छठ पर्व का हुआ श्रीगणेश:नहाय खाय के साथ हुई व्रत की शुरुआत

आजमगढ़ – सूर्योपासना के पर्व डाला छठ का रविवार को श्रीगणेश हुआ। नहाय खाय के साथ व्रत की शुरुआत हुई। नदी, नहर, तालाब, पोखरे स्थानों पर वेदी बनाने का काम पूरा कर लिया गया है। नदी किनारों घाटों पर विशेष तैयारियां की गयीं है। छठ मईया, सूर्य भगवान समेत अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाओं को स्थापित किया गया है। वहीं फल मंडियों में भारी महंगाई के बाद भी आस्था भारी है। विकास खण्ड कोयलसा में डाला छठ पर्व को लेकर जोरो से तैयारी चल रही है वही घाटो पर साफ सफाई का काम चल रहा है। पोखरे में पानी भरा जा रहा है। वही बाजारों में किस्म किस्म के फल की दुकान सजी हुई है। लोगों का कहना है कि छठ पूजा का अपना अलग ही महत्व है। लोगों का मानना है कि यह बहुत ही कठिन व्रत है।जहां एक तरफ महिलाएं व्रत व उपवास रखती है।वही घर मे साफ सफाई का बड़ा ही ध्यान देना होता है।व्रत के बाद इस कड़ाके की ठंड में पानी मे सूर्य देव के उदय होने का इंतजार करना पड़ता है जब सूर्य देवता का दर्शन होता है तभी अर्घ देना होता है जिनके घर पर लोग व्रत रहते हैं।उनका पूरा परिवार सूर्यदेव को प्रणाम करता है। समाज सेवी रीता मिश्रा का कहना है। हर किस्म का फल इस व्रत में लगता है लोगों की मनोकामना पूर्ण होती है। पहले तो इस व्रत का प्रचलन विहार राज्य में था लेकिन अब यह पूरे देश में यह व्रत प्रभावी हो गया है। चार दिवसीय उत्सव की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते। पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी, नहाय खाय, के रूप में मनाया जाता है। तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया साँचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है। शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठव्रती एक नीयत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले का दृश्य बन जाता है। चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। ब्रती वहीं पुनः इक्ट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। अंत में व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं। छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन भी कहा जाता है।

रिपोर्ट-:राकेश वर्मा आजमगढ़

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