बाड़मेर/राजस्थान- एक समय था जब किसी अधिकारी को सजा देने के तौर पर बाड़मेर जिले में ट्रांसफर कर दिया जाता था।आजकल सरकारी अधिकारी अपने आप को इमानदारी की आड़ में कितना तराशते है इसके लिए आपको देश भर में मशहूर हमारे काला पानी की सजा वाले अबुधाबी, दुबई बनने की अधी दौड़ में शामिल औधोगिक क्रांति की नगरी बाड़मेर जिले में नियुक्त होना चाहिए लेकिन पहले हमारे स्थानीय सरकारी लोगों की जी हजूरी से आशीर्वाद रूपी डिजायर लिजिए फिर नेताओं का वरदहस्त और आपको मिलती है दोनों हाथों से लुटने वाली काला सोने वाली बेशुमार धन दौलत और हीरे जवाहरात के साथ आलीशान कारीगरी के नायाब डिजाइन किया गया लकड़ी पर आलीशान कलाकारी का घरेलू समान से लदे हुए ट्रक अन्यथा वही आने के दौरान लेकर आए साधारण पुराने सूटकेस में टावल में लपेटा हुआ दो चार जोड़ी कपड़े, फटे हुए कच्छा बनियान और साधारण सा मोबाइल और उसका टेप लगाकर सहेजा गया टूटा हुआ चार्जर ….
लेकिन हालात का मारा बाड़मेर जिला ओर यहां के बाशिंदे उन दिनों सरकारी वाहन की आवाज मात्र से डर कर छूप जाते थे। यह वस्तुस्थिति अधिकारीयों के शोक-मौज के लिए अनुकूल साबित हुई । नतिजतन अधिकारीयों के काले पानी की सजा इनके लिए पिछले दो दशकों से काला सोना उगलने जैसी हो गई। और यह अधिकारी डरी सहमी अवाम की छाती पर एयरकंडीशनर कार बंगलों के शौकिन बनकर ऐश फरमाने लगे। उधर हालात बदले और काला पानी कहा जाने वाला यह जिला समय के साथ शिक्षित होकर अपने अधिकारों के लिए अधिकारीयों से मांग करने लगा। लेकिन तब तक इन अधिकिारीयों को एसी में ऐश करने की आदत ने दबंग बना दिया। नतिजा आज इस सुरत में पेश आ रहा हैं कि आपकी मूलभूत सुविधाओं की जनसमस्या कितनी भी बड़ी क्यों न हो , यह अधिकारी अपने एयरकंडीशनर दफतर-आवास और कार से बाहर आने की जरूरत ही नहीं समझते।
गौर फरमाने की बात यह हैं कि बाड़मेर जिला भारत पाकिस्तानी सरहद के पास स्थित होने के कारण बरसों से कई महत्वपूर्ण जनसुविधाओं से वंचित रहा हैं। वहीं लगातार बढ़ रही आबादी के भार और व्यवस्थाओं की जरूरतों ने यहां की अवाम को आंदोलित कर रखा हैं। हर कदम पर हर दूसरा व्यक्ति अपने हाथ में जनसमस्याओं के समाधान की चिट्ठी लिए सरकारी विभागो की पेडी पर नाक रगड़ता हुआ नजर आ जाता हैं। किन्तु अवाम के सुख दुख से बेखबर अमूमन हर विभाग के अधिकारी लापरवाही से पेश आते हेैें। फरियादी घंटों तक सरकारी विभागों की चौखट पर विराजमान अधिकारियों को फरियाद सुनाने का इंतजार करता रहता हैं।
जबकि अधिकारी के चैम्बर की वास्तविक स्थिति यह होती हैं कि साहब फुर्सत से ऐशी में आराम फरमा रहे होते हैं। और फरियादी विभाग की चौखट पर चाहे सर्दियों का मौसम हो या फिर 45-50 डिग्री के तापमान में भीष्ण गर्मी में झुलसते हुए भी उम्मीद का दामन थामे बस साहब का इंतजार ही करता रहता हैं।
स्थिति उस समय और गंभीर और भयावह हो जाती हैं जब जनसमस्याओं के समाधान के लिए जिला मुख्यालय पर जिला स्तरीय बैठकों का आयोजन किया जाता हैं और उन बैठकोंं में अधिकारी अपने प्रतिनिधि को भेजकर या रट्टा-रट्टाया जवाब देकर अपने फर्ज की इतिश्री कर लेते हैं। लेकिन हालात से जूझ रहे जनप्रतिनिधि इन अधिकारीयों के जवाब से संतुष्ट नहीं होते हैं तथा वस्तुस्थिति का मौका मुआयना करने की बात करतें हैं , तो यह अधिकारी जनप्रतिनिधियों से भी झगड़ पड़ते हैं। कई बार तू तू मैं मैं से बढ़ कर हाथापाई तक की नौबत आ जाती हैं। जनप्रतिनिधि बैठकोंं का बहिष्कार करते हैं, विरोध करते हैं , बैठकों में ही धरना देते हैं। मगर यह अधिकारी बेशर्म बनकर खिसियाई हसी हसते रहते हैं।
अब अगर देश के मुखिया मोदी की सुने तो, मोदी जी कहते हैं कि अफसर जन सेवा के लिए हैं यह नौकरी नहीं जनसेवा करे। वहीं राज्य की मुखिया भजनलाल शर्मा कहते हैं कि जनसमस्या कोई भी हो उसका समाधान 24 घंटे में हो।
मगर जनाब, यहां न तो जनसेवा हेै और न ही 24 घंटे में होता है मूलभूत सुविधाओं की समस्याओं का निराकरण …..। यहां तो ऐश हैं एसी की और बाड़मेर जिले की जनता जाए भाड़ में।
हालात से लड़ रही बाड़मेर की अवाम अपने जन प्रतिनिधियों के मार्फत जनसमस्याओं का समाधान करवाना चाहती हैं। लेकिन अधिकारी इन जनप्रतिनिधियों की भी एक नहीं सुनते। अधिकारीयों का अपना उच्च स्तरीय पॉवर होता हैं, उनके अपना राजनैतिक सपोर्ट हैं। इन्हे बरसों से एक ही जिले में एक ही कुर्सी पर टिके होने के बावजूद हिन्दुस्तान की कोई ताकत इधर उधर नहीं कर पा रही हैं। अगर कोई तबादला टाइपिंग मिस्टेक से हो भी गया तो अगली सूची में तबादला रद्द या फिर और कोई खाली जगह पर लेकिन बाड़मेर जिले से विदाई मजूर नहीं।
बीते पांच सालों में राज्य के पूर्व मुखिया का तुफानी दौरा हुआ था। कई सरकारीआदेश मिले, कोई भी समस्या हो उसका हाथोहाथ समाधान करो। नहीं तो इलाज कर दूंगा ….। मगर मुख्यमंत्री महोदयजी को कौन समझाए कि इन अधिकारीयों की एप्रोच आपसे भी उंची हैं। आप सिर्फ कोरी धमकी देकर डराने की फोरमल्टी करते रहिए.. इनको सुधारने की किसी की औकात नही…। ओर आखिरकार मुखिया अशोक गहलोत सरकार की ही विदाई हो गई ।
मेरी कलम की इस बात को अगर खरी खरी देखनी और समझनी हो तो, जिले के जनप्रतिनिधि व अवाम आगामी तमाम जनसुनवाईयों, बैठकों, रात्रि चौपालों आदी में उपस्थित होकर स्वय देख सकते हैं कि आपके गांव, आपकी मूलभूत सुविधाओं की समस्याओं की क्या स्थिति हैं और एसी में बैठने वाले अधिकारी उन समस्याओं के समाधान का सरकारी आकड़ों के मकड़जाल के ढ़ोल किस कदर पीटते हैं, और वाहवाही लूटते हुए नजर आएगें।
जिला मुख्यालय पर कोई भी बड़ा अधिकारी या फिर मन्त्री आ जाए, जिला कलक्टर हो या अन्य सक्षम अधिकारी, हर कोई आपकी समस्याओं को लेकर सम्बंधित अधिकारी से सवाल करेंगे और अधिकारी रट्टा रट्टाया जवाब देंगे कि इनके तो हमारे द्वारा समाधान हो गया हैं… अवाम तो आदी हो गई हैं झूठी शिकायतो की। जबकि वास्तविक स्थिति यह होती हैं कि शिकायतों का पुलिंदा ऑफिस में मार्क दर मार्क गुजरता हैं और महिनों-सालों तक एक टेबल से दुसरी टेबल तक खिसकते खिसकते फटकर नष्ट हो जाता हैं। ऐसे ही तो होता हैं अवाम की समस्याओं का समाधान,,,,, हे मुर्ख अवाम, क्यों इन अधिकारीयों के एसी-सुख सुविधाओं में खलल पैदा करता हैं,,, अब भी वक्त है सुधर जा।
– राजस्थान से राजूचारण