राजस्थान/बाड़मेर- राष्ट्रीय मरु उद्यान के आसपास के क्षेत्रों में इलेक्ट्रिक शॉक डिवाइस (झटका मशीन) के उपयोग को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने संज्ञान में लिया है, जो पश्चिमी राजस्थान जैसे संवेदनशील क्षेत्र के लिए अत्यंत चिंताजनक है। यह विषय न केवल पर्यावरणीय संतुलन, बल्कि सामाजिक-आर्थिक संदर्भों में भी जटिल है। एक ओर, किसान अपनी फसलों को स्वतंत्र विचरण करने वाले पशुओं जैसे नीलगाय और सूअर से बचाने के लिए झटका मशीनों का सहारा लेते हैं, जो उनकी आजीविका के लिए आवश्यक प्रतीत होता है। दूसरी ओर, इन उपकरणों का उपयोग मरुस्थलीय पारिस्थितिकी पर प्रभाव डालता है, विशेष रूप से सरीसृपों और वन्यजीवों पर, जिनकी असमय मृत्यु जैव-विविधता के लिए हानिकारक है।
पश्चिमी राजस्थान, जो अपनी अनूठी भौगोलिक और पारिस्थितिकीय विशेषताओं के लिए जाना जाता है, राष्ट्रीय मरूँ उधान जैसे संरक्षित क्षेत्र की उपस्थिति इस समस्या को और जटिल बनाती है। इस संदर्भ में, सरकार को कांटेदार तारबंदी योजना की जटिलताओं को सरल करते हुए इसे अधिक प्रभावी और समावेशी बनाना चाहिए ताकि इस योजना के तहत किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान कर झटका मशीनों के उपयोग को हतोत्साहित किया जा सकता है, जिससे न केवल उनकी फसलों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि पर्यावरणीय क्षति भी न्यूनतम होगी।
पश्चिमी राजस्थान के लोगों की आजीविका का साधन खेती और पशुपालन है और इससे ही अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं। इस क्षेत्र विशिष्ट परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, मेरा प्रदेश सरकार से निवेदन है कि वे एक विशेषज्ञ समिति का गठन करें, जो इस समस्या का ठोस और स्थायी समाधान प्रस्तुत करे। साथ ही, तारबंदी योजना के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए नियमों और शर्तों में रियायतें प्रदान की जानी चाहिए, ताकि सीमावर्ती क्षेत्रों के किसानों को अधिकतम लाभ मिल सके। यह कदम न केवल जैव-विविधता के संरक्षण में सहायक होगा, बल्कि किसानों की आजीविका को भी सशक्त बनाएगा, जिससे मरुस्थलीय पारिस्थितिकी और मानव जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित हो सके। इस प्रकार, संतुलित और समग्र दृष्टिकोण के साथ, पश्चिमी राजस्थान में पर्यावरण संरक्षण और कृषि हितों के बीच सामंजस्य स्थापित करना न केवल संभव है, बल्कि दीर्घकालिक स्थिरता के लिए अनिवार्य भी है।
– राजस्थान से राजूचारण