ग़ाज़ीपुर सैदपुर। एक भाई ने अपने ही सगे जिंदा भाई को पैतृक संपत्ति के लिए लेखपाल व राजस्व निरीक्षक से मिलकर मृत घोषित करा दिया और उनकी संपत्ति का वरासत करवा लिया। सबसे बड़ी चौंकाने वाली बात यह है कि जिस व्यक्ति के नाम वरासत कराया गया है उसे जिंदा व्यक्ति का पुत्र बताया गया है। मामला सैदपुर थाने का है जहां की ग्रामसभा धरवा दुबैठा में, एलएनटी कंपनी के जिंदा सेवानिवृत्त अधिकारी लक्ष्मीनारायण मिश्र को उनके ही सगे भाई जितेंद्र ने राजस्व कर्मचारियों और लेखपाल की मिलीभगत से मृत घोषित करा दिया है। लक्ष्मीनारायण मिश्र वापस खतौनी में अपना नाम दर्ज कराने के लिए खुद ही जिंदा होने का सबूत लेकर यहां वहां दौड़ रहे हैं । इस पर 2015 में तत्कालीन एसडीएम सैदपुर सत्यम मिश्रा ने उन्हें आश्वासन दिया था कि जल्द ही उनके साथ न्याय किया जाएगा। दोषियों को सजा दी जाएगी । 2015 से चलता हुआ मामला अब 2018 तक पहुंच चुका है लेकिन अब तक लक्ष्मीनारायण मिश्र खुद को जिंदा होते हुए भी जिंदा साबित नहीं कर पाए हैं। फर्जीवाड़े का आलम यह था की जो वरासत की गई है उसमें लक्ष्मीनारायण मिश्र के पिताजी के अंगूठा की जगह किसी और व्यक्ति का अंगूठा लगाया गया है । जबकि लक्ष्मीनारायण मिश्र का कहना है कि उनके पिताजी हमेशा दस्तखत किया करते थे, इस अंगूठा प्रकरण की एक्सपर्ट के द्वारा जांच भी कराई गई है। जिसमें लक्ष्मीनारायण मिश्र का पक्ष सही माना गया है । इसके बावजूद भी सरकारी नीतियां किस तरह की है कि एक जिंदा व्यक्ति से उसके जिंदा होने का सबूत मांगा जा रहा है । ऐसे में यह कैसे मान लिया जाए कि वर्तमान में भ्रष्टाचार कम हो रहा है। अपने होने के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे, लक्ष्मीकांत मिश्र ने प्रखर पूर्वांचल को बताया कि जब तक उनके भाई जितेंद्र मिश्र को सजा नहीं हो जाती तब तक वह कानूनी लड़ाई लड़ते रहेंगे। बता दें कि धरवां निवासी लक्ष्मीनारायण मिश्र अपने परिवार के साथ मुंबई के डोंबिवली में रहते हैं और गांव से उनका लगाव काफी पुराना है और समय-समय पर वह गांव आते रहते हैं । 2015 फरवरी के माह में जब वह गांव आए और अपनी जमीन का उन्होंने खतौनी निकलवाया खतौनी देखने के बाद तो उनके होश ही उड़ गए। उन्हें मृतक दिखाते हुए उनके जमीन की वरासत किसी और को कर दी गई है । इसके बाद से वो लगातार अधिकारियों के संपर्क में हैं और अपना आधार पैन दिखाकर पहचान दर्ज कराने की कोशिश कर रहे हैं । लेखपाल व राजस्व निरीक्षक ने उन्हें किस आधार पर मृतक घोषित कर दिया, इसकी अभी तक कोई जांच तक नहीं हो पाई है । लोकतांत्रिक व्यवस्था में क्या अधिकारियों के कह देने भर से कोई व्यक्ति जिंदा या मुर्दा हो सकता है अगर ऐसा है तो फिर लोगों का विश्वास लोकतंत्र से उठना लाजमी है। 3 साल से अपने जिंदा होने की लड़ाई लड़ रहे लक्ष्मीनारायण मिश्र का हौसला अभी बुलंद है।वह किसी भी हालत में अपने अपराधी भाई को सजा दिलाने के लिए कटिबद्ध है।
रिपोर्ट-:प्रदीप दुबे