तप, त्याग और देवी के प्रति समर्पण ही चारणो की असली पहचान : डा ग़ुलाब सिंह चारण

राजस्थान/बाड़मेर – पहले राजा महाराजाओं के समय में अन्य जातियों में चारणो के लिए जो मान सम्मान था वह आज-कल रेडिमेड युग में नहीं दिखाई दे रहा है। सभी समाजों में आजकल हाईटेक प्रणाली की चकाचौंध में सामाजिक मान मर्यादाएं लुप्तप्राय हो रही है। तप, त्याग और मातेश्वरी के प्रति अटूट विश्वास ही चारण कुल में जन्मे बच्चों, बालिकाओं को देवी स्वरूप और देवी पुत्र कहलाते थे। वरिष्ठ पत्रकार राजू चारण से एक मुलाकात में देवी भक्त डा ग़ुलाब सिंह चारण ने बताया।

डाक्टर ग़ुलाब सिंह चारण ने बताया कि विज्ञान और तकनीकी के दम भरने वाले समय में भी देवियों के चमत्कार हमेशा भारी है, मातेश्वरी तनोटराय के मंदिर में पाकिस्तानी सेना द्वारा भारी बमबारी करने के दौरान कोई भी बम नहीं फटा था और मंदिर परिसर में भारतीय सेना के जवानों को दुश्मनों की सेना द्वारा बाल भी बांका नहीं हुआ था यह मातेश्वरी तनोटराय का चमत्कार विश्व पटल पर सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है।

जयपुर निवासी सित्तर वर्षीय डॉ गुलाबसिंह चारण की धर्म के प्रति गजब की आस्था है। वे जयपुर से देशनोक करणी माता मंदिर पांच दर्जन से ज्यादा बार पैदल आ चुके हैं। इस बार वे मातेश्वरी तनोटराय की दंडवत यात्रा पर निकले हुए हैं। आठ दस डिग्री सेल्सियस सर्दी- ओर लगभग चालीस से पचास डिग्री सेल्सियस गर्मी भी उनका हौसला नहीं डिगा पाईं है। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य देशनोक मंदिर परिसर के पास में ही नेहड़ी जी मंदिर की खेजड़ी वृक्ष पुनः हरीभरी हो, इसके लिए मातेश्वरी तनोटराय के दरबार में प्रार्थना करनी है। मातेश्वरी तनोटराय के चमत्कार से ही मनोवांछित फल प्राप्त होगा।

डॉ ग़ुलाब सिंह चारण करीब साढ़े बारह सौ किलोमीटर का सफर दो साल में पूरा करेंगे। जयपुर से सितम्बर 2019 को यात्रा प्रारंभ की थी। कोराना भड़भड़ी के चलते देशनोक में ही ठहरें थे और आज तक इन्द्र बाईसा मंदिर खुड़द, देशनोक, सुवाप, रामदेवरा, भादरिया, देगराय, तैमड़ेराय मंदिर के दर्शनों के पश्चात दो साल बाद लगभग सितम्बर 2021 तक मातेश्वरी तनोटराय के दरबार में तनोट पहुंचेंगे। दंडवत यात्रा आज देवीकोट कस्बे के पास देगराय मंदिर पहुंची, आसपास के ग्रामीणों ने उनका जोरदार स्वागत सत्कार किया। पेशे से डॉक्टर गोविंद सिंह जयपुर के नगर पार्षद भी रह चुके हैं। देशनोक मंदिर की औरण गौचर बारह कौस की लगभग छः सात सौ बार परिक्रमा कर चुके हैं।

– राजस्थान से राजू चारण

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