बाडमेर जिले में देश का चौथा स्तंभ ख़तरे में है …. राजू चारण

जब हम या आप पत्रकार शब्द सुनते है तो हमारे मन में जो तस्वीर या छवि सामने उभरती है वो कलम या कैमरा लिए एक ऐसे आदमी की होती है जो अत्यंत तीव्र बुद्धि वाला होता है और उसे हर सही या गलत की समझ होती है। जाहिर सी बात है ऐसे आदमी के लिए हर आदमी के दिल में बहुत इज्जत होती है। और होनी भी क्यूं नहीं चाहिए आखिर वो व्यक्ति जनता का नुमाइंदा जो ठहरा। उसके हर सही या गलत निर्णय पर देश का भविष्य और वर्तमान निर्धारित होता है।

हमारे देश के कुशाग्र बुद्धिजीवियों ने देश का संविधान बनाया जिसमें कानून बनाने की लिए विधान पालिका व उसे चलाने के लिए कार्यपालिका की व्यवस्था थी, यदि इन नियमों की देख-रेख के लिए न्यायपालिका की भी व्यवस्था की गई। समय बीतता गया तो उक्त तीनों उच्च विभाग धीरे-धीरे अपने कार्य से मुख मोड़ने लगें।अब सवाल ये पैदा हुआ कि इन्हें इनकी जिम्मेदारियों का अहसास कौन करवाएगा। इस तरह पत्रकार का जन्म हुआ। समय के साथ-साथ समाज के इस मुखिया की शक्तियों में शनै:-शनै: इजाफा होता गया। अमेरिका व भारत जैसे देशों में पत्रकारों को विशिष्ट शक्तियां दी गई ताकि समय पड़ने पर पत्रकार बड़े विशिष्ट व गणमान्य व्यक्तियों व प्रशासन के खिलाफ भी अपनी आवाज उठा सके।

पत्रकारों को अंग्रेजी भाषा में मीडिया व मास कम्युनिकेटर कहा जाने लगा। क्योंकि पत्रकार वर्ग सम्पूर्ण जनता का प्रतिनिधित्व करता है, परन्तु शक्तियां बढ़ने पर पत्रकार का भी ईमान डोलने लगा। आज बहुत कम पत्रकार ऐसे होंगे जो वास्तव में जन-कल्याण को ध्यान में रखते होंगे। कहा जाता है कि आज का पाठक वर्ग बहुत समझदार है परन्तु ये कथन कितना सच है यह पढ़ने के बाद आप स्वयं निर्णय कर लें।

आज यदि हम बाड़मेर जिले में कोई भी बड़ा समाचार चैनल देखते हैं तो वह मात्र सनसनीखेज खबरें ब्रेकिंग न्यूज के रूप में चौबीस घंटे दिये जा रहा है और दर्शक भी बिना पलक झपकाए, बिना किसी शिकायत के परोसी न्यूज को एकटक देखे जा रहा है। खबरें भी ऐसी जिनमें न्यूज फैक्टर ना के बराबर होता है।इस बात पर कभी कभार बहुत वाद-विवाद हुआ है कि तो क्या मीडिया को और आजादी देने की बजाय जितनी आजादी उसे प्राप्त है वो भी छीन ली जाए ?

लेकिन भला तब पत्रकार होने या नहीं होने का क्या औचित्य रह जाएगा ? आखिर एक पत्रकार की सीमाएं क्या होनी चाहिए। इस पर एक समिति का भी जिला मुख्यालय पर गठन किया गया था जिन्होंने सोशलमीडिया पर निजता का हनन और सामाजिक मामले में दुरूपयोग करने जैसी खबरों की रोकथाम के लिए मीडिया को कुछ दिशा र्निदेश जारी किए थे। लेकिन आजकल वह रद्दी की टोकरी में फेंक दिया होगा।

सबसे पहले तो देश की सुरक्षा व्यवस्थाओं के क्षेत्र में दखलअंदाजी करने का किसी को कोई हक नहीं है। जिन मामलों से देश व इसके निवासियों की सुरक्षा जुड़ी हो, उन मामलों को सरेआम नहीं किया जा सकता। एक और बात कि मीडिया को अपनी शक्तियों के दुरुपयोग करने की स्वतंत्रता नहीं मिलनी चाहिए। और यदि पत्रकार व्यक्ति ऐसा करता है उसके खिलाफ भी भारत सरकार के विधी सम्मत कार्रवाही करनी चाहिए।

महज टीआरपी यानि टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट या टेलीविजन रेटिंग पर प्रोग्राम की खातिर इलैक्ट्रानिक मीडिया उलजुलूल खबरों को सोशलमीडिया पर दिन व रात चलाए रखता है। अब उनकी मजबूरी ये है कि उनको चैनल चलाने के लिए उन्हें स्पांसर चाहिए। और चैनल को स्पांसर व एडवरटीजमैंट तभी मिलेगी जब चैनल लोकप्रिय होगा। लेकिन चैनल को लोकप्रिय बनाने के लिए घटिया रास्ता अपनाने से बेहतर है कि अच्छा व सत्यतापूर्ण समाचार ही दिखाया जाए।

आज-कल समाचार पत्रों के स्तर में भी काफी गिरावट आ चुकी है। समाचार पत्रों में स्थानीय खबरों को अधिक महत्व दिया जाने लगा है। समाचार पत्रों में अश्लिलता को अधिक परोसने लगे हैं। हालांकि देश में सभी न्यूज चैनल व सभी अखबारें ऐसी नहीं करते है। अभी भी देश में अगुलियो पर गिनने वाले कुछ ऐसे पत्रकार बन्धु, चैनल व अखबारें है जो अपने कर्तव्य को पूरी निष्ठा के साथ निभा रहा है। जो अभी भी पैसे को अधिक तवज्जो ना देकर सत्य को महत्व देते है। निश्चित तौर पर ये लोग बधाई के पात्र हैं। अभी भी मीडिया को ओर जागना होगा लोगों के हक के लिए, लोगों की जागरुकता के लिए। आखिर देश के चतुर्थ स्तंभ होने का इतना हक तो अदा करना ही होगा।

– राजस्थान से राजूचारण

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