बाड़मेर /राजस्थान- आपने कभी सुना होगा कि राष्ट्रीय राजमार्ग 68 ( पुराना राष्ट्रीय राजमार्ग 15 ) के इस पार बाॅर्डर की तरफ के सैकड़ों किलोमीटर के ईलाके का सरकार द्वारा प्रतिबंधित घोषित कर रखा है। इन ईलाकों में धारा 144, और रात्रि विचरण पर पाबंदियां के तौर पर कर्फ्यू समान व्यवस्थाए रहती है।
सरहदी इलाकों में सेना और पुलिस की हमेशा संदिग्ध व्यक्तियों और संदिग्ध गतिविधियों पर पैनी नजर गड़ी रहती हैं। ऐसे में राज्य से बाहर का व्यक्ति तो क्या सबंधित जिले का व्यक्ति भी इस प्रतिबंधित ईलाके में विचरण के दौरान इसी भय में रहता हैं कि कहीं सेना या पुलिस ने रोककर पुछताछ कर ली तो खामखां मुकदमों में फंस जाएगें। जिसके चलते आम आदमी इन प्रतिबंधित ईलाकों में बिना काम के विचरण का विचार तक नहीं करता। किन्तु इन्ही ईलाकों में रहने वाले कुछ खुरापाती लोगो ने सोसल मिडिया का पट्टा गले में डालकर चैबीसों घंटे टोकळजी बनकर बेरोकटोक सीमावर्ती प्रतिबंधित ईलाकों में पत्रकारिता करने के नाम पर प्रेस लिखें वाहनों को एस्कोर्ट की तरह इस्तेमाल करके हमेशा-हमेशा घुमते रहते है।
विचारणीय बात यह यह हैं कि सोशल मिडिया पर न्यूज ग्रुप, न्यूज चैनल बनाकर, गाड़ियों पर प्रेस लिखवाकर बेरोकटोक घुमने वाले इन तथाकथित सोशल मिडिया खुरापातियों से सरकार का कोई भी महकमा यह पुछने और इन्हे यह कहने वाला कोई नही हैं कि यह सोशल मिडिया का पट्टा और प्रतिबंधित ईलाकों में बेरोकटोक विचरण सब कुछ गैरकानूनी है। लेकिन कोई करे तो भी क्या ? हर महकमा किसी न किसी वजह से आज-कल चुप है।
अब बात करे नफा नुकसान की, तो नफा इन सोशल मिडिया खुरापातियों को स्वीस अकाउंट की तरह है। वहीं नही बात नुकसान की तो वह नुकसान शुरू से लेकर अंत तक राष्ट्र को ही होना है। सीधे शब्दों में खबरों के नाम पर सोसल मिडिया पर इन प्रतिबंधित ईलाकों की भौगोलिक, आर्थिक, राजनीतिक, रहन सहन, गरीबी अमीरी, जरूरत गैर जरूरत, लेन देन सहित कई गतिविधियों को दिखाया जा रहा हैं, जो कि आने वाले समय में इन प्रतिबंधित ईलाकों की सुख शांति के लिए बेहद पीड़ादायक सबक के रूप में पेश आएगा। क्योंकि देश की सरकार ने बहुत सोच समझ के बाद देश की आजादी के साथ ही सीमावर्ती क्षैत्र जो कि पाकिस्तान से लगती अंतराष्ट्रिय सीमा पर स्थित हैं । यहां के ईलाकों को सामरिक दृष्टि से, राष्ट्रिय सुरक्षा की दृष्टि से बेहद खास मानते हुए इन ईलाकों को प्रतिबंधित घोषित किया है। जिससे कि इन ईलाकों में रहने, आने जाने वालों पर पैनी नजर रखी जा सके और किसी भी प्रकार के अप्रिय नुकसान से बचा जा सके।
किन्तु अब ऐसा कुछ नजर नहीं आता, आम नागरिक से लेकर सोशल मिडिया व्हाट्सएप युनिवर्सिटी के डिग्रीधार और जिला प्रशासन सब लापरवाही के जीते जागते गांधारी बने हुए है। जिसका दुस्परिणाम किसी भी नुकसान के रूप में सामने आ सकते है। जबकि जरूरत हैं इस तरह के सोशल मिडिया खुरापातियों की बेरोकटोक एस्कोर्ट विचरण को रोका जाए। क्योंकि विधिवत यह न तो पत्रकार हैं, न ही समाजसेवी, न ही सरकारी कर्मचारी। बावजूद इनकी एस्कोर्ट को न तो कोई रोकने वाला है, न ही इनके तलाशी लेने वाला। कि आखिर यह बिना तनख्वाह के सोशल मिडिया खुरापातियों का खर्चा पानी कैसे चलता होगा। तो क्या सोशल मिडिया का बाड़मेर जिले में अवैध वसूली का कोई नेटवर्क है जिससे जुड़ने के बाद कमाने की कोई जरूरत नही रहती और खर्चे सब हंसते हंसते चल जाते है।
– राजस्थान से राजू चारण