आजमगढ़ – वैसे तो इस जिले ने देश को कई राजनेता दिये लेकिन अगर बात सामाजिक न्याय की आती है तो सबसे पहले स्व. चंद्रजीत यादव याद किये जाते है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के करीबी नेताओं में शामिल रहे चंद्रजीत यादव को सामाजिक न्याय का प्रणेता भी कहा जाता है। 25 मई को उनकी 11वीं पुण्यतिथि है। उनकी पुण्यतिथि को नेहरूहाल में सामाजिक न्याय दिवस के रूप में मनाया जायेगा।बता दें कि चन्द्रजीत यादव प्रारम्भिक राजनीतिक जीवनकाल में मूलतः वामपंथी विचारधारा के प्रबल समर्थक होते हुए भी समाज सुधारों की वैचारिकता की आवश्यकता को कभी नकारे नहीं। वामपंथी धारा में सामाजिक, राजनीतिक परिवर्तन को सम्मिलित करना उनकी राजनीति का उद्देश्य था। चन्द्रजीत यादव सामाजिक परिवर्तन कर नईसामाजिक व्यवस्था की स्थापना के लिए जीवन पर्यन्त एक सजग, सतर्कनेतृत्व प्रदान करते रहे। वे प्रत्येक आन्दोलन को शान्तिमय एवं पूरी तरह लोकतांत्रिक तरीके से चलाने के पक्षधर थे। विश्व शान्ति के क्षेत्र में विश्व शान्ति परिषद के अनेक महत्वपूर्ण पदों पर रहकर उन्होंने पूरे विश्व को जो शान्ति और प्रगति का सन्देश दिया, वह चिरस्मरणीय रहेगा। संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकार प्राप्त पदाधिकारी के रूप में विश्व मंच पर उन्होंने भारत सहित छोटे और कमजोर राष्ट्रों का जिस तरह से पक्ष रखा, उसेयूएनओ में याद किया जाता है। साम्राज्यवाद के विरोध में विश्व मंच पर उनकी दहाड़ आज भी गूँजती है।भारत सहित विश्व के अनेक देशों में उन्होंने सामाजिक न्याय आन्दोलन चलाया। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद अमेरिका में महिलाओं को गैर बराबरी का दर्जा और भारत में पिछड़े, शोषितों, दलितों और अल्पसंख्यकों को अधिकार दिलाने का आन्दोलन आने वाली पीढ़ी के लिएप्रेरणा देते रहेंगे। कहते हैं कि चन्द्रजीत यादव ‘‘सबकी सुबह एक सी होती है’’ मुहावरे से पूरी तरह असहमत थे। उन्होंने कहा ‘‘सबकी सुबह एक सी नहीं होती’’। उन्होंने व्याख्या में कहा कि रात में बिना भोजन के सो गये व्यक्ति या परिवार की सुबह कैसी होगी इसकी कल्पना की जा सकती है। समाज के आखिरी पायदान के व्यक्ति की सुबह क्या शीर्ष पायदान के व्यक्ति की तरह होती है?स्व. यादव तमाम झंझावातों को झेलने के बावजूद लोकतांत्रिक समाजवाद के प्रति अपने चिन्तन को जीवन के अन्तिम क्षण तक आगे बढ़ाते रहे। समाजवाद के प्रति समर्पित चंद्रजीत यादव का व्यावहारिक पक्ष भी बिल्कुल पारदर्शी हुआ करता था। वे समाजवाद की स्थापना के लिए लोकतंत्र, सेकुलरिज्म, शान्ति और बहस को आवश्यक मानते थे। सामाजिक न्याय, समाजवाद के लिए उनके प्रमुख एजेन्डे में रहा। वे ब्राह्मणवादी सोच से बाहर निकालकर गैर ब्राह्मणवादी नये समाज की कल्पना को फलीभूत होते देखना चाहते थे, जिसमें सामन्तवाद के लिए भी कोई गुंजाइस न हो। इसके लिए वे ब्राह्मणवाद पर जमकर हमला करते थे। जब वे कहते थे, ‘‘उनका किसी ब्राह्मण से विरोध नहीं है, उनका विरोध ब्राह्मणवादी उस सोच से है, जिसके चलते समाज में सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक भेदभाव परम्पराओं से चलता आ रहा है।उनकी मृत्यु दिल्ली में हुई। अनेक बड़े राजनेताओं का मानना था किउनका अन्तिम संस्कार दिल्ली में हो, किन्तु पैतृक स्थान और कर्मभूमि से विशेष लगाव होने के कारण मृत्यु के पूर्व उन्होंने अपने वसीयतनामा में ही लिख दिया था कि मृत्यु के उपरान्त उनका अन्तिम संस्कार आज़मगढ़ में तमसा तट पर, उन्हीं के द्वारा निर्मितदाह संस्कार स्थल ‘‘राजघाट’’ पर किया जाय। उनका जन्मभूमि और कर्मभूमि के प्रति यह लगाव अनुकरणीय है।
रिपोर्टर-:राकेश वर्मा सदर आजमगढ़