बरेली/ फ़तेहगंज पश्चिमी । देश के दो शीर्ष पत्रकार संगठनों नेशनल यूनियन जर्नलिस्ट्स ऑफ इंडिया (एन यू जे आई) व इसकी राज्य शाखा दिल्ली जर्नलिस्ट एसोसिएशन (डी जे ए) और वर्किंग जर्नलिस्ट्स आफ इंडिया ( डब्ल्यू जे आई) की ओर से गत दिवस हुई राष्ट्रीय वेबीनार में पत्रकारों और पत्रकारिता के अहम मुद्दों पर सभी संगठनों के बीच सहयोग और एक जुटता की जरूरत पर बल दिया गया। वेब चर्चा में कोविड-19 से उपजी कोरोना महामारी के दौरान निर्भीकता के साथ जन समस्याओं को उजागर करने में मीडिया कर्मियों की भूमिका की सराहना की गयी और लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती में पत्रकारों के विशेष स्थान को रेखांकित किया गया। इसके साथ हीे यूनियन के नेताओं ने अखबारों और चैनलों में पत्रकारों की छंटनी पर गहरा रोष व्यक्त किया। श्रम संहिताएं एवं श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम 1955 विषय पर हुई इस सेमीनार में मुख्य वक्ता देश के सबसे बड़े मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संघ (बी एम एस) के क्षेत्रीय संगठन मंत्री (दिल्ली क्षेत्र) पवन कुमार मुख्य वक्ता थे। एन यू जे आई के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज मिश्रा, महासचिव सुरेश शर्मा, डब्यू जे आई के अध्यक्ष अनूप चौधरी, महासचिव नरेंद्र भंडारी, दिल्ली पत्रकार संघ के अध्यक्ष मनोहर सिंह, महासचिव अमलेश राजू, एन यू जे आई के पूर्व अध्यक्ष अशोक मलिक और डी जे ए के पूर्व महासचिव डा प्रमोद कुमार ने विचार रखे। दो घंटे चली परिचर्चा में देशभर से दोनों संगठनों से जुडे मीडियाकर्मी शामिल थे।
बीएमएस के क्षेत्रीय संगठन मंत्री पवन कुमारजी ने कहा, ‘ केन्द्र सरकार ने श्रम संबंधी 44 कानूनों की जगह 4 श्रम संहिताएं बनाने की कवायद शुरू की है। जिसमें पारिश्रमिक पर तैयार संहिता को संसद और राष्ट्रपति की मंजूरी मिल चुकी है। बाकी श्रम संहिताओं को परित कराने का काम सरकार के श्रम मंत्रालय में चल रहा है।
पवन कुमार ने कहा कि इन श्रम संहिताओं से श्रमिकों के लिए राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी, स्वास्थ्य जांच, सामाजिक सुरक्षा, वेतन के रूप में एक रूपता जैसे कई लाभ होंगे। नयी श्रम सहिताएं इलेक्ट्रानिक मीडिया और डिजिटल मीडिया संगठनों के कर्मचारियों पर भी भविष्य में लागू होगी, लेकिन इसके साथ ही श्रमिकों के सामने कई चुनौतियां भी आएंगी।’
उन्होंने कहा कि नयी संहिताओं के बाद श्रमजीवी पत्रकार एक सीधा कर्मचारी माना जाएगा। उन्होंने कहा कि इसमें कोड आन आकूपेशनल हेल्थ, सेफ्टी एवं वर्किंग कंडीशन्स 2019 ( पेशे से जड़ी स्वास्थ्य, सुरक्षा और कार्यस्थल की दशाओं संबंधी संहिता – 2019 ) के लागू होने पर वर्किग जर्नलिस्ट्स एंड अदर न्यूजपेपर इम्पलाईज (कंडीशन्स आफ सर्विसेज) एंड मिसलीनियस प्रावीजन एक्ट 1955 और वर्किंग जर्नलिस्ट्स (फिक्सेशन और रेट्स आफ वेजेज) एक्ट 1958 और विभिन्न 13 उद्योगों का कानून उसकी में समाहित हो जाएगी। इससे समाचार पत्र उद्योग के पत्रकारों और गैर पत्रकार कर्मियों के वेजबोर्ड का भविष्य संदिग्ध हो गया है।
पवन कुमार ने कहा,‘ श्रम मंत्री कह रहे हैं कि हम नियमों में वेज बोर्ड की व्यवस्था कर देंगे। पर बाद में अधिकारी कहेंगे कि जो बात अधिनियम में नहीं है उसके लिए नियम कैसे हो सकता है।’
भारतीय मजदूर संघ (बी एम एस) नेता ने कहा कि कोई भी अधिकार बगैर संघर्ष के नहीं मिलता। “पत्रकारों को अपने अधिकारों के लिए एक जुट होकर संघर्ष करना होगा।’’
नेशनल यूनियन जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया (एन यू जे आई ) अध्यक्ष मनोज मिश्रा ने तीसरे मीडिया आयोग के गठन की संगठन की मांग को रखते हुए कहा, पत्रकारिता की चुनौतियां बढ़ रही हैं जबकि पत्रकारों के हक कमजोर होते जा रहे हैं। वर्किंग जर्नलिस्ट्स अधिनियम को कमजोर करने का जो काम पिछली सरकार के समय शुरू हुआ था उसे यह सरकार भी आगे बढ़ा रही है।’ एन यू जे अध्यक्ष मनोज जी ने कहा, ‘संगठनों को मिल कर चलना होगा तभी उसका असर होगा। समाज को आज भी पत्रकारों से बड़ी अपेक्षाएं हैं।’
डब्यू जे आई के अध्यक्ष अनूप चौधरी ने कहा, ‘पत्रकार की गिनती न मालिकों में है, न मजदूरों में । 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज में पत्रकारों के लिए एक रुपया भी नहीं है।’ चौधरी ने भी पत्रकारों और पत्रकारिता के हित में सभी संगठनों के बीच एक जुटता की जरूरत पर बल दिया।
एन यू जे आई महासचिव सुरेश शर्मा ने श्रमजीवी पत्रकार कानून को बचाना पत्रकारिता की स्वतंत्रता के लिए जरूरी है। उन्होंने एनयूजे आई द्वारा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को दिए गए ज्ञापन का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें श्रमजीवी पत्रकारों, मीडिया संगठनों और संवाद समितियों के लिए विशेष पैकेज की मांग की गयी है।
डब्ल्यू जे आई के महासचिव नरेंद्र भंडारी ने कहा, आजादी के बाद भारत में पत्रकरों के लिए कोविड-19 सबसे बड़ा संकट लेकर आया है। लोगों की मीडिया हाउसेज में नौकरियां जा रही हैं। पत्रकारों के सामने आजीविका का बड़ा संकट खड़ा है। इसका मुकाबला मिल कर करने की जरूरत है।
एन यू जे के पूर्व अध्यक्ष अशोक मलिक ने ठेका व्यवस्था को पत्रकारों बड़ा खतरा बताते हुए कहा, ‘ कानून में यह स्पष्ट व्यवस्था हो कि मीडियाकर्मी पर ठेका मजदूर व्यवस्था लागू नहीं होगी।
डी जे ए के पूर्व महासचिव डा प्रमोद कुमार ने ट्रेड यूनियनों को मजबूत करने और अच्छा काडर तैयार करने की जरूरत पर बल दिया।
दिल्ली जर्नलिस्ट एसोसिएशन (डी जे ए ) अध्यक्ष मनोहर सिंह ने श्रमजीवी पत्रकारों को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहने का आह्वान किया। महासचिव अमलेश राजू ने मीडिया ट्रेड यूनियनों में विखराव की प्रवृत्ति पर चिंता जताई।
परिचर्चा का संचालन डब्ल्यू जे आई के वरिष्ठ नेता संजय उपाध्याय ने किया। उपरोक्त संगठनों के नेताओं ने आने वाले दिनों में अन्य संगठनों साथ मिल कर मीडियाकर्मियों के संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प किया है।
डब्ल्यू जे आई के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री विजय तोगा, सचिव श्री उदय कुमार मन्ना तथा यू० पी० जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (उपजा) के प्रान्तीय महामन्त्री रमेश चन्द जैन सहित देशभर से 100 से अधिक पत्रकारों ने वेबिनार में भाग लिया। दो घंटे की इस चर्चा में वक्ताओं ने पत्रकारों की समस्याएँ सुनी और उनके समाधान हेतु कुछ सुझाव दिये।
वेबिनार की सफलता पर “उपजा” के प्रदेश उपाध्यक्षगण निर्भय सक्सेना, हेमन्त कृष्ण, द्विजेन्द्र मोहन शर्मा, पवन नवरत्न, राधेश्याम लाल कर्ण, प्रदेश कोषाध्यक्ष अरुण जायसवाल, प्रदेश मंत्रीगण दिलीप गुप्ता, जयन्त कुमार मिश्रा, नृपेंद्र श्रीवास्तव, सुनील कुमार वशिष्ठ, विशनपाल सिंह चौहान, अशोक नवरत्न, पवन सहयोगी, संजय शर्मा, मुकेश गोयल, राकेश शर्मा, अनिल भारद्वाज, सुनील चौधरी, राकेश शर्मा, नवेन्दु प्रकाश सिंह, जे पी सिंह, एच पी श्रीवास्तव, बाल मुकुंद त्रिपाठी ने भी शुभकामनाएं देते हुए श्रमजीवी पत्रकारो को ‘बौद्धिक श्रमिक’ का दर्जा पूर्ववत रखने की मांग दोहराई।पत्रकार मुद्दों पर सभी संगठनों के बीच आपसी सहयोग व एकजुटता की आवश्यकता।
एन यू जे, डब्लयू जे आई का वेबीनार
फ़तेहगंज पश्चिमी । देश के दो शीर्ष पत्रकार संगठनों नेशनल यूनियन जर्नलिस्ट्स ऑफ इंडिया (एन यू जे आई) व इसकी राज्य शाखा दिल्ली जर्नलिस्ट एसोसिएशन (डी जे ए) और वर्किंग जर्नलिस्ट्स आफ इंडिया ( डब्ल्यू जे आई) की ओर से गत दिवस हुई राष्ट्रीय वेबीनार में पत्रकारों और पत्रकारिता के अहम मुद्दों पर सभी संगठनों के बीच सहयोग और एक जुटता की जरूरत पर बल दिया गया। वेब चर्चा में कोविड-19 से उपजी कोरोना महामारी के दौरान निर्भीकता के साथ जन समस्याओं को उजागर करने में मीडिया कर्मियों की भूमिका की सराहना की गयी और लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती में पत्रकारों के विशेष स्थान को रेखांकित किया गया। इसके साथ हीे यूनियन के नेताओं ने अखबारों और चैनलों में पत्रकारों की छंटनी पर गहरा रोष व्यक्त किया। श्रम संहिताएं एवं श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम 1955 विषय पर हुई इस सेमीनार में मुख्य वक्ता देश के सबसे बड़े मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संघ (बी एम एस) के क्षेत्रीय संगठन मंत्री (दिल्ली क्षेत्र) पवन कुमार मुख्य वक्ता थे। एन यू जे आई के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज मिश्रा, महासचिव सुरेश शर्मा, डब्यू जे आई के अध्यक्ष अनूप चौधरी, महासचिव नरेंद्र भंडारी, दिल्ली पत्रकार संघ के अध्यक्ष मनोहर सिंह, महासचिव अमलेश राजू, एन यू जे आई के पूर्व अध्यक्ष अशोक मलिक और डी जे ए के पूर्व महासचिव डा प्रमोद कुमार ने विचार रखे। दो घंटे चली परिचर्चा में देशभर से दोनों संगठनों से जुडे मीडियाकर्मी शामिल थे।
बीएमएस के क्षेत्रीय संगठन मंत्री पवन कुमारजी ने कहा, ‘ केन्द्र सरकार ने श्रम संबंधी 44 कानूनों की जगह 4 श्रम संहिताएं बनाने की कवायद शुरू की है। जिसमें पारिश्रमिक पर तैयार संहिता को संसद और राष्ट्रपति की मंजूरी मिल चुकी है। बाकी श्रम संहिताओं को परित कराने का काम सरकार के श्रम मंत्रालय में चल रहा है।
पवन कुमार ने कहा कि इन श्रम संहिताओं से श्रमिकों के लिए राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी, स्वास्थ्य जांच, सामाजिक सुरक्षा, वेतन के रूप में एक रूपता जैसे कई लाभ होंगे। नयी श्रम सहिताएं इलेक्ट्रानिक मीडिया और डिजिटल मीडिया संगठनों के कर्मचारियों पर भी भविष्य में लागू होगी, लेकिन इसके साथ ही श्रमिकों के सामने कई चुनौतियां भी आएंगी।’
उन्होंने कहा कि नयी संहिताओं के बाद श्रमजीवी पत्रकार एक सीधा कर्मचारी माना जाएगा। उन्होंने कहा कि इसमें कोड आन आकूपेशनल हेल्थ, सेफ्टी एवं वर्किंग कंडीशन्स 2019 ( पेशे से जड़ी स्वास्थ्य, सुरक्षा और कार्यस्थल की दशाओं संबंधी संहिता – 2019 ) के लागू होने पर वर्किग जर्नलिस्ट्स एंड अदर न्यूजपेपर इम्पलाईज (कंडीशन्स आफ सर्विसेज) एंड मिसलीनियस प्रावीजन एक्ट 1955 और वर्किंग जर्नलिस्ट्स (फिक्सेशन और रेट्स आफ वेजेज) एक्ट 1958 और विभिन्न 13 उद्योगों का कानून उसकी में समाहित हो जाएगी। इससे समाचार पत्र उद्योग के पत्रकारों और गैर पत्रकार कर्मियों के वेजबोर्ड का भविष्य संदिग्ध हो गया है।
पवन कुमार ने कहा,‘ श्रम मंत्री कह रहे हैं कि हम नियमों में वेज बोर्ड की व्यवस्था कर देंगे। पर बाद में अधिकारी कहेंगे कि जो बात अधिनियम में नहीं है उसके लिए नियम कैसे हो सकता है।’
भारतीय मजदूर संघ (बी एम एस) नेता ने कहा कि कोई भी अधिकार बगैर संघर्ष के नहीं मिलता। “पत्रकारों को अपने अधिकारों के लिए एक जुट होकर संघर्ष करना होगा।’’
नेशनल यूनियन जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया (एन यू जे आई ) अध्यक्ष मनोज मिश्रा ने तीसरे मीडिया आयोग के गठन की संगठन की मांग को रखते हुए कहा, पत्रकारिता की चुनौतियां बढ़ रही हैं जबकि पत्रकारों के हक कमजोर होते जा रहे हैं। वर्किंग जर्नलिस्ट्स अधिनियम को कमजोर करने का जो काम पिछली सरकार के समय शुरू हुआ था उसे यह सरकार भी आगे बढ़ा रही है।’ एन यू जे अध्यक्ष मनोज जी ने कहा, ‘संगठनों को मिल कर चलना होगा तभी उसका असर होगा। समाज को आज भी पत्रकारों से बड़ी अपेक्षाएं हैं।’
डब्यू जे आई के अध्यक्ष अनूप चौधरी ने कहा, ‘पत्रकार की गिनती न मालिकों में है, न मजदूरों में । 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज में पत्रकारों के लिए एक रुपया भी नहीं है।’ चौधरी ने भी पत्रकारों और पत्रकारिता के हित में सभी संगठनों के बीच एक जुटता की जरूरत पर बल दिया।
एन यू जे आई महासचिव सुरेश शर्मा ने श्रमजीवी पत्रकार कानून को बचाना पत्रकारिता की स्वतंत्रता के लिए जरूरी है। उन्होंने एनयूजे आई द्वारा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को दिए गए ज्ञापन का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें श्रमजीवी पत्रकारों, मीडिया संगठनों और संवाद समितियों के लिए विशेष पैकेज की मांग की गयी है।
डब्ल्यू जे आई के महासचिव नरेंद्र भंडारी ने कहा, आजादी के बाद भारत में पत्रकरों के लिए कोविड-19 सबसे बड़ा संकट लेकर आया है। लोगों की मीडिया हाउसेज में नौकरियां जा रही हैं। पत्रकारों के सामने आजीविका का बड़ा संकट खड़ा है। इसका मुकाबला मिल कर करने की जरूरत है।
एन यू जे के पूर्व अध्यक्ष अशोक मलिक ने ठेका व्यवस्था को पत्रकारों बड़ा खतरा बताते हुए कहा, ‘ कानून में यह स्पष्ट व्यवस्था हो कि मीडियाकर्मी पर ठेका मजदूर व्यवस्था लागू नहीं होगी।
डी जे ए के पूर्व महासचिव डा प्रमोद कुमार ने ट्रेड यूनियनों को मजबूत करने और अच्छा काडर तैयार करने की जरूरत पर बल दिया।
दिल्ली जर्नलिस्ट एसोसिएशन (डी जे ए ) अध्यक्ष मनोहर सिंह ने श्रमजीवी पत्रकारों को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहने का आह्वान किया। महासचिव अमलेश राजू ने मीडिया ट्रेड यूनियनों में विखराव की प्रवृत्ति पर चिंता जताई।
परिचर्चा का संचालन डब्ल्यू जे आई के वरिष्ठ नेता संजय उपाध्याय ने किया। उपरोक्त संगठनों के नेताओं ने आने वाले दिनों में अन्य संगठनों साथ मिल कर मीडियाकर्मियों के संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प किया है।
डब्ल्यू जे आई के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री विजय तोगा, सचिव श्री उदय कुमार मन्ना तथा यू० पी० जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (उपजा) के प्रान्तीय महामन्त्री रमेश चन्द जैन सहित देशभर से 100 से अधिक पत्रकारों ने वेबिनार में भाग लिया। दो घंटे की इस चर्चा में वक्ताओं ने पत्रकारों की समस्याएँ सुनी और उनके समाधान हेतु कुछ सुझाव दिये।
वेबिनार की सफलता पर “उपजा” के प्रदेश उपाध्यक्षगण निर्भय सक्सेना, हेमन्त कृष्ण, द्विजेन्द्र मोहन शर्मा, पवन नवरत्न, राधेश्याम लाल कर्ण, प्रदेश कोषाध्यक्ष अरुण जायसवाल, प्रदेश मंत्रीगण दिलीप गुप्ता, जयन्त कुमार मिश्रा, नृपेंद्र श्रीवास्तव, सुनील कुमार वशिष्ठ, विशनपाल सिंह चौहान, अशोक नवरत्न, पवन सहयोगी, संजय शर्मा, मुकेश गोयल, राकेश शर्मा, अनिल भारद्वाज, सुनील चौधरी, राकेश शर्मा, नवेन्दु प्रकाश सिंह, जे पी सिंह, एच पी श्रीवास्तव, बाल मुकुंद त्रिपाठी ने भी शुभकामनाएं देते हुए श्रमजीवी पत्रकारो को ‘बौद्धिक श्रमिक’ का दर्जा पूर्ववत रखने की मांग दोहराई।
– बरेली से सौरभ पाठक की रिपोर्ट