उत्तराखंड/रिखणीखाल- कार्बेट पार्क की सीमा या अंदर बसे लगभग साठ गांवों व उनके तोकों के प्रभावित ग्रामीणों ने विगत इक्कीस तारीख से शुरू हुई वनविभाग व स्थानीय लोगों की बैठकों में एक स्वर में पुरजोर विरोध किया। कार्बेट नेशनल पार्क की सीमा से लगे अधिकांश गांवों की जीवनशैली के लगातार वन वन्य जीवों व वन कानूनो के फेर में उलझने को लेकर इस पहल की भर्त्सना करते हुए अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहने की जरूरत समझी है।इसी परिप्रेक्ष्य में क्षेत्रीय विधायक महन्त दिलीप रावत द्वारा भी मुख्यमंत्री से मुलाकात कर इको सेंसिटिव जोन से प्रभावित ग्रामीणों को निजात दिलाने की मांग की है। जहां वन आधारित जीवन जीने वाले ग्रामीणों को सड़क, बिजली आदि सुविधाओं से वंचित रहना पड़ रहा है वहीं सिमटती सीमायें वन वन्य कानूनी पेंचों से घिरती नजर आ रही है।वनों के बीच जीवन जी रहे गुर्जर समाज का मनमुताबिक विस्थापन कर दिया गया लेकिन विकास से इतर वह विस्थापन से बिखरे, बिफरे तैड़िया ,पांड गांव की जानबूझकर विभाग व शासन सत्ता ने कमर तोड़कर जरूर रख दी।हस्र के रूप में न विकास हुआ और न ही विस्थापन?पार्क की सीमा अल्मोड़ा जिला, नैनीताल, पौड़ी व बिजनौर तक मिली है। ग्रामीणों में विस्थापन एवं पुनर्वास संघर्ष समिति के अध्यक्ष डॉ ए.पी. ध्यानी का कहना है कि यह विभाग व सरकारी तंत्र की सोची समझी रणनीति है और बेबस असहाय लोगों को इको सेंसेटिव जोन की कृपा बरसाकर उन्हें मूलाधिकारों से वंचित कर ने षड़यंत्र है ताकि लोग गांव छोड़ने को मजबूर हो जायेंगे और सरकार की पलायन रोकने की जो सोच आखिर इससे मेल क्यों नहीं खा रही है,यह चिंतनीय के साथ निंदनीय है।
बिनीता ध्यानी
रिखणीखाल