वाराणसी- सरकारी अस्पतालों की बिगड़ती सेहत मरीजों के स्वास्थ्य व उनकी जेबों पर भारी पड़ रही है। दुर्व्यवस्था के चलते मरीज इलाज के लिए निजी चिकित्सालयों में जाने को मजबूर हैं जहाँ उनका जमकर आर्थिक शोषण किया जाता है। वहीं सरकारों द्वारा घोषित स्वास्थ्य योजनाएं पूरी तरह से थोथी साबित हो रही हैं। इसका जीता जागता उदाहरण पं दीनदयाल राजकीय चिकित्सालय का ट्रामा सेंटर-उच्चस्तरीय आकस्मिक स्वास्थ्य सेवाओं में देखने को मिल जाएगा। जहां मरीजों को चिकित्सा व्यवस्था मुहैया उपलब्ध कराने को पूर्ववर्ती सपा सरकार द्वारा ट्रामा सेंटर-उच्च स्तरीय आकस्मिक स्वास्थ्य सेवा की स्थापना की गई। उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सेवायें उपलब्ध कराने के लिए विशेषज्ञ चिकित्सकों के साथ पैरामेडिकल स्टाफ की तैनाती भी की गई। एसी के साथ लाखों रूपये मूल्य की मशीनों को लगाया गया। ट्रामा-उच्चस्तरीय आकस्मिक स्वास्थ्य सेवाओं को उपलब्ध कराने हेतु आपरेशन थियेटर को अत्याधुनिक मशीनों से लैस किया गया। परन्तु शासन व जिला प्रशासन की उदासीनता के चलते वर्तमान में ट्रामा-उच्च स्तरीय आकस्मिक सेवाओं को उपलब्ध कराने के लिए बना सेंटर दुर्व्यवस्था की भेंट चढ़ गया। अस्पताल सूत्रों की मानें तो सेंटर की स्थापना के बाद यहां तीन आर्थो सर्जन को दूसरे चिकित्सालयों से यहां सम्बद्ध करने के साथ ही एक आर्थो सर्जन, एक जनरल सर्जन व एनेस्थेटिक की तैनाती की गई। समय के साथ सूबे में सत्ता परिवर्तन के साथ ही अस्पताल की भी व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई। सम्बद्ध चिकित्सकों व पैरामेडिकल स्टाफ को उनके मूल तैनाती स्थल पर भेज दिया गया और एक आर्थो सर्जन व एक जनरल सर्जन को डीडीयू के ओपीडी में भेज दिया गया। स्थिति यह हो गई कि वर्तमान वर्तमान में विगत डेढ़ वर्षों से ट्रामा/उच्च स्तरीय आकस्मिक सेवाओं को उपलब्ध कराने हेतु एक भी विशेषज्ञ चिकित्सक की तैनाती न होने से आकस्मिक सेवाओं को मात्र ईएमओ व पैरामेडिकल स्टाफ के भरोसे चलाया जा रहा है वहीं आपरेशन थियेटर में लाखों रूपये की लागत से लगी मशीनें व उपकरण धूल फांक रहे हैं तथा आकस्मिक चिकित्सा हेतु आने वाले मरीजों के रक्त की जांच हेतु बना पैथोलॉजी बंद हो चुका है। जानकारों की मानें तो ट्रामा सेंटर में आकस्मिक चिकित्सा हेतु बने सेंटर में प्रतिदिन लगभग सौ मरीजों का पंजीकरण कर उन्हें प्राथमिक उपचार उपलब्ध कराने के साथ ही 40-45 मरीजों को भर्ती कर उन्हें अस्पताल में बने वार्डों में शिफ्ट कर दिया जाता है जिसमे लगभग 10 मरीज ऐसे होते हैं जो सड़क दुर्घटना में घायल होकर आते हैं। जानकारों की मानें तो सत्ता परिवर्तन के साथ ही यहाँ तैनात किये गए चिकित्सक व पैरामेडिकल स्टाफ शासन व सत्ता के बल पर अपनी सम्बद्धता को समाप्त कर अपने मूल तैनाती स्थल पर वापस चले गए जिसका मूल कारण यह है कि जनपद में तैनात ज्यादातर चिकित्सक व पैरामेडिकल स्टाफ वर्षों से तैनात हैं और अपने तैनाती स्थल के पास ही अपनी क्लीनिक व पैथोलॉजी खोलकर निजी प्रैक्टिस करते हैं जिसके चलते यदि उनका स्थानांतरण अन्यत्र हो जाता है तो वो किसी न किसी प्रकार स्थानांतरण निरस्त करा मूल तैनाती स्थल पर बने रहते हैं।
*अस्पताल प्रबंधन निष्क्रिय*
अस्पतालों में मरीजों को दी जाने वाली सुविधाओं व कर्मचारियों की व्यवस्था की जिम्मेदारी अस्पताल प्रबंधन की होती है जिसके लिए अस्पतालों में एक अस्पताल मैनेजर की नियुक्ति भी की गई। अस्पताल मैनेजर का कार्य अस्पताल की साफ़-सफाई व्यवस्था के साथ ही अनुपलब्ध कर्मचारियों के बारे में अस्पताल प्रबंधन को अवगत कराना होता है। परन्तु पं दीनदयाल चिकित्सालय में तैनात मैनेजर सीएमएस की जी हजूरी में ही लगे रहते हैं।
रिपोर्टर-: महेश पाण्डेय ब्यूरो चीफ वाराणसी मण्डल