बरेली – सुनील मानव भारतीय गांव और भारतीय परंपरा की सोंधी मिट्टी से निकले हुए एक अनूठे लेखक हैं ! सुनील ने गांव की परिपाटी, गांव की सभ्यता, गांव में होने वाले वर्ग विभेद को बहुत करीब से देखा है। सुनील मानव की कृति गंठी भंगिनिया एक बहुत ही सार्थक कृति है। वर्ण विभाजन पर किस प्रकार समाज ने वर्णों को चार भागों में बांट रखा है और ऊंची जाति वाले निचली व पिछड़ी जातियों को किस प्रकार देखते हैं। दलितों के प्रति उनकी भावना किस प्रकार निरूपित होती है और दलित समाज को किस प्रकार से हेय दृष्टि से देखा जाता है। सुनील मानव अपने ही गांव की एक बूढ़ी महिला जो समाज का मैला उठाने का काम करती हैं उसको बहुत करीब से देखते हैं । किस प्रकार वह महिला सुबह पूरे गांव का मैला उठाती है और शाम को दो रोटी के लिए सब के दरवाजों पर बैठती है और अपना आंचल पसार कर दो निवाले वह भी जूठन भरे प्राप्त करती है। सुनील वर्ण व्यवस्था के इस ऊंच-नीच को समझ नहीं पाते, देख नहीं पाते तो वह स्वयं अपने आप को ही उस में शूद्र महिला से छुआ देते हैं जिससे उनका परिवार उन्हें अपवित्र मान लेता है । यह शूद्र महिला एक बहुत अच्छी दाई के रूप में भी काम करती है। जब किसी घर में किसी महिला का प्रसव कराना होता है तब यह अछूत महिला दाई के रूप में,एक मां के रूप में सामने आती है और बच्चे को जन्म देती है तब इसकी छुआछूत अचानक से गायब हो जाती है।
गंठी भंगिनिया सामाजिक वर्ग विभेद पर सुनील मानव की एक अनूठी रचना है। यह कृति सामाजिक असमानता के इस प्रश्न को बहुत संवेदनशील तरीके से उठाती है।
– बरेली से आशीष जौहरी