस्‍सा इस बात से और भड़का कि गजेंद्र शेखावत को राजस्‍थान भाजपा का प्रमुख बनाने का राजे ने जमकर विरोध किया। राजे अड़ गई तो राज्‍यसभा सांसद व ओबीसी नेता, मदनलाल सैनी को यह पद मिला।

सबसे ताजा घटनाक्रम मानवेंद्र सिंह के पार्टी छोड़ने का है। 2014 लोकसभा चुनाव में बाडमेर से मानवेंद्र को टिकट नकारे जाने के बाद से ही सिंह परिवार और भाजपा के बीच दूरियां बढ़नी शुरू हुईं। भाजपा के आधिकारिक उम्‍मीदवार के खिलाफ लड़ रहे जसवंत के लिए प्रचार करने पर मानवेंद्र को पार्टी से निलंबित कर दिया गया। राजनैतिक विशेषज्ञों का मानना है कि सिंह परिवार के साथ भाजपा के व्‍यवहार से राजपूत आहत हैं।

– साभार

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