*मिनिमली इंवेसिव कार्डिएक से हर साल होती है 1.7 करोड़ से अधिक लोगों की मौत-डा. कौल
*मिनिमली इंवेसिव हार्ट सर्जरी के बारे में डॉक्टरों ने किया जागरूक
रोहतक/हरियाणा- मिनिमली इंवेसिव कार्डिएक से हर साल 1.7 करोड़ से अधिक लोगों की मौत होती है, जिसमें हृदय रोगों के कारण मरने वालों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। शालीमार स्थित मैक्स सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल के एसोसिएट निदेशक डॉक्टर वीनू कौल ने एक निजी होटल में पत्रकारों से बात करते हुए यह जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि हर साल लगभग 3.2 करोड़ भारतीय किसी न किसी हृदय रोग से ग्रस्त होते हैं और उनमें से केवल 1.5 लाख लोगों की सर्जरी हो पाती है लेकिन हालिया 3-4 सालों में मिनीमली इंवेसिव हार्ट सर्जरी (एमआईसीएस) जिसे कि होल सर्जरी के नाम से भी जानते हैं, द्वारा लोगों का इलाज किया जा रहा है।
डा. कौल के मुताबिक वर्ष 2020 तक भारत में सर्वाधिक डायबिटीज के मरीज हो जाएंगे जबकि 2024 तक हार्ट के मरीजों की संख्या बढ़ जाएगी। उन्होंने बताया कि भारत में हर मिनट हृदय रोग से एक महिला की मौत हो रही है।
उनका कहना था कि हृदय रोगों के इलाज के क्षेत्र में प्रगति के साथ-साथ अधिक एडवांस और मिनिमली इंवेसिव प्रक्रियाओं से अधिकांश हृदय रोगियों को लाभ मिला है। दिल की बीमारी में को की होल सर्जरी के बारे में जागरुक करने के लिए मैक्स सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल शालीमार बाग ने आज एक प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया।
अस्पताल के एसोसिएट निदेशक के अनुसार इस सर्जरी में कम चीड़ा वाला, कम दर्द, सर्जिकल ट्रॉमा और अस्पताल से जल्दी छुट्टी मिलना जैसे लाखों से रोगियों को काफी राहत मिली है। इसी कारण मिनिमली इनवेसिव हार्ट सर्जरी (एमआईसीएस) या कीहोल सर्जरी की लोकप्रियता काफी बढ़ी है। सीएबीजी (कोरोनरी आर्टरी बाईपास ग्राफ्टिंग), जिसमें सर्जरी के लिए 10 इंच का चीरा लगाकर ब्रेस्टबोन को अलग किया जाता है, की तुलना में एमआईसीएस या कीहोल सर्जरी ज्यादा सेफ है, जो छाती के बायीं ओर 2-3 इंच का चीरा लगा कर की जाती है।”
डा. कौल ने बताया कि हड्डियों को काटने की जरूरत नहीं पड़ती है, एमआईसीएस प्रक्रिया के कई लाभ होते हैं जैसे कि दर्द का कम होना, स्थिति सामान्य होना और सांस लेने में कोई परेशानी न होना। बिना किसी हड्डी को काटे और मांसपेशियों को अलग किए छाती को पसलियों के बीच लगाया जाता है।
उन्होंने बताया कि एक सामान्य हार्ट सर्जरी के समान इस प्रक्रिया को पैरों से हटाई गईं धमनियों और नसों के इस्तेमाल से पूरा किया जाता है। रोगी सर्जरी के बाद तुरंत अपने जीवन को सामान्य तरीके से जी सकता है और ड्राइविंग जैसे काम आराम से कर सकता है, जो किसी भी पारंपरिक हार्ट सर्जरी में संभव नहीं हो पाता है।
इस सर्जरी के अन्य मुख्य लाभों में खून का कम बहाव, नए खून की जरूरत न होना आदि शामिल हैं, जिनसे अक्सर खून के इंफेक्शन होने का खतरा रहता है। डॉ. कौल ने आगे बताया कि यह प्रक्रिया खासकर वरिष्ठ और डायबिटीज के रोगियों के लिए सबसे उपयुक्त है, जिनमें संक्रमण होने की संभावनाएं सबसे ज्यादा होती हैं।
उनका कहना था कि ऐसे रोगियों के लिए यह मददगार इसलिए होती है क्योंकि इस सर्जरी के बाद लंग्स इंफेक्शन या घाव के कारण इंफेक्शन होने की संभावनाएं खत्म हो जाती हैं। इस प्रक्रिया ने ऐसे लोगों में हार्ट सर्जरी को संभव कर दिया है, जिनमें उम्र या मेडीकल हिस्ट्री के कारण पारंपरिक सर्जरी से बड़ा जोखिम की संभावना होती थी।”
डा. कौल ने बताया कि कोरोनरी आर्टरी बाईपास, माइट्रल वॉल्व रिपेयर, माइट्रल वॉल्व रीप्लेसमेंट, एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स (दिल में छेद) सहित हृदय संबंधी बीमारियों के लिए पारंपरिक सर्जरी की जगह पर अब मिनिमली इंवेसिव हार्ट सर्जरी का इस्तेमाल किया जाता है। चूंकि पूरी दुनिया के मुकाबले भारत में हृदय सर्जरी सबसे कम लागत में हो जाती है, दूर-दूर से लोग यहां इलाज के लिए आते हैं और सफल सर्जरी का आनंद लेते हैं।
उन्होंने बताया कि मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के डॉक्टरों की टीम द्वारा कार्डिएक साइंस और मिनिमली इंवेसिव कार्डिएंक प्रक्रियाओं में गत वर्षो में क्या-क्या बदलाव हुए? इस बात पूरी जानकारी दी।
डॉक्टरों ने मिथकों के बारे में बात करते हुए डा. वीनू कौल ने बताया कि हृदय संबंधी बीमारियां केवल पुरुषों तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि मीनोपॉस के बाद महिलाओं में भी इनकी संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
– हर्षित सैनी,रोहतक