बिहार/समस्तीपुर- शहर के टाउन हॉल में जिला उर्दू कार्यशाला में सेमिनार व मुशायरा का आयोजन किया गया। डीएम ने दीप प्रज्वलित कर के सेमिनार का व मुशायरा का किया उद्घाटन ।अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद डीएम चंद्रशेखर सिंह ने कहा कि हिंदी के साथ उर्दू हिन्दुस्तान की बोली है। मगर हम इसे भूलते जा रहे हैं। इसे बढ़ावा देने की जरुरत है। उन्होंने बताया कि आज हम अपने बच्चों को न हिंदी पढ़ाना चाहते हैं न उर्दू या अन्य कोई भाषा। हम उसे सिर्फ अंग्रेजी चाहते हैं। जब तक हम अपनी औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर नहीं निकलेंगे हम अपनी किसी भाषा का विकास नहीं कर सकते। जिले के सभी विद्यालयों में उर्दू के शिक्षक दिए गए हैं। वहीं डीडीसी ने उर्दू को भावनाओं की अभिव्यक्ति का सबसे खूबसूरत जरिया बताया। उसे भारतीय संस्कृति के विकास व आजादी की लड़ाई का साथी बताया। वहीं मदरसा बोर्ड के पूर्व चेयरमैन युनुस हकीम ने उर्दू को अदब व सलीका सीखाने वाली भाषा बताया। उन्होंने कहा कि मदरसा को बढ़ाने व उसके सही संचालन से ही कॉलेजों में उर्दू के छात्र मिल पाएंगे। मौके पर जिले के मशहूर शायर कैसर सिद्दकी के पुत्र अशी सिद्दकी ने कैसर की लिखी पुस्तक ‘बेचिराग आंखे’ डीएम व अधिकारियों को सौंपी। मौके पर डीडीसी वरुण कुमार मिश्रा, देवव्रत मिश्रा, डॉ. वसिया इरफाना, वासिफ जमाल, मो. शहीद, नप उपाध्यक्ष शारिक रहमान लवली, उर्दू के शायर व शिक्षक सहित दर्जनों लोग मौजूद थे।
‘मैं भी तो बेटा हूं इसी बूढ़ी गंडक का’
इस अवसर पर जिले के मशहूर शायर कैसर सिद्की उर्फ कैसर समस्तीपुरी के नाम से मुशायरा का आयोजन किया गया। इस दौरान शायरों ने उनकी लिखी ‘कल का चेहरा कैसा होगा सोचा जाए, मिट्टी से मिट्टी का रिश्ता सोचा जाए। मैं भी तो बेटा हूं इस बूढ़ी गंडक का, मेरे बारे में भी तो थोड़ा सोचा जाए’ व पंकज उदास की गाई उनकी गजल ‘दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है, हम भी पागल हो जाएंगे ऐसा लगता है’ को खूब सराहा गया। वहीं डॉ. अजीत कुमार की ‘घरौंदे याद के मन में बसे अब भी सताते हैं, वो पीले फूल सरसों के अभी भी याद आते हैं’ जैसी रचानाओं ने खूब वाहवाही लूटी। मौके पर शायर शैदा बघौनवी, कैफ अहमद कैफी, शिवेंद्र कुमार पाण्डे, नसार अहमद नेसार, मौलाना कासिम,डॉo फूल हसन, असद हुसैन, मो0 गुलहशन,असगर साहिल, कासिम सबा व असरार दानिश सहित अन्य मौजूद थे।
रिपोर्ट- कैशर खान, समस्तीपुर