प्रकृति से छेड़छाड़ मानव के लिए खतरा

मनुष्य और प्रकृति के बीच ऐसे सम्बंध है कि प्रकृति के बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जल, जंगल, जमीन से मनुष्य को जीवन जीने की शक्ति मिलती है। प्रकृति ने मनुष्य को बिन मांगे अनमोल उपहार दिए हैं। हमारे पूर्वजों ने संस्कृति का ऐसा ताना-बाना बुना है जिसमें मनुष्य और प्रकृति में प्रत्येक स्तर पर संतुलन दिखाई देता है। विकास की अंधी दौड़, बाजारीकरण, औधोगीकरण और प्रकृति विरोधी नीतियों ने मनुष्य और प्रकृति के तालमेल में असंतुलन पैदा किया है। प्रकृति का अंधाधुंध दोहन और उपभोग पर्यावरण से जुड़ी अनेक समस्याओं का कारण बन रहा है। धरती का तापमान लगातार वर्षवार बढ़ रहा है। समुद्र का बढ़ता जलस्तर भारी खतरे का संकेत है। ग्लेश्यिर निर्धारित समय से पूर्व एवं अधिक तेजी से पिघल रहे हैं। ऋतु चक्र में परिवर्तन, अत्यधिक वर्षा और सूखा सामान्य घटनाओं की श्रेणी में खड़ी दिख रही हैं। लगातार धरती से हरियाली का क्षेत्रफल घट रहा है। पीने का शुद्ध जल गंभीर समस्या का रूप धारण कर चुका है। प्रकृति से मित्रता की बजाय हमारा रवैया शत्रुओं जैसा है। ऐसे में प्रकृति भी समान व्यवहार करने को विवश हो रही है।मनुष्य का प्रकृति की व्यवस्था में अनावश्यक छेड़छाड़ के कारण आज ग्लोबल वार्मिंग से लेकर अतिवृष्टि या अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदाओं से हमें जूझना पड़ रहा है। विकास के नाम पर पेड़-पौधों की कटाई से कई तरह की समस्याएं सामने आ रही हैं।
प्रकृति ने हमें कितना कुछ दिया है। उपजाऊ जमीन जो हमारे भोजन और आवास का आधार बनी पानी- जिसके बिना जीवन की कल्पना असंभव लगती है, सांस लेने के लिए शुद्ध हवा और जीवन को सरल सुगम बनाने के अनगिनत साधन।लेकिन इस नेमत के बदले हमने क्या लौटाया दिन-ब-दिन बढ़ती तपन,असुरक्षित और प्रदूषित माहौल घटता भोजन व पानी कभी भी करवट लेने वाला मौसम।आम जनजीवन उससे बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।जाहिर है कि पर्यावरण में इस असंतुलन की स्थिति के लिए मनुष्य ही जिम्मेदार है।
मनुष्य अपने आसपास के वातावरण से बहुत गहराई से जुड़ा हुआ है इसमें किसी भी तरह के परिवर्तन से प्रभावित किए बिना नहीं रहती बदलते मौसम में खांसी जुकाम बुखार आदि आदि बातों से हम सभी परिचित हैं।
इसलिए,प्रकृति के साथ छेड़छाड़ बन्द कर के प्रकृति के गले लगिए।एक पेड़ लगाइए,जंगल मत काटिये।क्योंकि,जो हमे प्रकृति दे सकती है वो दुनियाँ की कोई ताकत पैसे से भी नही दे सकती है।

– सौरभ पाठक बरेली

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