बिजली संकट है नहीं है औधौगिक घरानों के लिए बनाया गया है सरकार द्वारा

*फ़सल कटी आईं बैसाखी तेरा आना रह गया बाकी

बाड़मेर/राजस्थान- राज्य की जनता अँधेरे में बैठी है दूसरी तरफ़ जिन्दल कम्पनी राज्य सरकार को बाड़मेर जिले में सरकारी कोयला (लिग्नाइट) देने से मना कर रहा है।सरकार चुपचाप इस मनमानी को सहन कर रहीं हैं। फिलहाल सरकार द्वारा मीडिया मेँ बिजली संकट की ख़बरें निकलवाने के चार उद्देश्य है।

1 खदानों से जुड़े क़ानून को बदलना ताकि प्राइवेट खनिकों को असीमित शक्तियां मिल जाएँ। जिनमें अडानी समूह सबसे बड़ा प्लेयर है।

  1. बिजली विभाग को एकदम असक्षम घोषित करना होगा ताकि उसका प्राइवेटाइजेशन कर के अडानी -टाटा समूहों को बेच सकें।
  2. विद्युत वितरण और ऊर्जा उधोग को सरकारी दखल से दूर कर देना ताकि अडानी-टाटा समूह अपनी मन-माफिक मूल्य राज्यों की जनता से वसूल सके और आने वाली सरकारों का इसमें कोई दखल ही नहीं होगा।
  3. कोयले की सप्लाई में सरकारी हस्तक्षेप को हटा कर अडानी को कोयला सप्लाई की सीधी पावर देना।

पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी की ऑस्ट्रेलिया यात्रा और ऐसी ही पांच अन्य यात्राओं मेँ उधोगपति अडानी भी साथ में गया था। अडानी समूह को मोदी ने ऑस्ट्रेलिया की OZ कोयला खदान और पोर्ट प्रोजेक्ट दिला दिया लेकिन उसके लिए $7 बिलियन डॉलर की जरूरत थी। अडानी समूह को सारे अंतर्राष्ट्रीय बैंक्स ने इस प्रोजेक्ट के लिए मना कर दिया क्योंकि भारत मेँ कोयले का व्यापार पूर्ण रुप से प्राइवेट प्लेयर्स के पास नहीं था। प्रधानमंत्री मोदी की कृपा दृष्टि से अडानी समूह को SBI ने 6,200 करोड़ का लोन दे दिया।

चीन और ऑस्ट्रेलिया की आपसी लड़ाई में चीन ने ऑस्ट्रेलिया से आने वाले कोयले पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। जबकि चीन कोयले का एक बहुत बड़ा इम्पोर्टर था। अडानी समूह को बड़ा नुकसान होने वाला है। भारत में कोयले का प्रबंधन आज भी पावर यूटिलिटी ही देखती है इस लिए इस संकट को खड़ा किया गया है ताकि कोल इंडिया को आप साइड कर दीजिये फिर अडानी समूह अपनी ऑस्ट्रेलियन खदान का कोयला सीधे भारत में अपने प्लांट्स तक पहुंचा सकें।

यही वो असली कारण है जो बिजली संकट की असली जड़ से जुड़ा है। भारत मेँ फिलहाल कोल इंडिया लिमिटेड सरकारी कम्पनी है और भारत मेँ कोयले के अधिकतम मांग-आपूर्ति को निर्धात करती है। जब तक कोल इंडिया का इन्वॉल्वमेंट ख़त्म नहीं होता तब तक अडानी अपने मन माफिक मुनाफा नहीं निकाल सकता इसी लिए अंतर्राष्ट्रीय बैंक इस प्रोजेक्ट के लोन देने के लिए राजी नहीं थे। लेकिन भारत मेँ उधोगपति लाभ लेने का बंदोबस्त पहले से ही कर लेते हैँ, क़ानून सरकार बाद मेँ बना देते हैँ।

मोदी सरकार आने के बाद 2015 मेँ 56,000 करोड़ की कुल वेल्यू वाले अडानी समूह पर 72,000 करोड़ का कर्जा था। लेकिन मोदी सरकार आते ही उसने उड़ीसा मेँ 2 पवार प्लांट और एक पोर्ट ख़रीदा। जिस दिन मोदी चुनाव जीते, उसे दिन अडानी ने धर्मा पोर्ट को लार्सन एंड टुब्रो और टाटा से ख़रीद का उत्सव मनाया था।

आज-कल मीडिया आपको बता रहा की ऑस्ट्रेलियन कोयला चीन मेँ फंसा है। बस ये नहीं बता यह की वो कोयला ऑस्ट्रेलियाई सरकार का नहीं बल्कि अडानी समूह की जो ऑस्ट्रेलिया मेँ कोयला खदान है, उसका फंसा है। ऑस्ट्रेलिया सरकार तो बिजली के लिए 2020 मेँ ही कोयले का प्रयोग बंद कर चुकी है जब उन्होंने कोयले से बिजली बनाने का आखिरी प्लांट भी बंद किया था।

कोयला संकट है नहीं बनाया गया है जिसका एक कारण पिछली खबरों मेँ था दूसरी विस्तृत जानकारी

अगस्त के बाद से कोयले के स्टॉक में गिरावट आई, क्योंकि पावर यूटिलिटी ने ऐसा होने दिया। बिजली विभाग के शख्स ने हिंदुस्तान टाइम्स से कहा कि मामला संबंधित अधिकारियों को भेजा गया था।

अब पावर यूटिलिटी क्या होता है उसके लिए गूगल कर लो.. ये वो कंपनियां है जो बिजली उद्योग देखती हैँ.. भारत मेँ टॉप सात पावर यूटिलिटी कंपनियां कौन सी है…

  1. Adani Green Energy Ltd.
    (यह भारत की सबसे बड़ी कम्पनी है जिसके पास 5,290 मेगा वाट का प्रोजेक्ट पोर्टफोलियो है)
  2. SJVN Ltd. …
    3.JSW Energy Ltd. …
  3. Torrent Power Ltd. …
  4. Adani Power Limited. …
  5. Tata Power Company Ltd. …
  6. NTPC Ltd.

कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) ने एक बयान में कहा कि वित्त वर्ष की शुरुआत में कोयले का स्टॉक 28.4 मीट्रिक टन के स्तर पर था।

समाचार पत्र हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, CIL ने 29 सितंबर को कहा था, “अगर पावर यूटिलिटी ने CEA द्वारा निर्धारित 22 दिनों के मानक स्टॉक को बनाए रखा होता, तो कोयले के कम स्टॉक की स्थिति को टाला जा सकता था। इस कमी को दूर करने के प्रयास में, कोयला मंत्रालय ने 5 अक्टूबर को घोषणा की थी कि कोयला खदानें, जो केवल खुद के उपयोग के लिए कोयले का उत्पादन करती हैं, जिन्हें “कैप्टिव माइंस” के रूप में जाना जाता है, को अब अपने सलाना उत्पादन का 50 प्रतिशत ओपन मार्केट में बेचने की अनुमति दी जाएगी।

कोयले के उच्च घरेलू उत्पादन पर जोर देते हुए, Mines and Minerals (Developement and Regulation) Amendment Act में इसे लेकर संशोधन किया गया था।

कमी की रिपोर्ट्स पर आपत्ति जताते हुए, छत्तीसगढ़ के वकील सुदीप श्रीवास्तव ने कई बार ट्वीट्स में कहा, “पावर प्लांट्स में कोयले की भारी कमी के बारे में सरकार द्वारा लीक या प्लांट की गई खबरों पर प्लीज यकीन न करें। ये अगले सत्र में निजी कोयला खनिकों के पक्ष में Coal Bearing Area (Acquisition and Development) Act 1957 में संशोधन करने के लिए नैरेटिव सेट करने के लिए बिछाया जा रहा एक जाल है।

अब, CIL खुद लगभग 600 मीट्रिक टन कोयले का उत्पादन करता है और ध्यान देने वाली बात है कि कोयले के स्टॉक में कमी का मतलब देश में कोयले के उत्पादन में कमी नहीं है।

इसके अलावा, श्रीवास्तव ने चेतावनी दी कि, “कोयला की कमी का नैरेटिव बदहाली का माहौल बनाने के लिए बनाया जा रहा है, ताकि Coal Bearing Area (Acquisition and Development) Act 2021 जैसे कठोर कानून को संसद के अगले सत्र में पास किया जा सके।”

न्यूजक्लिक की रिपोर्ट के मुताबिक, बिल के पारित हो जाने के बाद, निजी कंपनियों को सामाजिक प्रभाव का आकलन करने, बहुसंख्यक आबादी की सहमति प्राप्त करने और कोयला खनन के लिए भूमि अधिग्रहण से पहले प्रभावित लोगों को पर्याप्त मुआवजे का भुगतान करने से छूट मिल जाएगी।

इसके अलावा, 2013 में भूमि अधिग्रहण बिल के एक प्रावधान, जिसे LARR Act, 2013 के रूप में जाना जाता है, अब उन कॉरपोरेट्स पर लागू नहीं होगा जो बोलियों के माध्यम से अधिग्रहित भूमि से कोयले का खनन शुरू करेंगे।

श्रीवास्तव कहते हैं कि इस “कठोर” बिल के साथ, कोयला खनन के लिए पर्यावरण मानदंडों को भी ताक पर रख दिया जाएगा। इसी के साथ आपको बताया जायेगा की सरकारी कंपनियां बिजली और कोयला आपूर्ति नहीं कर पा रही इस लिए उन्हें अडानी और टाटा समूह को बेच देना चाहिए।इस खबर की विस्तृत जानकारी देशभर के अख़बारों से लिए गए हैँ।

– राजस्थान से राजूचारण

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