सभी धर्मों के लोगों के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है लाखनमाजरा गुरुद्वारा

-देश के अलावा विदेशों से भी पहुंचते है श्रद्घालु
-हजारों वर्ष पुराना इतिहास समेटे हुए है यह गुरुद्वारा
-गुरु तेग बहादुर ने 13 दिनों तक यहां किया था ठहराव
-सिरसा के प्रकाश पर्व को लेकर संगत में उत्साह

रोहतक/हरियाणा- रोहतक से लगभग 18 किलोमीटर दूर स्थित गुरुद्वारा मंजी साहिब, लाखनमाजरा (रोहतक) सभी धर्मों के लोगों के लिए आस्था का एक बड़ा केंद्र है। इस गुरुद्वारा में देश के अलावा विदेशों से भी बड़ी संख्या में लोग मन्नत मांगने के लिए यहां आते है।
कहा जाता है कि सच्चे मन से मत्था टेंकने वाले प्रत्येक श्रद्घालु की यहां पर मन्नत पूरी होती है। इस गुरुद्वारे का ऐतिहासिक महत्व भी है क्योंकि सिखों के प्रथम गुरु नानक देव के मार्ग का अनुसरण करने वाले गुरु तेग बहादुर ने यहां ठहराव करके संगतों को उपदेश देकर निहाल किया था।
लाखनमाजरा गुरुद्वारे के ग्रंथी ज्ञानी जगमोहन सिंह ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा 4 अगस्त को सिरसा में गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाशपर्व के अवसर पर राज्य स्तरीय कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय सराहनीय है। इस कार्यक्रम को लेकर संगत में उत्साह का माहौल है और बड़ी संख्या में संगत कार्यक्रम में भाग लेने के लिए सिरसा पहुंचेगी।
उन्होंने बताया कि गुरुद्वारा में आने वाली संगत को इस कार्यक्रम के बारे में नियमित रूप से जानकारी प्रदान की जा रही है। जब-जब मुगल शासक औरंगजेब जबरन व लालच देकर हिन्दुओं को मुसलमान बनाने का कार्य कर रहा था तो उसके इस कृत्य से दुखी होकर कश्मीरी पंडित आनंदपुर साहिब (पंजाब) पहुंचे थे और उन्होंने गुरु तेग बहादुर के समक्ष अपनी पीड़ा का बखान किया था।
कश्मीरी पंड़ितों ने गुरु तेग बहादुर को बताया था कि औरंगजेब रोजाना सवा मन जनेऊ उतरवा कर ही रोटी खाता है। इस प्रकार हिन्दू धर्म खतरे में पड़ा हुआ है, जिसकी रक्षा करने की जरूरत है। इस पीड़ा को सुनकर गुरु तेग बहादुर के बेटे गुरु गोबिंद राय ने अपने पिता से कहा था कि आप ही हिन्दू धर्म को बचाने का काम कर सकते है।
ज्ञानी जगमोहन सिंह ने बताया कि हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर जब आनंदपुर साहिब से चलकर दिल्ली जा रहे थे तो उन्होंने 13 दिन तक लाखनमाजरा की इस धरती पर अपने चरण रख कर पवित्र किया था। गुरु तेग बहादुर 17 सितम्बर, 1675 को लाखनमाजरा आए थे। उनके साथ पांच अनुयायी (सेवादार) भी यहां आए थे। इन पांच अनुयायियों के नाम भाई मतिदास, भाई सतिदास, भाई दयाला, भाई तारूजी व भाई मनी सिंह थे।
उन्होंने बताया कि गुरु तेग बहादुर ने दिल्ली जाने तक कुल 24 पड़ाव किए थे, उनका पहला पड़ाव कीरतपुर साहिब जिला रोपड़ पंजाब था और वे अपने 19वें पड़ाव में गांव लाखनमाजरा, रोहतक पहुंचे थे। वे जहां-जहां भी ठहरे उन्होंने संगतों को गुरुनानक देव जी के उपदेशों पर चलने की प्रेरणा दी।
लाखन माजरा के अपने ठहराव के दौरान उन्होंने 13 दिनों तक न केवल गुरु नानक देव जी के उपदेश सुनाये बल्कि लोगों में साहस भरा की कि वे डर कर व लालच में आकर अपना धर्म न बदले और हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए डटे रहे।
गुरु तेग बहादुर ने अपने संदेश में कहा कि हिन्दू न तो किसी डरे और न किसी को डराये। वे लाखन माजरा की धरती पर 13 दिन तप करने के उपरांत रोहतक से बहादुरगढ़ होते हुए आगरा की ओर चले गए। लाखन माजरा में जिस स्थान पर गुरु तेग बहादुर ठहरे थे उस स्थान पर गुरुद्वारा स्थापित करने का श्रेय विभाजन के बाद भारत आये जत्थेदार दिवान सिंह जाता है। जत्थेदार दिवान सिंह ने ही साथ लगते क्षेत्रों में जाकर लोगों को इस पवित्र स्थान के बारे में जानकारी दी थी।
बताया जाता है कि इस स्थान पर एक सिख रहता था, जो सुबह शाम पौथी साहिब का पाठ करता था। उक्त सिख की तबियत खराब होने के कारण वह पौथी साहिब को वहां पर बने एक कमरे की अलमारी में रखकर कमरे का ताला लगाकर चला गया था। जत्थेदार दिवान सिंह ने ही संगतों के साथ शब्द कीर्तन करके कमरे का ताला खोला था और श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी प्रकाश किया था।
ज्ञानी जगमोहन सिंह ने बताया कि अमावस्या और दसवीं के दिन गुरुद्वारा में विशेष रोनक होती है। हर वर्ष मार्च महीने में होला मोहल्ला कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। उन्होंने बताया कि गुरुद्वारा में पांच अथवा सात बार सच्चे मन से अराधना करने पर मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। गुरुद्वारा में हर समय संगतों के लिए लंगर तैयार मिलता है।
उन्होंने बताया कि गुरुद्वारा की पालकी साहिब को संगमरमर से बनाया गया है और पीतल का जंगला लगवाया गया है। गुरुद्वारे के साथ बने रामसर सरोवर का भी ऐतिहासिक महत्त्व है। इस प्रकार से यह गुरुद्वारा अपने भीतर हजारों वर्ष पुराना इतिहास सिमेटे हुए है।
– रोहतक से हर्षित सैनी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *