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फूलों की होली महोत्सव के साथ भागवत कथा का समापन

झांसीl अनवार फार्म ट्यूबवेल रोड खाती बाबा में चल रही श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ कथा का श्रवण कराते हुए सप्तम दिवस राष्ट्रीय भगवताचार्य आचार्य पं. विनोद चतुर्वेदी, गौड़ बाबा सिद्धाश्रम खाती बाबा झांसी ने रुक्मणी विवाह व सुदामा चरित्र की कथा का वर्णन करते हुए कहा कि जो अपना मन भगवान के चरणों में लगाते हैं। उनकी प्रार्थना प्रभु स्वीकार करते हैंl विदर्भ देश के एक प्रतापी राजा थे। जिनकी कन्या रुकमणी थीl जिसका विवाह भाई शिशुपाल चंदेरी नरेश से तय कर दिया। लेकिन रुकमणी ने पहले ही कृष्ण से विवाह करने की ठान ली थी। जिसका मन भगवान में लग जाए। भला उसे क्या अच्छा लगेगा। वास्तविकता में सुख हरि के चरणों में ही है।

यह वृतांत जानते ही रुकमणी ने एक पत्र ब्राह्मण के यहां से द्वारका भेज दिया। प्रभु ने ब्राह्मण का स्वागत किया वह पत्र पढ़कर स्वयं मित्र के साथ वायु वेग रथ से चल दिए। नगर में पता चला कि रुकमणी देवी पूजन को गई हैं। यहां मंदिर में दुर्गा पूजन किया व श्रीकृष्ण ही मेरे पति बने यह वरदान मांगा। मंदिर में ही प्रभु में हाथ पकड़कर रथ में बिठाकर द्वारका आ गए। द्वारका आकर प्रभु ने वेद रीति व लोक रीति से विवाह किया। पुराणों में सभी आश्रमों में गृहस्थ आश्रम श्रेष्ट बताया गया है।

कथा का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि द्वारकाधीश के अभिन्न मित्र सुदामा है। जो बड़े ही सरल हैं, विद्वान हैं किंतु बड़े ही गरीब हैं। एक दिन सुदामा की पत्नी ने 4 मुट्ठी चावल देकर अपने मित्र से मिलने भेज दिया। द्वारकापुरी पहुंचकर सुदामा ने पहरेदारों से कहा मेरा नाम सुदामा है, मुझे अपने मित्र श्री कृष्ण से मिलना है। पहरेदारों से कृष्ण ने जब यह सुना तो प्रभु सिंहासन से नंगे पैर दौड़कर सुदामा से मिलने आए।

प्रभु ने अपने सिंहासन पर सुदामा को बैठाकर चरण पखारे बातों बातों में प्रभु ने मित्र की कांख में दबी चावल की पोटली देख ली। प्रभु ने मित्र से पोटली छीनकर दो मुट्ठी चावल खाकर सुदामा को दो लोक दे दिएl प्रभु की आज्ञा से विश्वकर्मा ने सुदामापुरी को द्वारका सुदृश्य बना दिया। दूसरे दिन विदा लेकर सुदामा अपने गांव आए। महल अटारी व सुशीला को देखकर प्रभु की स्तुति करने लगे। ईश्वर की प्राप्ति का सबसे बड़ा माध्यम भागवत स्मरण है।इसके पश्चात फूलों की होली खेली गई।

इससे पूर्व श्रीमद् भागवत पूजन श्रीमती रमा आर पी निरंजन, हरपाल सिंह परमार, राम आसरे गुप्ता, पंडित मैथिली मुदगिल शशिकांत द्विवेदी, राकेश सेन, रामबाबू यादव एके सोनी, फूलचंद्र द्विवेदी, बी. डी. शर्मा, बीके उपाध्याय, नितिन चतुर्वेदी, रानू चतुर्वेदी, अभिषेक पाठक, अमित पांडेय आदि ने किया।

कार्यक्रम का संचालन पंडित सियाराम शरण चतुर्वेदी ने कियाl अंत में सभी का आभार व्यक्त पंडित दिलीप मुदगिल ने किया।

रिपोर्ट: उदय नारायण कुशवाहा (झांसी)

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