कुशीनगर- रमजान का महीना आते ही सबके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। आपको बतातें चलें कि रमजान शरीफ अपने साथ बेपनाह रहमत व बरकत लेकर आया है। इस महीने में अल्लाह रब्बुल इज्जत अपने रोजेदार बंदों पर अपनी खास रहमत बरसाते हैं। खुशनसीब हैं वे अल्लाह के बंदे जिन्हें इस महीने में रोजे रखने की है तौफीक अल्लाह ने अता की। इस पाक और मुकद्दस महीने में जो शख्श अल्लाह को अपने रोजे और नमाज से राजी कर अपने गुनाहों की बख्शीयत नहीं कर सका उससे बड़ा बदनसीब और कोई नहीं है। हजरत मुहम्मद (स) ने फरमाया है कि हर नेक काम के बदले में बंदे को उसके अमाल में नेकी दर्ज की जाती है, लेकिन रोजा रखने वालों को इसके बदले खुद अल्लाह मिलेगा।रमजान के पूरे रोजा को हर बालिग मर्द और औरत पर अल्लाह ने फर्ज करार दिया है। अल्लाह बड़ा करीम और रहीम है। इसलिए इस मुबारक महीने को यूं ही जाया न करें। रोजा और नमाज के साथ तिलावत ए कलाम पाक दिल से करें। रोजे महेश्वर में इशा अल्लाह बख्शीश कर जरिया आप की इबादत बनेगी। रोजा रखने के माने दिनभर भूखे-प्यासे रहना नहीं बल्कि अल्लाह की हुक्म के मुताबिक सुबह से शाम तक गुजारना होता है। रोजे में खाना-पीना मना है। जानबूझकर खाना-पीना हुक्का, बीड़ी, सिगरेट, पानी आदि पीने से रोजा टूट जाता है। रोजे की हालत में तमाम बुरे कामों से परहेज करना चाहिए। हर रोजेदार को सेहरी खाना सुन्नत है। सेहरी में अच्छी चीज खाकर रोजा रखा जा सकता है।
यदि कुछ नहीं है तो पानी भी पीकर भी रोजा रखा जा सकता है। सुबह सादिक से पहले सेहरी खाना है और शाम को सूरज डूबने के बाद इफ्तार करना है। सेहरी व इफ्तार अपनी मेहनत की कमाई से करनी चाहिए, ताकि रोजा अल्लाह के दरबार में कबूल हो। रमजान के महीने में तरावीह की नमाज पढ़नी चाहिए। सिर्फ रमजान में पढ़ी जाने वाली इस नमाज में कुरान के 30 पारों को पढ़ा जाता है। तरावीह की नमाज इशा की नमाज के बाद पढ़ी जाती है। रमजान के महीने में शब ए कदर की रातों की इबादत की बड़ी अहमियत है। कुरान में इरशाद है कि लैलातुलकदर का मरतबा हजार महीनों से बेहतर है।
रमजान रहमतों का खजाना लेकर आया है। इसमें कुरान की तिलावत, नमाज, दरूदशरीफ पढ़ना अफजल है। रमजान में एक नेकी का बदला सत्तर मिलता है। अल्लाह रमजान में एक दुनिया के तमाम मोमिन व मोमिनात को नेक अमल करने की तौफीक अता फरमाए। यह रोजा हमें कुछ सिखलाता हैदानिश हम्माद जाजिब, जैंतगढ़रमजान का चांददिरवा और तमाम मुसलमानों के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। नमाज ए ईशा में मस्जिद खचाखच भर गया। हर एक के जुबान पे यहीं तराना है कि रमजान में नेकिया कमाना है, मगर क्या हमने कभी यह जानने की कोशिश की रमजान हर साल आता है। इसमें नेकियां बढ़ा दी जाती हैं, पर इसका मकसद क्या है। दरअसल रमजान का मकसद यह है कि झूठ, गाली, लड़ाई, झगड़ा इत्यादी से हम वर्ष श्रार दूर रहें, न की सिर्फ इस पाक महीने में।
नमाज, तिलावत, सदाका, जकात अमन व शांति से रहना आदी नेकी का ख्याल करते हुए हमें साल भर नहीं बल्कि जीवन भर इन पर चलना चाहिए। रमजान अच्छाइयों के अपनाने का अभ्यास है। आइए जानते हैं रोजा के कुछ अरकान व शराएतसुबह तुलूए फज्र से सूर्च के ढ़लने तक अल्लाह की इबादत के लिए 1. राजा तोड़ने वाली चीजों से बचना उदाहरण खाना-पीना इत्यादी 2. कुरआव पाक में तीन प्रकार के लोगों को राजा न रखने की छूट दी है। 1 मरीज, 2 यात्रि, 3 बच्चों को दूध पिलाने वाली मां मगर बाद में कभी भी साल भर के अंदर उन्हें वह रोजे रखने होंगे। महिलाओं को उनके मासिक अवधि में रोजा न रखने की हुक्म है। वह बाद में इस रोजे को पूरा करेगी।
– मोहम्मद आसिफ,कुशीनगर