बाड़मेर में खौंफ का दूसरा नाम पत्तलकार, पुलिस तंत्र जानबूझकर मौन

बाड़मेर/राजस्थान- एक समय था जब एक पत्रकार की कलम में वो ताक़त थी कि उसकी कलम से लिखा गया एक-एक शब्द हमारे राजनेताओं, व अधिकारियों की कुर्सियों को हिलाकर रख देता था, पत्रकारिता ने हमारे देश की आज़ादी में अहम् भूमिका निभाई, देश जब गुलाम था तब अंग्रेजी हुकूमत के पाँव उखाड़ने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्यों से अनेक समाचार पत्रों, पत्रिकाओं का सम्पादन शुरू हुआ था। समाचार-पत्र पत्रिकाओं ने देश में लोगों को जोड़ने व एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई थी।

आज जिस तरह से समाचार पत्र-पत्रिकाओं की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। उसी तेजी से पत्रकारों की संख्या में भी जमकर बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन इन सबके बीच, कुछ ऐसे लोग भी पत्रकारिता के पेशे से जुड़ गए है। जिनके कारण पत्रकारिता पर सवालिया निशान लगने शुरू हो गए हैं। इसमें सबसे बड़ा योगदान व्हाट्सएप युनिवर्सिटी के दक्ष पत्रकारो की बाड़मेर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में भरमार है।

आज के जमाने में रेडिमेड युवाओं ने पत्रकारिता को एक तरह का बाजारू शोक समझ लिया है। वो इसी के चलते पत्रकारिता करते हैं। जबकि पत्रकारिता एक ऐसा कार्य है जिसे ना तो हर कोई कर सकता है और ना ही ये हर किसी के बूते की बात है। पत्रकारिता करना हर दौर में एक महत्वपूर्ण चुनौती रही है और आज भले ही मीडिया क्रांति में हाइटेक प्रणाली का दौर हो लेकिन पत्रकारिता करना आज भी एक चुनौतीपूर्ण विषय है।

आजकल ऐसे पत्रकारों की भी लंबी चौंडी कतारें है कि जिनका पत्रकारिता से दूर दूर तक भी कोई लेना देना नही होगा, उनको पत्रकारिता का एक अक्षर तक नही पढा होगा, वो ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े बड़े पत्रकार बने हुए घूमते फिर रहे हैं। जिससे पत्रकारिता की छवि धूमिल हो रही हैं। लोगों का भरोसा पत्रकारों पर से आज-कल उठने या फिर कम होने लगा है। अब आये दिन समाचार पत्रों में अलग अलग खबरें छपती है। वह पत्रकार किसी को ब्लैकमेल कर रहा था ,उस थाने में उसके खिलाफ नामजद मामला दर्ज हुआ है। ऐसे ही सफेदपोश लोगों ओर जनता में सच्चे पत्रकारों की छवि को धूमिल कर रहे है।

लेकिन आज-कल पत्रकार बनने के लिये भूमाफिया गिरोह, नशे के कारोबारी, शराब तस्करी करने वाले, टपोरी गुंडे, निरक्षर आपराधिक मानसिकता के व्यक्ति अपने कारोबार को संरक्षण देने के लिए पत्रकारिता से जुड़ रहे है। अपनी धाक जमाने व गाडियो पर छोटे बड़े शब्दों में प्रेस लिखाने के अलावा इन्हें पत्रकारिता या किसी से कुछ लेना देना नहीं होता क्यूंकि सिर्फ प्रेस शब्द लिखना ही काफी है। गाड़ी पर सरकारी नम्बरों की ज़रूरत नहीं, किसी कागजातों की ज़रूरत नहीं, हेलमेट की ज़रूरत नहीं मानो सारे नियम व क़ानून इनके लिए ताक पर रखे हुए है। क्यूंकि सभी इनसे आजकल डरते जो हैं। चाहे नेता हो, अधिकारी हो, सरकारी कर्मचारी हो, पुलिस तत्र हो, अस्पताल का स्टाफ़ हो सभी जगह बस इनकी धाक ही धाक जमीं रहती है। इतना ही नहीं अवैध कारोबारियों व अन्य भ्रष्टाचारी अधिकारियों, कर्मचारियों आदि लोगों से धन उगाही कर व हफ्ता वसूल कर अपनी जेबों को भर कर ऐश-ओ-आराम की ज़िन्दगी जीना पसंद करते हैं।खुद भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं।और भ्रष्टाचार को मिटाने का ढिंढोरा समाज के सामने पीटते हैं।मानो यही सच्चे पत्रकार हो सभी लोग इनके डर से आतंकित रहते हैं कुछ तथाकथित पत्रकार तो यहाँ तक हद करते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में सच्चे, ईमानदारी से काम के लिए समर्पित अधिकारियों और कर्मचारियों को काम भी नहीं करने देते। जिससे उनका धंधा, चलता रहे।और वह लोग समाज को गुमराह कर सिर्फ ओर सिर्फ अपना कारोबार चला रहे। यह समाज के लिये आज नहीं तो कल बहुत ही ज्यादा घातक होगा।

पत्रकार समाज को एक नई दिशा दिखता है। जो समाज की अच्छाई व बुराई को समाज के सामने लाता है। जो पत्रकारिता के दिनोदिन गिरते स्तर को बयान करता हैं इसलिए पत्रकारिता के गिरते स्तर को बचाने के लिय अगर पत्रकार ही इस ओर सही कदम नही बढायेंगे तो पत्रकारिता के गिरते स्तर को कभी भी बचाया नही जा सकता है।

– राजस्थान से राजूचारण

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