बरेली। जनपद के निलंबित चकबंदी लेखपाल सावन कुमार जायसवाल के गिरोह मे रसूखदारों की फौज शामिल है। इसमें बड़े ट्रांसपोर्टरों से लेकर प्रॉपर्टी डीलर तक शामिल है। नई रिपोर्ट दर्ज होने से भूमाफिया गिरोह की हकीकत लगातार सामने आ रही है। पता लग रहा है कि सावन भी रसूखदारों का सिर्फ एक मोहरा ही था। असली सरगना तो फाइनेंसर ही है। सावन कुमार को फाइनेंसरों का साथ मिला तो उसने जमीन पर कब्जे के लिए पैंतरों का इस्तेमाल शुरू कर दिया। सावन का दिमाग और फाइनेंसरों का रुपया लगा तो शहर में बेशकीमती जमीन पर कब्जे शुरू हो गए। सावन के गिरोह में फाइनेंसर के तौर पर अंकिश त्रिपाठी, अक्षित सिंह और विजय अग्रवाल जैसे लोग शामिल है। रजिस्ट्री दफ्तर से लेकर न्यायालय तक को गुमराह कर आदेश लेने का काम सावन करवाता था। ऐसे कामों में फाइनेंसर रुपये लगाते थे। जैसे ही जमीन पर कब्जा हो जाता था, यह गिरोह अपने दूसरे साथियों के नाम उसका बैनामा कर देते थे। इसके बाद कानूनी पेंच फंस जाता और जमीन के असली मालिक को ये लोग फुटबॉल बना देते थे। इलयास की जमीन को कब्जाने के लिए पांच बैनामे कराए गए थे। कुछ दिनों में दूसरे साथियों के नाम बैनामा कराने की तैयारी थी। हालांकि, इसमें बड़ी रकम खर्च होनी थी। इसमें समय लगा और इससे पहले पुलिस ने सावन गैंग पर शिकंजा कस दिया। गिरोह के सदस्य शाहजहांपुर, पीलीभीत और मुरादाबाद जिले में भी हैं। वहां के धनी लोग भी सावन कुमार के कहने पर रुपये लगाते थे। एसआइटी उन पर भी शिकंजा कसने की तैयारी कर रही है। एसआईटी गठित होते ही सावन के इशारे पर लाखों-करोड़ों रुपये लगाने वाले फाइनेंसर शहर छोड़कर भाग गए है। पुलिस विजय अग्रवाल, अंकिश त्रिपाठी और अक्षित सिंह समेत उन 21 लोगों की लोकेशन तलाश रही है जो कैंट थाने में दर्ज कराए गए मुकदमे में नामजद हैं। सूत्रों के मुताबिक सावन के करीबियों में से कुछ लखनऊ के सफेदपोशों की शरण में पहुंच गए है। एसआईटी नामजद लोगों की संपत्तियों की पड़ताल कर रही है। पुलिस की कार्रवाई देखकर ऐसे लोग भी गायब हो गए है। जिनका नाम अभी मुकदमों में नहीं जुड़ा है लेकिन वह सावन के करीबी हैं। इसमें से एक किला क्षेत्र का कारोबारी भी हैं, उसका नाम अक्सर जमीन संबंधी विवादों में आता रहता है।।
बरेली से कपिल यादव