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नेपियर हाथी घास से बढ़ेगा बाड़मेर जिले में दुग्ध उत्पादन – मनप्रीत सिंह

बाड़मेर/राजस्थान- कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर के संयुक्त तत्वाधान में जालीपा, चूली, भादरेश और लाखेटाली गांव में प्रग्तिशिल किसानो को नेपियर हाथी घास से स्टीक वितरित किए गए ! इस दौरान किसानों को संबोधित करते हुए मनप्रीत सिंह संधू ने बताया कि नेपियर घास सदाबहार हरा चारा एक बहुवर्षीय चारे की फसल है। इसके पौधे गन्ने की भांति लम्बाई में बढ़ते है पौधे से 40-50 तक कल्ले निकलते है। इसे किसानों द्वारा हाथी घास के नाम से भी जाना जाता है। संकर नेपियर घास अधिक पौष्टिक एवं उत्पादक होती है।पशुओं को नेपियर के साथ रिजका, बरसीम या अन्य चारे अथवा दाने एवं खली देनी चाहिए।

बहुवर्षीय फसल होने के कारण इसकी खेती सर्दी, गर्मी व वर्षा ऋतु में कभी भी की जा सकती है। इसलिए जब अन्य हरे चारे उपलब्ध नही होते उस समय नेपियर का महत्व अधिक बढ़ जात है इसके चारे से हे भी तैयार की जा सकती है। पशुपालकों को गर्मियों में हरे चारे की सबसे ज्यादा परेशानी होती है बरसीम, मक्का, ज्वार, बाजरा जैसी फसलों से तीन-चार महीनों तक ही हरा चारा मिलता है। ऐसे में पशुपालकों को एक बार नेपियर बाजरा हाइब्रिड घास लगाने पर महज दो महीने में विकसित होकर अगले चार से पांच साल तक लगातार दुधारू पशुओं के लिए पौष्टिक आहार की जरूरत को पूरा कर सकती है ।

इस दौरान डा. रावता राम भाखर ने बताया कि नेपियर घास सदाबहार हरा चारा एक बहुवर्षीय हरा चारा है एवं इसमें प्रोटीन कैल्शियम की मात्रा ज्यादा होती है इससे पशुओं के अंदर दूध की उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी है इसके साथ फैट की मात्रा भी बढ़ती है! नेपियर हरे चारे की पूर्ति के लिए अच्छा विकल्प है ! गर्मियों के समय में इसका उपयोग से हिट स्ट्रोक से पशुओं को बचाता है इसके साथ पशुओं के बांझपन, रिपीट ब्रीडिंग और अन्य बीमारियों के लिए भी नेपियर चेहरा उपयोगी है! नेपियर को हरे चारे में अकेला पचास प्रतिशत से ज्यादा नही देना चाहिए और कटिंग करके सूखे चारे के साथ मिक्स करके देना चाहिए! यह चारा पशुओं के लिए एक पोस्टिक आहार है एवं लगातार सात से आठ साल तक तीनो सीजन वर्षा, गर्मी ,और सर्दी में इसकी कटिंग आती रहती है ! इसलिए यह पशुओं के लिए वरदान साबित हो रहा है।

नैपियर घास (पैनीसिटम परप्यूरीरियम) एक बहुवर्षीय पैनीसेटम कुल का पौधा है जिसको जड़ों तथा क्लम्पों के द्वारा समुद्र तल से 1550 मीटर की ऊंचाई पर रोपित करके अच्छी गुणवत्तायुक्त चारा उत्पादन किया जाता है एक क्लम्प से 3-4 माह की उम्र पर 30-35 पौधे तैयार हो जाते हैं। इसकी पत्तियां गहरे हरे रंग की तथा 50-70 से.मी. लम्बी एवं 2-3 से.मी. चौड़ी होती है।

नैपियर बाजरा अपनी वृद्धि की सभी अवस्थाओं पर हरा पौष्टिक तथा स्वादिष्ट चारा होता है जिसमें कच्ची प्रोटीन की मात्रा 8-11 प्रतिशत तथा रेशे की मात्रा 30.5 प्रतिशत होती है। सामान्यत 70-75 दिन की उम्र पर काटे गये चारे की पचनीयता 65 प्रतिशत तक पायी जाती है। नैपियर बाजरा में कैल्शियम 10.88 प्रतिशत तथा फॉस्फोरस 0.24 प्रतिशत तक पाया जाता है। नैपियर घास को अन्य चारे के साथ मिलाकर खिलाना लाभदायक होता है। इस चारे को पशुओं हेतु अधिक उपयोग बनाने के लिए साइलेज बनाकर खिलाना भी लाभदायक होता है।

कहा पर होती हैं खेती ?

नेपियर की खेती राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, असम, उडीसा, आन्धप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल, हरियाणा एवं मध्यप्रदेश में की जाती है।

जलवायु एवं भूमि:-

गर्म व नम जलवायु वाले स्थान जहाँ तापमान अधिक रहता है ( 240- 280 सेल्सियस) वर्षा अधिक होती है। ( 1000 मी.मी) तथा वायुमण्डल में आर्द्रता अधिक रहती हो वे क्षेत्र नेपियर की खेती के लिए उत्तम माने जाते है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई पड़ती है। अधिक ठण्डी जलवायु में फसल की वृद्धि नही हो पाती है। पाला नेपियर के लिए हानिकारक होता है। यह घास कई प्रकार की मिट्टियों में उगाई जा सकती है। भटियार दोमट मिट्टी जिसमें प्रचुर जीवाशं पदार्थ उपस्थित हो इसके लिए सर्वोत्तम हाती है। जमीन का पी.एच. का मान 6.5 से 8.0 होना चाहिए।

बीज की मात्रा:- नैपियर घास की बुवाई वानस्पतिक भागों द्वारा की जाती है बुवाई हेतु भूमिगत तना जिन्हें राइजोम कहते हैं को उपयोग में लिया जाता है। तने के टुकडों तथा जडोध (रूट स्लिप) द्वारा भी इसे उगाया जा सकता है। राइजोम की मात्रा या भार उनके लगाने की दूरी पर निर्भर करता है। यदि लाइन से लाइन की दूरी दो मीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी. रखते है तो प्रति हैक्टेयर 20000-24000 राइसाम या तने के टुकडों की आवश्यकता पड़ती है। जिनका वनज 12-13 क्विंटल होता है। यदि लाइन से लाइन की दूरी एक मीटर तथा पौधों से पौधों की दूरी 30 सेमी. रखते हैं तो 32000-33000 कल्लों (राइसोम) की आवश्यकता होती है जिनका वनज 24-25 क्विंटल होता है।

रोपाई का समय व विधि: नेपियर को लगान का सर्वोत्तम समय मार्च माह माना जाता है। बुवाई जुलाई-अगस्त में भी कर सकते हैं । अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी में पौधे ठीक तरह से स्थापित नहीं हो पाते हैं। यदि टुकड़े बड़े हो तो उसकी पत्तियां काट देनी चाहिए जिससे उत्स्वेदन द्वारा पानी की क्षति कम होगी! बुवाई हमेशा लाइनों मेडों पर करनी चाहिए। उपर्युक्त दूरी पर लाइन बनाकर 2-3 वाले टुकड़ों को भूमि में 45 डिग्री के कोणपर इस प्रकार लगाये कि टुकड़े की एक गांठ जमीन के अन्दर व दूसरीजमीन से उपर रहे। टुकड़ों का झुकाव उत्तर दिया की ओर रखना चाहिए ताकि फसल पर वर्षा का हानिकारक प्रभाव नहीं पड़े। नेपियर की बूवाई ठीक उसी प्रकार की जाती है जेसे गन्ने की की जाती है!

खाद व उर्वरक
खेत की तैयारी के समय प्रति हैक्टेयर 15-20 टन सड़ी हुई गोबर खाद या कम्पोस्ट को खेत में डालकर अन्तिम जुताई करनी चाहिए। बुवाई के समय 50-60 किलो नाइट्रोजन, 80-100 किलो फास्फोरस व 25-30 किलो पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से डालना चाहिए ताकि फसल की वृद्धि शीघ्र हो एवं अधिक उत्पादन प्राप्त हो सके। बुवाई से पूर्व मिट्टी की जांच करवाकर सिफारिस के अनुसार उर्वरक देना अधिक लाभदायक रहता है।

सिंचाई :
नेपियर घास की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए यह जरूरी है कि खेत में पर्याप्त नमी बनी रहनी चाहिए। सर्दियों में पाले से बचाव के लिए तथा गर्मियों में सूखे से बचाव के लिए प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। हल्की भूमि में भारी भूमि की अपेक्षा अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। गर्मीयों में 4-5 दिन तथा सर्दियों में 10-15 दिन के बाद सिंचाई करनी चाहिए। वर्षा ऋतु में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती लेकिन जल निकास की जरूर होनी चाहिए।
निराई-गुडाई एवं खरपतवार प्रबंधन:-

बुवाई के 15 दिन बाद अंधी गुडाई करनी चाहिए प्रत्येक कटाई के बाद कतारों के बीच में गुडाई करनी चाहिए इससे वायु संचार बढता है तथा भूमि की जल धारण क्षमता बढती है जिससे फसल की बढ़वार अधिक होती है। फसल लगाने के 2-3 माह तक खरपतवार अधिक होते है अतः निराई गुडाई कर इन्हें नियंत्रित करना चाहिए। वर्श में दो बार ( वर्षा प्रारम्भ होने से पूर्व एवं सर्दियों के अन्त में) लाइनों के बीच जुताई करनी चाहिए।
रासायनिक खरपतवार नियंत्रण हेतु एट्राजीन/ फाइब्रोनील 3 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई के तुरन्त बाद छिडकाव करने से खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है।

कीट एवं रोग प्रबंधन:-

चूंकि नेपियर घास एक चारे की फसल है अतः इसकी बार बार कटाई किए जाने के कारण कीट एवं बीमारियों का प्रकोप नहीं होता है। यदि भूमि में दीमक की समस्या हो तो सिंचाई के पानी के साथ क्लोरोपाइरीफॉस/ फिप्रोनिल 2 ली. प्रति हैक्टेयर की दर से देना कचाहिए।

कटाई व उपज: नेपियर घास की पहली कटाई बुवाई के 70-80 दिन बाद करनी चाहिए इसके बाद 35-40 दिन के अन्तराल पर कटाई करते रहना चाहिए। कटाई जमीन से 10 सेमी. की उंचाई से करनी चाहिए। इस प्रकार कटाई करने से हर कटाई पर 1-1.5 मी. लम्बाई की फसल मिलती रहती है। अधिक समय तक कटाई नही करने पर इसके तने सख्त हो जाते है और उसमें रेशे की मात्रा बढ़ जाती है जिसके कारण पशु इसे कम खाना पसन्द करते है। साथ ही चारे की पाचनशीलता कम हो जाने के कारण पशुओं का दूध उत्पादन कम हो जाता है। सर्दियों में ( नवम्बर से फरवरी) पौधों की वृद्धि रूक जाती है। और चारे का उत्पादन नही मिल पाता है। वर्श भर में नेपियर से 5-6 कटाई ली जा सकती है जिससे 150-200 टन तक हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है। जिसमें 15-20 प्रतिषत शुष्क पदार्थ होता है इसके चारे में 7-12 प्रतिशत प्रोटीन होता है व इसकी पाचनशीलता 50-70 प्रतिशत होती है।

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नजदीकी कृषि विश्वविद्यालय, केन्द्रीय ससथाओ, कृषि महाविद्यालय, विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्र, स्वयंसेवी संस्थाएं, एनजीओ, से प्राप्त कर सकते हैं!

आवश्यक दिशा-निर्देश

1 हाइब्रिड नेपियर घास की रोपाई फरवरी मार्च व जुलाई से अक्टूबर में की जायें। 2 इसका प्रवर्धन कटिंग / Rooted Slip से किया जाता है अतः प्रवर्धन हेतु 2 से 3 कलियों वाले कटिंग /1 कटिंग Rooted Slip का 50×50 सेमी की दूरी पर इस तरीके से किया जावे की 1 से 2 कलियां / गाठ जमीन में तथा एक कली / गांठ भूमि के ऊपर रहे।

3 यथा संभव प्रदर्शन का आयोजन सघन क्षेत्र में किया जाये। विशेष परिस्थिति में यदि कोई किसान मेढ़ पर रोपाई करता है तो उसे न्यूनतम 0.05 हैक्टर हेतु वांछित 2000 कटिंग या rooted slips लगानी होगी।

  1. रोपण सामग्री के रूप में उपयोग में लिये जाने वाली तना कटिंग 4 से 6 माह पुरानी, हल्के पीले सफेद रंग (पूर्ण पकी हुई) तथा पूर्ण विकसित आँख / कली वाली होनी चाहिए ताकि अधिकाधिक फुटान हो सके।
    5 कटिंग 45 डिग्री के झुकाव पर रोपित करनी है। कटिंग लगाने के पश्चात जड़ के पास मिट्टी को अच्छी तरह दबाने के तुरंत बाद सिंचाई कर देवे। 6 रोपाई से पूर्व प्रति प्रदर्शन (0.1 हैक्टर ) 25-40 क्विं. गोबर की खाद, 1 किलो यूरिया,11 किलो डीएपी व 7 किलो एमओपी बेसल डोज के रूप में उपयोग में ली जाये। प्रत्येककटाई के बाद 6-7 किलो यूरिया का प्रति प्रदर्शन सिंचाई के साथ छिड़काव करें।

6 प्रदर्शन आयोजन हेतु आवश्यक गोबर की खाद व उर्वरक की व्यवस्था आदि किसान स्वयं के स्तर पर करेगा।
7 फसल की सिंचाई गर्मियों में (मार्च से जून) 8-10 दिन व सर्दी में 15-20 दिन के अन्तर पर करे। साथ ही प्रत्येक कटाई के बाद पानी देना आवश्यक है।
8 घास की प्रथम कटाई बुवाई के 60-65 दिन बाद करनी है तथा उसके उपरान्त प्रत्येक कटाई 30-35 दिन बाद करनी है।इस दौरान फिल्ड सहायक मगलाराम सुंबरा, मेहरा राम, गोसाईं राम, नरेश कुमार पीरानी और प्रग्तिशिल किसान उपस्थित रहे!

– राजस्थान से राजूचारण

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